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सृजन घोटाला मास्टरमाइंड रही रजनी प्रिया गिरफ्तार

  • किसी रसूखदार व्यक्ति के फ्लैट से हुई है गिरफ्तारी

  • कुछ समय तक हरिद्वार में भी छिपी रही थी वह

  • मुंह खोला तो कई अफसर भी फंसेंगे जाल में

राष्ट्रीय खबर

पटनाः बिहार में सबसे बड़े सृजन घोटाले के मास्टरमाइंड कहे जाने वाली रजनी प्रिया को सीबीआई टीम ने गिरफ्तार कर लिया है बताया जाता है कि करीब 6 साल के बाद सीबीआई को रजनी प्रिया को गिरफ्तार कर पायी है। बताया जाता के जब सीबीआई ने रजनी प्रिया से पूछा कि अमित कुमार कहां है तो उन्होंने कहा कि अब दुनिया में नहीं है?

सूत्र बताते हैं कि मास्टरमाइंड रजनी प्रिया को तेजस ट्रेन से पटना लाया जा रहा है और वहां से बाई रोड भागलपुर लाए जाने की संभावना है। बताया जाता है कि गाजियाबाद के साहिबाबाद के एक रसूख वाले फ्लैट में रजनी प्रिया की गिरफ्तारी सीबीआई ने की है। लेकिन पर्दे के पीछे की सच्चाई पर विश्वास करें तो सीबीआई जैसी बड़ी जांच एजेंसी कहीं न कहीं इस पूरे घोटाले में सवालों के घेरे में हैं। देश में यह सबसे बड़ा ऐसा घोटाला है जिसमें सीबीआई को एक नामजद अभियुक्त को पकड़ने में 6 साल लग गए क्या आम जनता को कहीं ना कहीं सीबीआई जैसी जांच एजेंसी पर कैसे भरोसा करेगी।

बताया जाता है फेरारी के दौरान रजनी प्रिया ने डेढ़ से 2 साल हरिद्वार में बिताए हैं यह भी चर्चा है कि हरिद्वार के दौरान अमित कुमार रजनी प्रिया के साथ में ही रहते थे। किसी रिश्तेदार के पास अपने दोनों बच्चों को रजनी प्रिया ने छोड़ दिया था। उक्त रिश्तेदार के यहां भी सीबीआई टीम के वरीय पदाधिकारी पहुंचने जाने की सूचना है।

बताया जाता है कि रजनी प्रिया की गिरफ्तारी से यह साफ हो गया है कि कई बड़े-बड़े आईएएस और आईपीएस अधिकारी की मेहरबानी से रजनी प्रिया और अमित कुमार शहर से फरार हो गए थे। बिहार राज्य सरकार ने आनन-फानन में मामला सीबीआई जैसी जांच एजेंसी के हवाले कर दिया था लेकिन राज्य सरकार के एक बड़े आईपीएस अधिकारी जब इस जांच में पहुंचे थे तो उनकी कार्यशैली पर भी सवाल उठा था। आखिर सृजन घोटाले में बड़े-बड़े जो सूत्रधार क्या सीबीआई गिरफ्तार कर पाएगी। अब देखना यह है कि रजनी प्रिया ने सीबीआई को दिए गए बयान में क्या-क्या कहा है और किन-किन पदाधिकारी की नींद उड़ी हुई है।

राज्य के कई अधिकारियों को इस मामले के मुख्य अभियुक्त की गिरफ्तारी से यह परेशानी हो सकती है कि अगर इन अधिकारियों के बारे में अगर उसने मुंह खोल दिया तो कई लोगों की परेशानी बढ़ सकती है। वैसे भी यह आम धारणा है कि जिला के सरकारी खजाने से किसी एनजीओ को पैसा भेजने का काम बिना उच्चाधिकारियों की सहमति से संभव नहीं था।

इस बारे में अचानक जब आनन फानन में इस  जांच को पुलिस से लेकर सीबीआई को सौंप दिया गया, तब इसमें राजनीतिक मिलीभगत का संदेह उपजा था। बाद में सीबीआई की जांच इतनी धीमी पड़ गयी कि लोग यह मान बैठे कि किसी सफेदपोश के इस घोटाले में शामिल होने की वजह से जांच को जानबूझकर धीमा कर दिया गया है। इसका फायदा उठाकर इस घोटाले से जुड़े कई लोग अपनी संपत्ति बेचकर दूसरे स्थानों या राज्यों में चले गये।

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