दिल्ली नगर निगम के चुनाव के एक्जिट पोल यही बता रहे हैं कि वहां पंद्रह सालों से चला आ रहा भारतीय जनता पार्टी का कब्जा खत्म होने जा रहा है। इस बार आम आदमी पार्टी की जीत की संभावना व्यक्त की गयी है। इससे साफ है कि दिल्ली में खास तौर पर स्कूल और स्वास्थ्य पर इस सबसे नई पार्टी ने जो काम किया है, उसे समर्थन मिल रहा है। जिस मजबूती से आम आदमी पार्टी इस मॉडल को बार बार सामने रखती आयी है, उसका राजनीतिक परिणाम अब तो दूसरे दलों को भी समझ लेना चाहिए।
यह अलग बात है कि अब अन्य राजनीतिक दल भी इस मुद्दे पर बात करने पर मजबूर हो गये हैं और धीरे धीरे देश की चुनावी राजनीति उसी तरफ जा रही है, जिसे नरेंद्र मोदी ने मुफ्त की रेवड़ी करार दिया था। दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) के चुनाव में सभी एग्जिट पोल में दिल्ली की सत्ताधारी आम आदमी पार्टी की अजेय बढ़त का दावा किया गया है। अगर आम आदमी पार्टी यह चुनाव जीतती है तो दिल्ली विधानसभा के बाद भाजपा नगर निगम से भी गायब हो जाएगी। एमसीडी में 15 साल से अपना दबदबा बनाए रखने वाली भाजपा को अलग-अलग एग्जिट पोल में 84-94 सीटें मिलने का अनुमान लगाया गया है। आप को 250 में से 146-175 तक सीटें मिल सकती हैं। यह बहुमत के लिए जरूरी 126 सीटों से कहीं ज्यादा है।
वहीं, सभी सर्वे में हर बार की तरह कांग्रेस पार्टी को दिल्ली में सबसे कम सीटें मिलने का अनुमान लगाया गया है। वैसे इस बात पर भी ध्यान देना चाहिए कि चुनाव खत्म होने के साथ साथ राजनीतिक सिनेमाघरों के पर्दों पर से सुकेश चंद्रशेखर और सत्येंद्र जैन के जेल के वीडियो के मामले से जुड़ी फिल्में उतर गयी हैं। इससे साफ है कि इन मुद्दों को भी सिर्फ चुनावी लाभ के लिए उछाला गया था।
अब जनता ने इन मुद्दों को भी नजरअंदाज कर दिया है। गुजरात में भले ही भाजपा को फिर से सत्ता की चाभी मिलने की उम्मीद जतायी गयी हो लेकिन दिल्ली नगर निगम पर आप का होना भारतीय जनता पार्टी के लिए अब परेशानी की बात है। इससे पहले इस नगर निगम के सहारे भी भाजपा ने दिल्ली में खुद को बनाये रखने की भरसक कोशिश की थी। केंद्र सरकार के बार बार हस्तक्षेप और उप राज्यपाल की गतिविधियों को भी जनता ने अच्छी नजरों से नहीं देखा है,
इस बात को समझने की जरूरत है। अच्छे सरकारी स्कूल और अस्पतालों में मुफ्त ईलाज के बाद अगर कोई राज्य सरकार सीना ठोंककर मुनाफे के बजट की बात कर रही है तो जनता को अच्छी सरकार के काम काज का महत्व भी समझ में आ रहा है।
यह धीरे धीरे साफ होता जा रहा है कि अरविंद केजरीवाल ने प्रारंभ में जो बात कही थी वह असर दिखाने लगी है। अरविंद केजरीवाल ने पार्टी के गठन के वक्त यह कहा था कि वह राजनीति करने नहीं बल्कि राजनीति को बदलने आये हैं। अब बेहतर स्कूल और अस्पताल बनाकर जनता को सीधे तौर पर आर्थिक राहत देते हुए उन्होंने यह नमूना देश के सामने पेश कर दिया है कि सरकार में अगर इच्छाशक्ति और ईमानदारी हो तो यह काम किये जा सकते हैं।
इसके उत्तर में कई राजनीतिक दलों के नेताओं ने दिल्ली के भौगोलिक आकार के छोटा होने की दलील दी है। फिर भी उनके सामने यह सवाल अब बहुत बड़ा है कि पिछले 75 वर्षों में हर राज्य का कमसे कम एक जिला इसी तर्ज पर विकसित क्यों नहीं हो पाया। खास तौर पर सरकारी स्कूल और सरकारी अस्पतालों की स्थिति में सुधार तो क्रमवार तरीके से भी किया जा सकता था। अगर ऐसा नहीं हुआ है तो अरविंद केजरीवाल का यह दावा कहीं न कहीं सच के करीब खड़ा दिखता है कि दरअसल राजनीतिक दलों ने जनता के लिए काम करने का प्रयास ही नहीं किया था, वे तो बस राजनीति में निजी लाभ के लिए काम करते रहे।
दूसरी तरफ यह बात भी साफ होती जा रही है कि देश की जनता अब बदले की भावना वाली राजनीति को भी पसंद नहीं कर रही है। वरना सत्येंद्र जैन और मनीष सिसोदिया पर हुई कार्रवाई का कुछ तो असर दिल्ली नगर निगम के चुनाव में दिखना चाहिए था। अब दिल्ली का यह नया समीकरण आने वाले दिनों में मोदी सरकार को नई चुनौतियों के सामने खड़ी कर देगा, यह भी स्पष्ट है।
पुलिस और केंद्रीय एजेंसियों के इस्तेमाल से किसी लोकप्रिय सरकार को बदनाम करने की साजिशें स्थायी तौर पर कामयाब नहीं होती, यह भी एक जनादेश ही है। अब गुजरात में छह प्रतिशत वोट हासिल करने के बाद खुद को राष्ट्रीय पार्टी के तौर पर स्थापित कर चुकी केजरीवाल की पार्टी अब पंजाब में बेहतर काम कर अपनी गारंटियों के सहारे और आगे बढ़ेंगी, यह तय हो गया है।