भूपेन गोस्वामी
गुवाहाटी: मणिपुर में पिछले साल हुए चुनाव के दौरान देश के गृह मंत्री अमित शाह ने राज्य की सबसे बड़ी समस्याओं में से एक कुकी समस्या को हल करने का वादा किया था। इसके लिए कुकी उग्रवादी गुटों ने भी गृहमंत्री अमित शाह और भाजपा का साथ दिया।
नतीजे आए तो एन बीरेन सिंह के नेतृत्व में भाजपा की सरकार बन गई लेकिन एक साल के अंदर ही अमित शाह के किए इस वादे को सीएम बीरेन सिंह ने तोड़ दिया है। इस बीच, केंद्र सरकार के मणिपुर सरकार के तीन कुकी-ज़ोमी विद्रोही समूहों के साथ एक संघर्ष विराम समझौते से हटने के फैसले का समर्थन करने की संभावना नहीं है।
इस मामले पर केंद्र की अनिच्छा को राज्य सरकार को बता दिया गया है, हालांकि राज्य सरकार कुछ कुकी समूहों की हालिया गतिविधियों पर बाद की चिंता से सहमत है। हाल ही में, मणिपुर मंत्रिमंडल ने कुकी नेशनल आर्मी (केएनए), कुकी रिवोल्यूशनरी आर्मी (केआरए) और ज़ोमी रिवोल्यूशनरी आर्मी (जेडआरए) के साथ ऑपरेशन समझौते के निलंबन से तुरंत वापस लेने का निर्णय लिया।
इस फैसले के बाद मणिपुर के चुराचंदपुर, कांगपोकपी और तेंगनोपाल जिलों में कई विरोध रैलियां हुईं और बाद में राज्य सरकार के बेदखली अभियान को लेकर कांगपोकपी जिले में पुलिस के साथ झड़पें हुईं।
राज्य ने केंद्र के साथ अपनी चिंता साझा की है कि ये संगठन सीमा पार से म्यांमार के प्रवासियों की आमद का समर्थन कर रहे थे। अफीम की खेती और नशीली दवाओं के व्यापार को प्रोत्साहित कर रहे थे और अतिक्रमित वन भूमि पर मौजूद कुकी गांवों में बेदखली अभियान के विरोध के पीछे हैं।
राज्य सरकार का मानना है कि स्वदेशी जनजातीय नेताओं के मंच द्वारा आयोजित विरोध प्रदर्शनों के पीछे विद्रोहियों ने अपना वजन डाला।सरकारी सूत्रों के मुताबिक गृह मंत्रालय राज्य के घटनाक्रम पर करीब से नजर रख रहा है। मणिपुर सरकार द्वारा उठाई गई चिंताएँ गंभीर हैं और उनसे निपटने की आवश्यकता है। लेकिन क्या ऑपरेशन संधि के निलंबन से हटना ही एकमात्र तरीका है जिस पर विचार करने की आवश्यकता है।
पिछले हफ्ते, मणिपुर के मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह ने नई दिल्ली में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात की और सूत्रों के अनुसार, उनसे समझौते के प्रावधानों को स्पष्ट करने और नियमों का कड़ाई से पालन सुनिश्चित करने का आग्रह किया। मणिपुर के मुख्य सचिव डॉ राजेश कुमार के नेतृत्व में एक प्रतिनिधिमंडल ने केंद्रीय गृह सचिव अजय भल्ला और केंद्र की शांति वार्ता वार्ताकार ए के मिश्रा से भी मुलाकात की।
8 सितंबर, 1980। मणिपुर के इतिहास की वो तारीख, जब भारत सरकार ने आधिकारिक तौर पर मणिपुर को अशांत क्षेत्र घोषित कर दिया और वहां पर अफस्पा यानी कि आर्म्ड फोर्सेस स्पेशल पावर एक्ट, 1958 को लागू कर दिया गया। तब से अब तक 42 साल से ज्यादा का वक्त बीत चुका है, लेकिन अब भी मणिपुर में अफस्पा लागू ही है यानी कि अब भी भारत सरकार के लिए मणिपुर अशांत क्षेत्र ही है।
मणिपुर में अब भी कम से कम 8 ऐसे संगठन हैं जो भारत सरकार के लिए या तो आतंकवादी हैं या फिर वो कानून के खिलाफ काम करने वाले हैं।केंद्रीय गृह मंत्रालय ने पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) और उसके पॉलिटिकल विंग रिवोल्यूशनरी पीपुल्स फ्रंट (आरपीएफ) को आतंकवादी संगठन बताया है।
ऐसे ही यूनाइटेड नेशनल लिबरेशन फ्रंट (यूएनएलएफ) और उसका सशस्त्र संगठन मणिपुर पीपल्स आर्मी, पीपल्स रिवोल्यूशनरी पार्टी कांगलीपाक, कांगलीपाक कम्युनिस्ट पार्टी, कांगली याओल कनबा लुप, को-ऑर्डिनेशनल कमेटी, एलाएंस फॉर सोशलिस्ट युनिटी कांगलीपाक और मणिपुर पीपुल्स लिबरेशन फ्रंट भी या तो आतंकी संगठन हैं या फिर ये कानून के खिलाफ काम कर रहे हैं।
पिछले साल 2022 में जब विधानसभा के चुनाव होने थे तो गृहमंत्री अमित शाह ने ऐलान किया था कि अगले पांच साल यानी कि साल 2027 तक मणिपुर में कुकी समस्या का पूरी तरह से समाधान कर दिया जाएगा। अमित शाह के इस ऐलान के बाद कुकी समुदाय के लोग भाजपा के साथ आ गए। वोट भी दिया और फिर से एन बीरेन सिंह को भाजपा का मुख्यमंत्री बना दिया लेकिन अब एक साल का भी वक्त नहीं बीता है कि 2008 से चले आ रहे समझौते को एन बीरेन सिंह की सरकार ने तोड़ने का एलान कर दिया है।