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भारतीय सेना ने फिर चुपचाप रच दिया दो इतिहास

भारतीय सेना की गतिविधियों पर राजनीतिक चर्चा नहीं हो तब भी हमारी सेना सिर्फ सीमा पर ही सफलता नहीं पाती है। इस बार तो सेना ने महिला सशक्तिकरण के दो नमूने पेश किये हैं। इनकी बदौलत देश की बेटियों को आगे बढ़ने का हौसला मिलेगा।

कई स्थानों पर जहां नारी सुरक्षा का सवाल राजनीतिक विवादों से घिरा रहता है, वहीं भारतीय सेना की थलसेना और वायुसेना ने दो अलग अलग कीर्तिमान स्थापित कर पूरी दुनिया को भारतीय धर्मनिरपेक्षता का भी जीता जागता नमूना पेश किया है।

इनकी चर्चा आम मीडिया में नहीं हुई लेकिन यह तय है कि आने वाले दिनों में यह दोनों कीर्तिमान देश का भविष्य गढ़ने में बहुत मददगार साबित होंगे। भारतीय सेना के कैप्टन शिवा चौहान अब सियाचीन में काम कर रही है। किसी महिला सैन्य अधिकारी के इस कठिन इलाके में तैनाती की यह पहली घटना है।

इस सियाचीन को दुनिया का सबसे ऊंचा युद्धक्षेत्र माना जाता है। इस इलाके पर पाकिस्तानी कब्जे की कोशिशों को नाकामयाब करने के बाद से भारत ने कभी भी इस इलाके में ढील नहीं दी है। पहली बार किसी महिला अधिकारी को यहां तैनात किया गया है। सियाचीन वैसा इलाका है, जहां हमेशा ही तापमान शून्य से नीचे रहता है।

इस लिहाज से वहां किसी भी सैन्य अधिकारी अथवा जवान को अधिक समय तक तैनात नहीं रखा जाता और वहां जाने के पहले ही वहां के माहौल को समझने के लिए सारे लोग नीचे प्रशिक्षण और अनुभव प्राप्त करते हैं। मंगलवार को कैप्टन शिवा चौहान ने औपचारिक तौर पर वहां अपनी जिम्मेदारी संभाल ली है।

इसके माध्यम से भारतीय सेना ने पूरी दुनिया को भारतीय महिलाओं की मजबूती का जीता जागता प्रमाण दिया है। जाहिर है कि कैप्टन शिवा को देखकर दूसरी लड़कियां भी प्रेरित होंगी। बताया गया है कि वहां तैनात होने के पहले कैप्टन शिवा को एक माह के कठोर प्रशिक्षण से गुजरना पड़ा है क्योंकि अचानक वहां तैनात होने के कोई भी व्यक्ति वहां की कम हवा की वजह से अस्वस्थ हो जाता है।

इसके अभ्यास करने के बाद ही वहां रहा जा सकता है। भारतीय सेना ने उन्हें खास तौर पर स्थापित सियाचीन बैटल स्कूल में यह प्रशिक्षण दिया है। भारतीय सेना की तरफ से एक ट्विट में इसकी जानकारी दी गयी है।

इसके पहले सानिया मिर्जा ने भी कमाल कर दिखाया था। आम तौर पर सानिया मिर्जा के नाम का उल्लेख होने पर हमें टेनिस खिलाड़ी सानिया का नाम याद आता है। लेकिन इस बार की सानिया मिर्जा दूसरी है।

वह उत्तरप्रदेश के मिर्जापुर जिला के एक सामान्य परिवार की लड़की है। उसने कठोर प्रशिक्षण पूरा कर भारतीय वायुसेना में पाइलट बनने का गौरव हासिल किया है। वह देश की प्रथम मुस्लिम लड़की है, जिसने यह गौरव पाया है। इस एक उपलब्धि से खास तौर पर पाकिस्तान का मुंह बंद हो जाता है, जहां अक्सर ही यह प्रचार किया जाता है कि भारत में मुसलमानों को बराबरी का दर्जा नहीं दिया जाता है।

वैसे इसमें भी पाकिस्तान की गलती नहीं है, वहां की राजनीति का आधार ही भारत विद्वेष पर टिका हुआ है। मिर्जापुर की यशोवा गांव के एक टीवी मिस्क्री के मामूली से घर से निकलकर सानिया ने अपनी सफलता के झंडे गाड़े हैं। साथ ही उन्होंने इस मिथक को भी तोड़ दिया है कि अच्छे स्कूलों में पढ़ाई के बिना कोई उस स्तर की सफलता हासिल नहीं कर सकता।

सानिया की पढ़ाई सामान्य हिंदी माध्यम के स्कूल में हुई है। एनडीए में महिलाओं के लिए सिर्फ दो सीटें थी, जिनपर वैसी महिला पायलटों को चुना जाना था, जो फाइटर विमान उड़ा सकें। इसी चुनौती को पार कर सानिया वहां दाखिल हुई थी। एनडीए की परीक्षा में उत्तीर्ण सानिया की यह सफलता दूसरी लड़कियों के लिए भी एक उदाहरण है।

वैसे सानिया पढ़ाई में कमजोर कभी नहीं रही और बारहवीं की परीक्षा में वह पूरे जिला में प्रथम आयी थी। वैसे सानिया को यह सफलता एक बार में नहीं मिली। पहली कोशिश में फेल होने के बाद भी सानिया ने और ध्यान लगाकर तैयारी की और इस बार सफलता हाथ लगी।

अब भारतीय वायुसेना के प्रशिक्षण को पूरा करने के बाद वह भारतीय वायुसेना का युद्धक विमान चलाने वाली पहली मुस्लिम लड़की बनेगी। इन दोनों ही उदाहरणों का भारतीय मीडिया में बहुत अधिक चर्चा नहीं होने के बाद भी उनका एक स्पष्ट और दीर्घकालीन सामाजिक संदेश है। भारतीय सेना की इन दो सफलताओं से देश भर की लड़कियों को जो उत्साह और प्रेरणा मिलेगी, वह कम नहीं है। एक सफलता से कितने लोग प्रेरित होते हैं, इसका कोई आंकड़ा तो नहीं है लेकिन यह पता है कि एक महेंद्र सिंह धोनी की सफलता ने पूरे झारखंड के क्रिकेट के माहौल को ही बदलकर रख दिया है।

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