अजब गजबमुख्य समाचारविज्ञानस्वास्थ्य

बिल्कुल असली प्रोटिन तैयार किया इस तकनीक ने

चिकित्सा जगत में कृत्रिम बुद्धिमत्ता का प्रयोग तेजी से बढ़ रहा है

  • यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया के फार्मेसी स्कूल का प्रयोग

  • दुनिया के हर उपलब्ध प्रोटिन का आंकड़ा पेश किया गया

  • उत्पादन की परख कई किस्म के प्राकृतिक प्रोटिनों से की गयी

राष्ट्रीय खबर

रांचीः कृत्रिम बुद्धिमत्ता यानी आर्टिफिशियल इंटैलिजेंस का इस्तेमाल चिकित्सा जगत में दिनोंदिन बढ़ता जा रहा है। दरअसल इस तकनीक के प्रयोग की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि वह पूर्व निर्धारित संकेतों के आधार पर खुद ही तय करता है कि उसे क्या करना है।

इसलिए इस तकनीक में मानवीय भूलों के दोहराये जाने का खतरा नहीं होता। इस क्रम में अब प्रयोगशाला में शुरु से अंत तक वैसे प्रोटिनों का उत्पादन इसी तकनीक का प्रयोग पूरी तरह सफल साबित हुआ है। इससे उम्मीद बढ़ी है कि एंजाइम आधारित दवा तैयार करने तथा उन्हें मरीजों के किसी खास आंतरिक अंग तक पहुंचाने में यह विधि अत्यंत कारगर सिद्ध होगी।

प्रयोग में यह पाया गया है कि आर्टिफिशियल इंटैलिजेंस ने एंजाइम के अलावा एमिनो एसिड की श्रृंखला को भी बिल्कुल असली की तरह तैयार कर लिया है। ऐसा सिर्फ प्राकृतिक प्रोटिनों से ही पहले हो पाता था। इसके बारे में बताया गया है कि जीव विज्ञान के सिद्धांतों में जिस तरीके से प्राकृतिक माइक्रो प्रोटिनों का उत्पादन होता है, इस ए आई विधि में उनका अक्षरशः पालन किया गया। जिससे बिल्कुल असली प्रोटिन तैयार हो पाये हैं।

यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया सॉन फ्रांसिसको के स्कूल ऑफ फार्मेसी ने इस पर काम किया है। इस परियोजना को प्रोजेन का नाम दिया गया था। इसमें क्रमवार तरीके से होने वाले तमाम प्राकृतिक क्रियाओँ का ही अनुसरण किया गया। सिर्फ यह काम आर्टिफिशियल इंटैलिजेंस के आधार पर सामान्य तरीके से किया गया।

शोध दल के नेता और प्रोफसर जेम्स फ्रेजर ने बताया कि यह एक एक पायदान ऊपर चढ़ने जैसा था। इसमें सफलता मिलने के बाद इस विधि को और परिष्कृत और उन्नत बनाने की दिशा में काम चल रहा है।

इस बारे में जानकारी हासिल करने के बाद कई वैज्ञानिकों ने यह उम्मीद भी जतायी है कि इस खोज के लिए शायद नोबल पुरस्कार भी प्रदान किया जा सकता है। दुनिया में पिछले पचास वर्षों से यह काम चलता आ रहा था। लेकिन अब जाकर इसमें सही अर्थों में कामयाबी मिली थी। वरना इससे पहले जो प्रोटिन बनाये गये थे उनमें कुछ ना कुछ खामी पायी गयी थी।

अब इस प्रयोग के सफल होने के बाद खास किस्म की बीमारियों के ईलाज में काम आने वाली प्रोटिन का प्रयोगशाला में उत्पादन संभव होगा और इससे मरीजों को बिना साइड एफेक्ट वाली दवा भी उपलब्ध करायी जा सकेगी। जिस काम के लिए जिस प्रोटिन की आवश्यकता है, वह बिना किसी मिलावट के सीधे मरीजों के अंगों तक पहुंचेगा।

इससे चिकित्सा जगत में खास तौर पर दवा के प्रयोग और उत्पादन की दिशा और दशा भी बदल जाएगी। वैसे शोध दल को उम्मीद है कि इसी एक विधि से दुनिया के पर्यावरण के लिए खतरा बन चुके प्लास्टिक को भी नष्ट किया जा सकेगा।

प्लास्टिक को नष्ट करने वाले असली प्रोटिनों का उत्पादन होने पर वैसे कचड़े को सिर्फ इनकी मदद से खत्म किया जा सकेगा, जो आम तौर पर सैकड़ों साल तक जमीन या पानी में होने के बाद भी नष्ट नहीं होते हैं। इसकी विशेषता यह होगी कि प्रयोगशाला में तैयार होने की वजह से वह दूसरे एंजाइमों के जैसा ही मजबूत होगा और बिना आवश्यकता के दूसरे प्रोटिनों के साथ प्रतिक्रिया भी नहीं करेगा।

इस काम को सफल बनाने के लिए शोध दल ने दुनिया में मौजूद सभी 280 मिलियन प्रोटिनों की संरचना के आंकड़े डाले थे। इन तमाम आंकड़ों को समझने और उनका विश्लेषण करने के लिए आर्टिफिशियल इंटैलिजेंस युक्त कंप्यूटरों को कुछ सप्ताह का समय दिया गया था।

इसके बाद वहां से 56 हजार ऐसी श्रृंखलाओं का संकेत मिले जो पांच खास किस्म की प्रजाति के एंजाइम थे। जो नमूने निकले थे, उनमें से एक सौ का परीक्षण किया गया। इनकी परख प्राकृतिक प्रोटिनों से की गयी और पाया गया है कि वे आचरण में बिल्कुल प्राकृतिक प्रोटिनों के जैसे ही हैं।

इसके बाद मुर्गी के अंडों के सफेद हिस्से में पाये जाने वाले एंजाइमों से उनका मिलान अलग से किया गया। इसके अलावा इंसानी आंसू, मुंह के लार और दूध में पाये जाने वाले प्रोटिन की भी परख में यह विधि सफल साबित हुई।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button