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फाइजर ने दावा किया उसके बुस्टर अभी जोरदार है

  • जांच के बाद ही कंपनी ने अपना दावा किया

  • चार गुणा अधिक प्रतिरोधक तैयार होने की बात

  • नये स्वरुप पूर्व की दवा को चकमा दे सकता है

राष्ट्रीय खबर

रांचीः कोरोना का संकट अब तक टला नहीं है। चीन से अधिक जानकारी नहीं मिल पाती है लेकिन इतना पता है कि वहां लगातार इसके मरीजों की संख्या बढ़ जाने की वजह से लॉकडाउन और जांच का कार्यक्रम तेज करना पड़ रहा है। उत्तर कोरिया ने भी कोरोना के बारे में गलतबयानी की थी जबकि वहां किसी रास्ते से वायरस के पहुंचने के बाद अनेक लोग मारे गये हैं। वहां की तानाशाह सरकार ने इन सूचनाओं को दबाया है।

इसके बीच चिकित्सा विज्ञान इस बात को लेकर चिंतित है कि फिर से अगर इस वायरस ने अपना स्वरुप बदला तो वह कैसा होगा। इसके बीच ही कोरोना की वैक्सिन बनाने वाली कंपनी फाइजर ने यह दावा किया है कि उसका उन्नत कोरोना बुस्टर उस नये वायरस स्वरुप पर भी असरदार है, जिसका हाल ही में पता चला है। कंपनी ने अपनी वैक्सिन के बारे में भी कहा है कि प्रारंभिक स्वरुप के लिए बनायी गयी यह दवा अब भी असरदार साबित हो रहा है। कंपनी ने गहन शोध के बाद यह दावा करने की बात कही है।

सितंबर के माह में ओमीक्रॉन के नये स्वरुप की जानकारी मिली थी। यह सर्वविदित है कि ऐसे वायरस लगातार अपना स्वरुप बदलते रहते हैं। साथ ही उनमें यह गुण भी होता है कि वे प्रतिरोधक शक्तियों को परास्त करने की गुण खुद ही विकसित कर लेते हैं।

इसका पता पहली बार टीबी की दवाइयों के प्रयोग में चला था। टीबी के प्रारंभिक दौर के विषाणुओं पर जो दवा काम करती थी, वह अब असर खो चुकी हैं। इसी तरह कोविड ने भी चीन के बुहान शहर से अपना सफर प्रारंभ करने के बाद कई बार अपना स्वरुप बदला है।

वैज्ञानिकों के मुताबिक लोगों में वैक्सिन लगा होने की वजह से ओमीक्रॉन का उतना घातक असर नहीं दिखा है। वरना दूसरी लहर में दुनिया में लाखों लोग इसकी चपेट में आकर मरे थे। अब फाइजर कंपनी ने अपने शोध का हवाला देते हुए कहा कि नया कोविड बुस्टर भी नये संक्रमण स्वरुप के खिलाफ मजबूत प्रतिरोधक तैयार करने में पूरी तरह सफल साबित हुआ है।

शोध के बारे में यह बताया गया है कि 55 वर्ष या उससे अधिक आयु के जिन लोगों को यह बुस्टर दिया गया था, उनकी जांच में उनके शरीर में चार गुणा अधिक प्रतिरोधक पाया गया।

यह वैक्सिन का ही असर था कि दुनिया भर में तीसरी और चौथी लहर के फैलने के बाद भी मौत का आंकड़ा दूसरी लहर के जैसा नहीं पहुंचा। इसी वजह से कोरोना संकट के चुपचाप जारी रहने के बीच ही वैज्ञानिक लोगों ने बुस्टर के दोनों डोज लगाने की बात कर रहे हैं ताकि शरीर में इस विषाणु के खिलाफ बनी प्रतिरोधक शक्ति कम नहीं होने पाये। इसके बीच वैज्ञानिकों की चिंता इस वायरस के संभावित नये स्वरुप को लेकर है।
जिस तरीके से डेल्टा वायरस का असर दुनिया भर में देखा गया था, कहीं उसी तरह यह वायरस नये स्वरुप में अधिक तबाही कभी भी मचा सकता है। इस किस्म की महामारी का पूर्व इतिहास भी इसकी पुष्टि करता है कि एक बार महामारी चालू होने के बाद वह लगातार कई वर्षों तक लोगो को अपनी चपेट में लेता रहा है। यह अच्छी बात है कि पहले से अब का चिकित्सा विज्ञान काफी उन्नत हो चुका है। इसके अलावा कोरोना की वजह से सामान्य स्वास्थ्य सुविधाओं में भी बढ़ोत्तरी हुई है।

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