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राजनीतिक बहस के केंद्र में पुलवामा

सत्यपाल मलिक के साक्षातकार और अमित शाह के प्रतिप्रश्नों के बीच ही अर्धसैनिक बलों के जवानों को विमान किसने नहीं दिया, यह सवाल नया नहीं हैं। ऐसा नहीं है कि उस वक्त भी विशेषज्ञों ने इस विशाल टुकड़ी को सड़क मार्ग से भेजने पर आपत्ति जतायी थी। यह भी सही है कि उन्हें विमान से भेजने का अनुरोध किया गया था।

पुराने दस्तावेज यह संकेत देते हैं कि उस वक्त गृहमंत्रालय ने इस अनुरोध को रोक दिया था। अब सत्यपाल मलिक और केंद्रीय गृह मंत्री इस मुद्दे पर अलग अलग बयान दे रहे हैं। दूसरी तरफ हर बात पर बोलने वाले नरेंद्र मोदी चुप हैं। नरेंद्र मोदी की यह चुप्पी भी अब भाजपा के लिए परेशानी का कारण बनती जा रही है।

सत्यपाल मलिक ने सोमवार को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के इस आरोप का खंडन किया कि उन्होंने राज्यपाल के रूप में अपने कई कार्यकालों की समाप्ति के बाद ही केंद्र के खिलाफ बोला था, और इसलिए उनकी विश्वसनीयता संदिग्ध थी। मलिक ने एक अंग्रेजी अखबार को बताया, मैं श्री अमित शाह का बहुत सम्मान करता हूं और मैं उनके साथ बहस में नहीं पड़ना चाहता, लेकिन इस मामले की सच्चाई यह है कि जब मैं राज्यपाल था, तब मैंने पुलवामा और किसानों के मुद्दे पर बात की थी।

किसान आंदोलन पर उनका बयान आंदोलन के जारी रहने के दौरान ही सार्वजनिक हो चुका था, इस पर संदेह की कोई गुंजाइश नहीं है। मलिक ने कहा पुलवामा पर मुझे चुप रहने के लिए कहा गया था। जब मैं मेघालय का राज्यपाल था तो मैंने उनसे (किसान आंदोलन के संबंध में) कहा था, लोग मर रहे हैं, कुछ करो। बाद में सरकार को ही सॉरी कहने और (नए कृषि) कानूनों को वापस लेने के लिए मजबूर होना पड़ा।

मलिक ने एक साक्षात्कार में कहा था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उन्हें चुप करा दिया था, जब उन्होंने जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल के रूप में कहा था कि 14 फरवरी, 2019 के पुलवामा हमले के लिए केंद्र की चूक जिम्मेदार थी। साक्षात्कार में, मलिक ने भाजपा से जुड़े भ्रष्टाचार के आरोपों को भी दोहराया, जिसके बारे में उन्होंने दावा किया कि मोदी को पता था।

दूसरी तरफ शनिवार को बेंगलुरु में अमित शाह ने कहा, मुझे बस इतना कहना है कि आप भी पूछिए कि हमें छोड़कर जाने के बाद यह सब कैसे याद आता है? प्रशासन में रहते हुए आत्मा क्यों नहीं जागती? लोगों और पत्रकारों को विश्वसनीयता के बारे में सोचना चाहिए। अगर यह सब सही है, तो जब वह राज्यपाल थे तो चुप क्यों थे?

वैसे यह प्रमाणित तथ्य है कि पुलवामा घटना के बाद भी सत्यपाल मलिक ने इसे अपनी जिम्मेदारी के तौर पर स्वीकारा था। 2021 में, जब वह मेघालय के राज्यपाल थे, तब मलिक ने राजस्थान के झुंझुनू में एक सार्वजनिक कार्यक्रम में दावा किया था कि जम्मू और कश्मीर में दो परियोजनाओं को मंजूरी देने के लिए प्रत्येक को 150 करोड़ रुपये की रिश्वत की पेशकश की गई थी, जब वह वहां के राज्यपाल थे।

उन्होंने आरएसएस के एक नेता पर इन परियोजनाओं की पैरवी करने का आरोप लगाया था। नेता ने उनके खिलाफ मानहानि का मुकदमा दायर किया है। इसके अलावा किसान आंदोलन के दौरान किसानों के समर्थन में खुलकर बोलने की बात भी प्रमाणित है। इसलिए अब देश की करवट लेती राजनीति में सत्यपाल मलिक के नये बयान ने पुलवामा के उस मुद्दे को जिंदा कर दिया है, जिसे कभी राहुल गांधी ने उठाया था।

उस वक्त राहुल गांधी को भी सैनिकों का मनोबल गिराने वाला और पाकिस्तान की मदद करने वाला करार दिया गया था। अब भारत जोड़ो यात्रा के बाद वकई राहुल गांधी की छवि बदल चुकी है। इसलिए पुलवामा की दुखद घटना पर नये सिरे से सवाल खड़ा हो रहा है। दरअसल भाजपा भी सवाल की दिशा को बदलने का भरसक प्रयास कर रही है।

अमित शाह के बाद भाजपा के दूसरे नेताओं ने भी सत्यपाल मलिक के बयान के समय को लेकर सवाल किया है। लेकिन असली सवाल इसके पीछे यथावत खड़ा है कि किसके आदेश पर सीआरपीएफ की इस विशाल टुकड़ी को सड़क मार्ग से भेजा गया था। यह तो प्रमाणित तथ्य है कि उस वक्त भी विमान उपलब्ध कराने के अनुरोध को केंद्रीय गृह मंत्रालय ने रोक रखा था।

यह कोई नई जानकारी नहीं है। पूर्व के मीडिया रिपोर्टों में उसी समय इस बात का उल्लेख हो चुका था। इसलिए चुनावी माहौल में पुलवामा पर चर्चा को हल्के में लेना भाजपा के लिए भी मुसीबत का कारण बनती जा रही है। दरअसल भाजपा की दूसरे परेशानी यह है कि कई दशकों से लगातार हर विषय पर बोलने वाले नरेंद्र मोदी अडाणी पर राहुल गांधी द्वारा संसद में उठाये गये सवालों के बाद से ही चुप्पी साधे हुए हैं। देश में भाजपा ने ही खुद को मोदी के तौर पर प्रचारित किया है। अब उनके चुप होने का अर्थ भाजपा की चुप्पी हो चुकी है।

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