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गुजरात एटीएस और जीएसटी इकाई की डेढ़ सौ ठिकानों पर छापामारी

  • करीब बारह सौ करोड़ रुपये की कर चोरी

  • फर्जी गिरोह के भंडाफोड से राज खुला

  • पिछले छह माह से जारी था यह धंधा

राष्ट्रीय खबर

अहमदाबादः विधानसभा चुनाव के करीब आने के बीच ही एटीएस और जीएसटी टीम ने यहां डेढ़ सौ ठिकानों पर छापा मारा है। मिली सूचना के मुताबिक इस संयुक्त अभियान को एक साथ राज्य के 13 जिलों में चलाया गया था। पता चला है कि गुजरात की एंटी टेररिज्म स्क्वाड द्वारा पूर्व में हुई कार्रवाई के सिलसिले में ही यह छापामारी हुई है।

एटीएस ने गत 11 नवंबर को 11 ठिकानों पर छापा मारा था। पता चला है कि गुजरात के अहमदाबाद, सूरत, भरूच, जामनगर और भावनगर जैसे महत्वपूर्ण शहर भी इसके दायरे में आये हैं। इसबात की जानकारी तब मिली थी जब 22 अक्टूबर को एक अंतर्राष्ट्रीय रैकेट का भंडाफोड हुआ था।

उस गिरोह के लोग लोगों को फर्जी पासपोर्ट और वीसा देकर विदेश भेजने की ठगी किया करता था। इस सिलसिले में चार लोगों को गिरफ्तार किया गया था। उसके बाद से ही लगातार इस बारे में लगातार नई नई सूचनाएं जांच टीम को मिल रही है। यह कार्रवाई तब हुई है जबकि पूरा प्रशासन अभी विधानसभा चुनाव संपन्न कराने में जुटा हुआ है।

यहां के लिए विलंब से हुई घोषणा के मुताबिक आगामी 1 और पांच दिसंबर को यहां दो चरणों में मतदान होगा जबकि मतों की गिनती का काम 8 दिसंबर को होगा। 182 सीटों वाली विधानसभा के इस चुनाव के पहले चरण में 89 सीटों पर वोटिंग होगी जबकि दूसरे चरण में 93 पर मतदान होगा।

रविवार के दिन हुई इस कार्रवाई में 115 फर्मों के खिलाफ कार्रवाई हुई है। इसके कुल 205 ठिकानों का पता चला है। इस सिलसिले में अब तक 91 लोगों से पूछताछ की जा रही है। प्रारंभिक तौर पर इसे बारह सौ करोड़ रुपये का घोटाला माना गया है। जिन कंपनियों के खिलाफ अब यह कार्रवाई हुई है, वे कबाड़ मेटल, केमिकल, लौहा के रॉड के कारोबार से जुड़े रहे हैं।

14 जिलों में इनके प्रतिष्ठानों पर आरोप है कि वे फर्जी बिल तैयार कर जीएसटी की गड़बड़ी करते आ रहे थे। इनलोगों ने इन्हीं फर्जी बिलों के जरिए राज्य सरकार को भी धोखा देने का काम किया है। इन तमाम ठिकानों से मिले दस्तावेजों की जांच की जा रही है। इसके साथ ही वहां से बरामद कंप्यूटर और पेन ड्राइवों को भी जब्त किया गया है। यह गड़बड़ी पिछले छह महीनों से चल रही थी। इसलिए संयुक्त जांच दल को संदेह है कि विभागीय अधिकारियों की मिलीभगत के बिना ऐसा कर पाना संभव नहीं था। इसलिए अंदेशा है कि जांच का काम पूरा होने के बाद कुछ अधिकारी भी इसी कार्रवाई की चपेट में आ जाएंगे।

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