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रांची: झारखंड उच्च न्यायालय ने नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो की ओर से रांची में दर्ज एक केस को फर्जी करार देते हुए निरस्त कर दिया। कोर्ट ने केस में जेल में आठ साल से बंद व्यक्ति को रिहा करने और उसे मुआवजे के तौर पर आठ लाख रुपए के भुगतान का आदेश दिया है।
हाई कोर्ट के जस्टिस एसके द्विवेदी की अदालत ने एनसीबी के रांची सब जोन के एडिशनल डायरेक्टर जनरल के माध्यम से निर्दोष करार दिए गए व्यक्ति को मुआवजे का भुगतान सुनिश्चित कराने को कहा है। प्रार्थी की ओर से अधिवक्ता शैलेश पोद्दार ने मामले की पैरवी की। अधिवक्ता ने कहा कि प्रार्थी बिना किसी जुर्म के आठ साल से जेल में रह रहा है।
एनसीबी भी इस केस को फर्जी बता चुकी है। ऐसे में इस केस को निरस्त किया जाए। गौरतलब है कि प्रार्थी ने अपने खिलाफ एनसीबी की ओर से रांची में दर्ज केस को निरस्त करने तथा बिना किसी जुर्म के आठ साल जेल में बिताने को लेकर 50 लाख रुपये का मुआवजा दिलाने का आग्रह कोर्ट से किया था।
उनकी ओर से कोर्ट को बताया गया था कि एनसीबी के अधिकारियों ने फर्जी तरीके से मंगा सिंह सहित दो लोगों के खिलाफ वर्ष 2015 में केस दर्ज किया था। एनसीबी के अधिकारियों ने मंगा सिंह को बिहार के गया जिला स्थित बाराचट्टी के पटियाला ढाबा से पकड़ा था। वहां वह वेटर और साफ-सफाई का काम करता था।
बाद में एनसीबी के अधिकारियों ने उसे रांची लाकर उसके साथ दो अन्य के खिलाफ ड्रग्स कारोबार के केस में प्राथमिकी दर्ज कर ली। दूसरी तरफ गया पुलिस ने मामले को फर्जी बताया था। बाद में एनसीबी ने भी पाया कि यह मामला फर्जी तरीके से प्लांट किया गया था। इसके बाद एनसीबी ने इस मामले में अपने ही आठ अधिकारियों के खिलाफ फर्जी मुकदमा दायर करने को लेकर प्राथमिकी दर्ज करायी है। इस मामले में कार्रवाई भी शुरू हो चुकी है। फर्जी मामला बनाने वाले एनसीबी के अधिकारियों के खिलाफ आरोप पत्र भी दाखिल हो चुका है।