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सलाम कीजिये आली जनाब आये हैं .. .. ..

सलाम करने का अंदाज ही अलग होता है क्योंकि यह इलेक्शन का मौसम होता है। अपने मोदी जी से लेकर केजरीवाल जी तक हर कोई जनता के दर पर झूका जा रहा है। प्रधान सेवक से गारंटी हीरो तक की जुबान एक जैसी चल रही है। बेचारे क्या करें भारतीय लोकतंत्र में यही एक मौका होता है जब ना चाहते हुए भी ऐसा करना ही पड़ता है। हिमाचल का रिजल्ट डब्बे में बंद है और गुजरात का डब्बा बंद होने वाला है।

इन डब्बों में क्या छिपा है, इसी का तो अंदाजा लगाने में जी तोड़ कोशिश हो रही है। अगर कहीं कुछ कमी-कसर रह गयी हो तो उसे अगले दौर में पूरा कर लिया जाए, यह भी एजेंडा है।

वैसे मानना पड़ेगा कि अब कांग्रेसी बहुत चालाक हो गये हैं। इस बार मोदी जी के रोड शो में एंबुलेंस का खेल बिगाड़ दिया। एक कांग्रेस प्रवक्ता ने एंबुलेंस को रोकने और उसे आगे बढाने का भी वीडियो जारी कर दिया कि यह फिर से एंबुलेंस का प्रचार खेल है।

उधर दिल्ली में अपने केजरीवाल गारंटी कार्ड खेल रहे हैं और भाजपा वाले परेशान हो रहे है। सभी को पता है कि इन दोनों ही चुनावों का भारतीय राजनीति में असर पड़ेगा। गुजरात में रिजल्ट भाजपा के लिए कमजोर संकेत लाया तो आने वाले दिनों में भाजपा की परेशानी बढ़ेगी।

दूसरी तरफ दिल्ली में आम आदमी पार्टी जीत गयी तो दिल्ली में उप राज्यपाल अपना होने के बाद भी भाजपा बहुत कमजोर हो जाएगी क्योंकि तीन नगर निगमों को मिलाकर एक करने का भाजपा का फैसला बाद में उसके गले की हड्डी बन जाएगा।

इसी बात पर यही फिल्मी गीत याद आता है। वैसे भी इस गीत की चर्चा पहले कई चुनावी मौकों पर कर चुका हूं। फिल्म आंधी के इस गीत को लिखा था गुलजार ने और संगीत में ढाला था राहुल देव वर्मन ने। यह एक कोरस गीत है और इसे गाया था अमित कुमार, भूपेंद्र और मोहम्मद रफी ने। गीत के बोल कुछ इस तरह हैं।

आरती मन मानती कहना क्यूँ नहीं मानती

पाठशाला में छुट्टी हो गई बस्ता क्यूँ नहीं बाँधती

आ सलाम कीजिये आई हैं हाँ सलाम कीजिये

आई हैं आरती देवी

आ ये ठेकेदार हैं भारत की भारती देवी

सलाम कीजिये आली जनाब आये हैं

ये पाँच सालों का देने हिसाब आये हैं

सलाम कीजिये आली जनाब आये हैं

ये पाँच सालों का देने हिसाब आये हैं

सलाम कीजिये आली जनाब आये हैं

आ सलाम कीजिये ओ सलाम कीजिये ओ सलाम कीजिये

आली जनाब आये हैं

जो इन ख़ुदाओं को सजदा करे ना

क़ाफ़िर है बस एक वोट नहीं है

ये जान हाज़िर है

हाँ बहुत लगाये-उतारे हैं

नाम के लेबल,चलाई कुर्सियाँ हमने

जमाये हैं टेबल

आ हिसाब दीजिये

हिसाब दीजिये हम बेहिसाब आये हैं

हिसाब दीजिये हम बेहिसाब आये हैं

तो मिल कर सलाम कीजिये

आली जनाब आये हैं

ये पाँच सालों का देने हिसाब आये हैं

सलाम कीजिये आली जनाब आये हैं

हमारे वोट खरीदेंगे हमको अन्न दे कर

ये नंगे जिस्म छुपा देते हैं क़फ़न दे कर

आ ये जादूगर हैं

ये चुटकी में काम करते हैं

ये भूख-प्यास को बातों से रम करते हैं

आ हमारे हाल पे

हमारे हाल पे लिखने किताब आये हैं

हमारे हाल पे लिखने किताब आये हैं

अरे भइ इसलिये सलाम कीजिये

आली जनाब आये हैं ये पाँच सालों का देने

हिसाब आये हैं

सलाम कीजिये आली जनाब आये हैं

ये पाँच सालों का देने हिसाब आये हैं

आये हैं आये हैं

सलाम कीजिये आली जनाब आये हैं

हमारी ज़िन्दगी अपनी है आप की तो नहीं

ये ज़िन्दगी है ग़रीबी की पाप की तो नहीं

आ ये वोट देंगे मगर अब के यूँ नहीं देंगे

आ चुनाव आने दो

हम आपसे निपट लेंगे

हाँ के पहले देख लें

के पहले देख लें क्या इन्क़लाब लाये हैं

के पहले देख लें क्या इन्क़लाब लाये हैं

ये इन्क़लाब लाये हैं

सलाम कीजिये आली जनाब आये हैं

ये पाँच सालों का देने हिसाब आये हैं

सलाम कीजिये आली जनाब आये हैं

सलाम कीजिये सलाम कीजिये

सलाम कीजिये आली जनाब आये हैं

ये पाँच सालों का देने हिसाब आये हैं

आये हैं आये हैं

सलाम कीजिये आली जनाब आये हैं

उधर इन चुनावों से अलग एक पप्पू पैदल चलते हुए यह साबित कर गया कि वह वाकई अब पास हो गया है। जिस तरीके से वह अपनी सभाओं में मुद्दा उठा रहा है, उससे तय है कि जिस पार्टी का कंफिडेंस और लोकप्रियता पेंदे से जा टिकी थी, वह वापस लौट रही है।

ऊपर से बार बार शरारती लोग मोटा भाई को भी पैदल चलने की चुनौती देते जा रहे हैं। इनके बीच मीडिया पर विरोधी दलों की तरफ से हो रहा प्रहार भी यह बताता है कि विपक्षी दलों का मुख्यधारा की मीडिया पर से भरोसा उठ गया है। इसलिए तो कहता हूं जनाब कि सलाम कीजिए।

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