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चहेते दारोगा को बचाने के लिए कानून ताक पर

  • डीजीपी के कार्यकाल में बेहतर सफलता नहीं

  • जांच रिपोर्ट के बाद भी प्राथमिकी दर्ज नहीं

  • दो सीनियर परस्पर आरोप में ही उलझे हैं

दीपक नौरंगी

भागलपुर: नियमों को ताक पर रखकर कैसे कानून का माखौल उड़ाया जाता है, यह अब भागलपुर में भी नजर आ गया है। यहां के एक थानेदार के कारनामा की वजह से पूरा पुलिस विभाग शर्मसार हो रही है। इसी क्रम में पुलिस मुख्यालय की भूमिका पर भी सवाल उठ रहे हैं। साथ ही यह कहा जाने लगा है कि बिहार के डीजीपी आर एस भट्टी के छह महीनों के कार्यकाल में बिहार पुलिस में कुछ नया और बेहतर नहीं देखा जा रहा है।

यह माना जा सकता है कि बिहार में फरार अपराधियों के खिलाफ एसटीएफ की टीम करीब तीन और चार सालों से बेहतर कार्य कर रही है। फरार अपराधियों और नक्सलियों के खिलाफ बेहतर सफलता प्राप्त की है इससे इनकार नहीं किया जा सकता है लेकिन भागलपुर में एक थानेदार के कारनामे पूरे बिहार और पुलिस मुख्यालय को कहीं ना कहीं शर्मसार कर रहा है।

आखिर इसके पीछे की सच्चाई बिहार के डीजीपी क्यों नहीं जानना चाहते हैं। अपने चहेते दारोगा को बचाने के लिए सीनियर पुलिस पदाधिकारी किसी भी हद तक जा सकते हैं। इसका जीता जागता उदाहरण भागलपुर जिले में देखने को मिल रहा है।

कामकाजी महिलाओं की सुरक्षा के लिए जो विशाखा गाइडलाइन का अनुपालन करने का निर्देश सभी विभागीय प्रमुखों को दिया गया था उसका अनुपालन अधिकांश कार्यालयों में नहीं हो रहा है। आरोप सत्य पाए जाने के बावजूद दरोगा पर प्राथमिकी दर्ज क्यों नहीं की गई, यह मुख्यालय से लेकर वरीय पुलिस अधिकारी तक जानने को इच्छुक हैं।

पूछा अधिकारी तो दबी जुबान से यह भी कहने लगे हैं कि अर्थ योग में दारोगा, आइपीएस पर हावी है। डी जी पी आर एस भट्टी एक ईमानदार आईपीएस अधिकारी है इससे इनकार नहीं किया जा सकता लेकिन उनके डीजीपी रहते हुए बिहार पुलिस में इस तरह के गंभीर मामले लगातार भागलपुर में अखबार की सुर्खियां बनी हुई है। जिसे बिहार पुलिस की किसी न किसी रूप में बदनामी देखी जा रही है

जानकारी के अनुसार जिले के एक दारोगा पर अपने ही महिला सहकर्मी के साथ लैंगिक अपराध का मामला सामने आया। दारोगा को बचाने के लिए पहले तो कुछ दिनों तक इस मामले को टाल आ गया, लेकिन जब इस मामले में वरीय पुलिस पदाधिकारियों का दबाव बढ़ने लगा तो त्रिस्तरीय जांच कमेटी गठित कर उस मामले की जांच कराई गई।

जांच कमेटी ने जांच के दौरान पाया कि दरोगा के विरुद्ध लगाए गए आरोप सही हैं। जांच रिपोर्ट समर्पित होने के बाद उस दरोगा को लाइन क्लोज करने का निर्देश दिया गया। जबकि यदि जांच में दरोगा दोषी पाया गया तो उसके खिलाफ प्राथमिकी दर्ज होनी चाहिए। कार्यस्थल पर लैंगिक अपराध का मामला गंभीर माना जाता है। इसके बावजूद वरिया पुलिस अधिकारी इस मामले में पूरी तरह घालमेल करने में लगे हुए हैं। पुलिस विभाग के दो सीनियर अधिकारियों के बीच इस मामले को लेकर मतभेद उत्पन्न हो गया है।

पत्रकारों द्वारा पूछे जाने पर दोनों पुलिस पदाधिकारी एक दूसरे पर यह आरोप लगाते हैं कि वह दरोगा उनका चेहता है, लेकिन दूसरा इस बात का खंडन कर कहता है कि मेरा नहीं उन्हीं का चेहता है। पुलिस मुख्यालय के हस्तक्षेप से ही यह पता चल पाएगा कि दारोगा सही मामले में किसका चेहता है।

या फिर ऐसे गंभीर मामले में पुलिस मुख्यालय के वरीय पदाधिकारी को किस प्रकार की जानकारी तो लेनी चाहिए कि आखिर पूरे मामले के पीछे सच्चाई क्या है यदि कहीं से भी लगता है कि मामले में सच्चाई है तो पुलिस मुख्यालय को गंभीरतापूर्वक ऐसे गंभीर मामले में विचार कर अपनी ओर से निर्णय लेना चाहिए

तब भी किसी आरोपित को पुलिस ने नहीं पकड़ा है। कहा जाता है कि दारोगा के दबंगई के आगे पुलिस और वरीय प्रशासनिक अधिकारी भी नतमस्तक हैं। हाल में ही ईडी ने झारखंड के सीनियर आईएएस को इस मामले पर फटकार लगाई की अवैध खनन का मामला रेवेन्यू से जुड़ा हुआ है और कलेक्टर की सीधी जिम्मेवारी बनती है कि इस मामले में कार्रवाई करें। पुलिस को इसके लिए दोषी बताने से काम नहीं चलेगा।  भागलपुर के प्रशासनिक अधिकारियों में अवैध खनन को रोकने के लिए बीते कुछ वर्षों में कोई ठोस प्रयास नहीं किया। यदि अधिकारी चाहे तो सारा अवैध खेल एक मिनटों में रूक सकता है। लेकिन सब के सब तमाशा देखने के आदी हो गए हैं।

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