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गहरे समुद्र के कई नई प्रजातियों का पता चला

  • तीन मील की गहराई में अंधेरे का जीवन

  • रात के अंधेरे में शिकार करते हैं कई जीव

  • सारे जीव वहां रंगहीन नहीं कुछ रंगीन भी

राष्ट्रीय खबर

रांचीः समुद्री वैज्ञानिकों ने फिर से कई नई प्रजातियों की पहचान करने का दावा किया है। इन प्रजातियों के बारे में पूर्व में कोई विवरण दर्ज नहीं है। इस खोज के क्रम में उस इलाके में समुद्र के भीतर बने एक विशाल पर्वत का भी पता चला है जो करीब तीन मील ऊंचा है और 44 मील के दायरे में फैला हुआ है। अनुमान है कि किसी प्राचीन ज्वालामुखी विस्फोट की वजह से समुद्र के गर्भ में इस पहाड़ का निर्माण हुआ होगा।

इन नई प्रजातियों के बारे में शोध दल को ऑस्ट्रेलिया के कोकोस द्वीप के पास जानकारी मिली है। भारत महासागर के इस इलाके के समुद्री तल का सर्वेक्षण करते हुए इन प्रजातियों को पहली बार देखा गया है। रोबोट सबमेरिन और अन्य अत्याधुनिक उपकरणों की मदद से उन्हें देख पाया संभव हुआ है।

इसी वजह से यह माना जा रहा है कि समुद्र के तमाम रहस्यों की जानकारी वर्तमान विज्ञान को शायद अब तक नहीं हो पायी है क्योंकि आय़े दिन किसी न किसी नई प्रजाति के जीवन का पता चलता है। अभी हाल ही में दो नये किस्म के खर पतवारों का भी पता चला है।

जिन नई प्रजातियों को देखा गया है, उनमें फेंगफिश सिर्फ रात के अंधेरे में ही निकलती है। यह एक खतरनाक शिकारी है और वह सिर्फ अंधेरा होने पर घात लगाकर हमला करती है तथा शिकार करने कई बार ऊपरी सतह तक भी आ जाती है। अपने रंग और बनावट की वजह से उसे सहज ही नहीं देखा जा सकता है।

समुद्र में जहां यह रहती है वहां सूर्य की रोशनी नहीं के बराबर पहुंचती है। इसलिए समझा गया है कि उसके अंदर कोई प्राकृतिक घड़ी है, जो उसे दिन और रात का अंतर बताती है। वहां पर एक ऐसी ईल भी देखी गयी है जो अंधेरे में पूरी तरह पारदर्शी नजर आती है।

शोधकर्ताओं के मुताबिक इस ईल के पास देखने की शक्ति नहीं है लेकिन वह तीन मील की गहराई में सब काम कर लेती है। इसके जीवन का दूसरा महत्वपूर्ण पहलु यह है कि यह अंडे नहीं देती है सीधे बच्चा जन्म देती है।

वरना आम तौर पर मछलियां पथरीले इलाके में अपने अंडे देती हैं, जिनसे बच्चे निकलते हैं। इस क्रम में एक हाईफिन लिजार्ड मछली भी देखी गयी है जिसकी विशेषता यह है कि वह नर और मादा दोनों भूमिकाएं निभा सकती हैं।

एक अन्य मछली का सर उसके शरीर के शेष भाग की तुलना में बहुत बड़ा है। उसे बोनी इयर्ड एशफिश कहा गया है। वैसे इस प्रजाति की अन्य मछलियों की जिक्र पहले से मौजूद है। करीब छह सौ मीटर की गहराई में एक कोंगर प्रजाति भी पायी गयी है जो समुद्री तल पर घास की तरह शिकार की ताक में बने रहते हैं।

अनुसंधान के क्रम में वैज्ञानिकों को बैटफिश भी नजर आया है। यह मछली अपने शरीर की रोशनी के सहारे शिकार को अपनी तरफ आकर्षित करती है। उसकी आंख के पास लाल और नीले रंग की रोशनी देखकर दूसरे जीव उसकी तरफ आकर्षित होते हैं।

इसे लूज जॉ यानी ढीली जबड़े वाला भी कहा गया है क्योंकि वह इसी जबड़े को नीचे की तरफ लटकाकर शिकार को पकड़ लेती है। वाइपर फिश के नुकीले दांत जरूरत पड़ने पर रोशनी देने लगते हैं। उसके शरीर में रोशनी पैदा करने का प्राकृतिक गुण है।

वैसे इसी खोज में पहली बार यह पाया गया है कि वहां उतनी अधिक गहराई में पाये जाने वाले प्राणी रंगहीन नहीं होते  हैं। वहां पर कई मछलियां मिली हैं, जो रंगीन है जबकि एक लॉबस्टार में अनेक रंग भी देखे गये हैं।

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