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बरसो रे मेघा बरसो.. .. ..

 

बरसों रे मेघा का शब्द मॉनसून के मौसम में स्वाभाविक है। देर से मॉनसून के आने की वजह से देश के कई हिस्सों के साथ साथ राजधानी में भी बारिश ने कोहराम मचा रखा है।

विकास की तमाम परिभाषाएं इस बारिश के आगे बेबस सी नजर आती है। अधिक बारिश हुई तो जल जमाव और उसकी वजह से रास्ता बंद।

कुछ ऐसा ही हाल आर्थिक राजधानी मुंबई का भी है, जहां अब हादसा टालने के लिए मौसम विभाग लोगों क घर से नहीं निकलने तक की पूर्व चेतावनी जारी कर रहा है।

अइसे में संसद के भीतर भी जबरदस्त राजनीतिक बारिश है और खास तौर पर बार बार सत्ता पक्ष को इस बारिश में भींगना पड़ रहा है।

पिछले दिनों तृणमूल कांग्रेस के सांसद अभिषेक बनर्जी ने कुछ ऐसा बोला मानों लोकसभा के भीतर बादल ही फट गया। बुधवार को बजट पर चर्चा के दौरान अध्यक्ष ओम बिरला और तृणमूल कांग्रेस के सदस्य अभिषेक बनर्जी के बीच कई बार तीखी नोकझोंक देखने को मिली।

बनर्जी ने सत्तापक्ष के सदस्यों से कहा, अपनी कुर्सी की पेटी बांधकर रखिए, मौसम का मिजाज बिगड़ने वाला है। उन्होंने कहा, प्रधानमंत्री ने सदन में चर्चा किए बिना ही तीन कृषि कानून बना दिए। इस पर बिरला ने उन्होंने टोकते हुए कहा कि माननीय सदस्य को गलतबयानी नहीं करनी चाहिए, क्योंकि कृषि कानूनों को लेकर सदन में साढ़े पांच घंटे की चर्चा हुई थी।

इस पर बनर्जी ने जोर देकर कहा कि संबंधित विधेयक पर कोई चर्चा नहीं की गई।

इसी दौरान नोटबंदी का उल्लेख करने और बिड़ला द्वारा टोके जाने पर अभिषेक ने लोकसभा अध्यक्ष को भी यह कहकर चुप करा दिया कि जब साठ साल पहले का और नेहरू का उल्लेख इस सदन में होता है तो आप चुप रहते हैं।

आप कहते हैं कि सदन के बाहर के किसी व्यक्ति की चर्चा सदन के भीतर नहीं होगी तो क्या ममता बनर्जी भी लोकसभा की सदस्य है। कुल मिलाकर मामला कुछ ऐसा फंसा कि बेचारे अध्यक्ष भी भाजपा के साथ ही पानी पानी हो गये।

 

वहां की छोड़िए तो यूपी की चर्चा कर लें जहां योगी आदित्यनाथ पर अब दिल्ली का डंडा चलता हुआ नजर नहीं आता है। वह अपने हिसाब से राज्य को चला रहे हैं।

उनके रास्ते में दिल्ली दरबार का कोई हिमायती आता है तो वह साफ तौर पर किनारे किया जा रहा है। लिहाजा यह सवाल उठ गया है कि जेपी नड्डा के बाद जो भी राष्ट्रीय अध्यक्ष बनेगा, उस दौर में क्या होगा।

इसी बात पर फिल्म गुरु का एक गीत याद आ रहा है। फिल्म की इस गीत की पहले भी काफी चर्चा हुई थी। इस गीत को लिखा था गुलजार ने और संगीत में ढाला था ए आर रहमान ने। इसे श्रेया घोषाल ने अपना स्वर दिया था।फिल्म में इसे ऐश्वर्या राय पर फिल्माया गया था। गीत के बोल कुछ इस तरह हैं।

बरसो रे मेघा-मेघा बरसो रे, मेघा बरसो

मीठा है कोसा है, बारिश का बोसा है

जल-थल-चल-चल चल-चल बहता चल

गीली-गीली माटी, गीली माटी के

चल घरौंदे बनायेंगे रे

हरी भरी अम्बी, अम्बी की डाली

मिल के झूले झुलाएंगे रे

धन बैजू गजनी, हल जोते सबने

बैलों की घंटी बजी, और ताल लगे भरने

रे तैर के चली, मैं तो पार चली

पार वाले पर ले किनारे चली

रे मेघा… नन्ना रे..

काली-काली रातें, काली रातों में

ये बदरवा बरस जायेगा

गली-गली मुझको, मेघा ढूँढेगा

और गरज के पलट जायेगा

घर आँगन अंगना, और पानी का झरना

भूल न जाना मुझे, सब पूछेंगे वरना

रे बह के चली, मैं तो बह के चली

रे कहती चली, मैं तो कहके चली

रे मेघा… नन्ना रे…

बजट पर व्यापारिक संगठनों ने पुरानी परंपरा का पालन करते हुए तारीफ के पुल बांध दिये। लेकिन अब बजट की खामियों की चर्चा संसद के भीतर और बाहर होने लगी है। लोग उदाहरण देकर यह बता रहे हैं कि शेयर बाजार में पूंजी निवेश को भी खत्म करने की साजिश इस बजट में है। इससे विदेशी पूंजी का प्रवाह कम हो जाएगा।

खैर अपने झारखंड में हेमंत सोरेन का डंका बज रहा है पर सवाल यह उठ रहा है कि क्या हेमंत सोरेन अगले चुनाव में भी इंडिया गठबंधन का हिस्सा रहेंगे या उनके दिमाग में कुछ और चल रहा है। दरअसल राज्य का डीजीपी बदलने के फैसले की वजह से यह सोच उतरी है।

इस फैसले से अब सरकार अवमानना की दोषी है और ईडी ने पहले ही सुप्रीम कोर्ट में हेमंत सोरेन की जमानत के खिलाफ याचिका दायर की है। अब दोनों ही मामले अगर मुख्य न्यायाधीश वाई वी चंद्रचूड़ के पास पहुंचे तो क्या होगा। इन कारणों से लगता है कि आसमानी बारिश के साथ साथ राजनीति के मैदान में भी चारों तरफ मेघा बरस रही है।

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