गुजरात उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति हेमंत एम. प्रचारक गुजरात उच्च न्यायालय में कांग्रेस नेता राहुल गांधी की याचिका पर सुनवाई कर रहे हैं। इस मामले में अदालत द्वारा मोदी उपनाम टिप्पणी मानहानि मामले में उनकी दोषसिद्धि पर रोक लगाने के उनके आवेदन को खारिज कर दिया गया था।
उच्च न्यायालय की एक महिला जज पहले ही खुद को इस मामले से अलग कर चुकी है। जिसके बाद यह मामला न्यायमूर्ति प्रचारक की अदालत में पहुंचा है। उन्होंने प्रारंभिक तौर पर जो मौखिक टिप्पणियां की, उससे कान खड़े हो गये। अब पता चल रहा है कि हाई कोर्ट में जज बनने से पहले वह वकील थे।
इस दौरान उन्होंने गुजरात दंगे की एक आरोपी माया कोडनानी की तरफ से दलीलें दी थी। अभी हाल ही में कोडनानी सहित कई आरोपियों को अदालत ने बरी भी कर दिया है। न्यायमूर्ति प्रचारक के बारे में पता चला है कि वर्ष 2021 में, उन्हें गुजरात उच्च न्यायालय का न्यायाधीश नियुक्त किया गया।
इससे पहले न्यायाधीश रॉबिन पॉल मोगेरा, जो इस मानहानि मामले में दो साल की सजा के खिलाफ सूरत सत्र अदालत में गांधी की अपील पर सुनवाई कर रहे थे, 2006 के तुलसीराम प्रजापति मामले में केंद्रीय गृह मंत्री और भाजपा नेता अमित शाह के वकील थे। फर्जी एनकाउंटर का मामला रिपोर्ट में रेखांकित किया गया था कि एक वकील के रूप में मोगेरा ने कम से कम 2014 तक शाह का प्रतिनिधित्व किया था जब मामले की सुनवाई मुंबई में केंद्रीय जांच ब्यूरो की अदालत में चल रही थी।
20 अप्रैल को मामले की सुनवाई करते हुए, न्यायाधीश मोगेरा ने गांधी की अपील को खारिज कर दिया। इस अपील के राजनीतिक निहितार्थ थे, जिसका सीधा संबंध भाजपा से था क्योंकि सत्र अदालत के फैसले का असर हो सकता था। अब ऐसी ही एक रिपोर्ट आई जिसमें न्यायमूर्ति हेमंत एम. प्रचारक ने गुजरात उच्च न्यायालय में सूरत की अदालत के फैसले के खिलाफ गांधी की अपील पर सुनवाई की।
न्यायमूर्ति प्रचारक ने फरवरी 2002 में अहमदाबाद के नरोदा पाटिया और नरोदा गाम इलाकों में दंगों के बाद के मामलों में से एक मामले में विशेष एसआईटी अदालत के खिलाफ आपराधिक मामला संख्या 1708/12 में कोडनानी का बचाव किया, जहां महिलाओं सहित सौ से अधिक मुस्लिम थे।
इस दंगे में बच्चे भी मारे गए थे। नरोदा पाटिया और नरोदा गाम मामलों के सभी आरोपियों को एक सप्ताह पहले गुजरात की विशेष अदालत ने बरी कर दिया था। गुजरात में नरेंद्र मोदी सरकार में शक्तिशाली मंत्री कोडनानी के बरी होने से सक्रिय राजनीति में लौटने का मार्ग प्रशस्त हो सकता है।
गांधी ने सूरत की अदालत के फैसले से राहत पाने के लिए गुजरात उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था। हालांकि जस्टिस गीता गोपी को 27 अप्रैल को मामले की सुनवाई करनी थी, लेकिन उन्होंने खुद को इससे अलग कर लिया। चूंकि गांधी के वकील पंकज चंपानेरी ने अपील की थी कि आपराधिक पुनरीक्षण आवेदन पर तत्काल आधार पर सुनवाई की जाए, न्यायमूर्ति गोपी ने इसकी अनुमति दी लेकिन यह कहते हुए सुनवाई से खुद को अलग कर लिया औऱ कहा मेरे सामने नहीं।
इसके बाद यह मामला न्यायमूर्ति प्रचारक की अदालत में गया है। अब पता चला है कि प्रचारक ने गुजरात उच्च न्यायालय में एक वकील के रूप में अभ्यास शुरू किया और उसके बाद मोदी के अधीन गुजरात सरकार के सहायक वकील के रूप में काम किया।
2015 में, मोदी के प्रधान मंत्री बनने के बाद, उन्हें गुजरात के उच्च न्यायालय के लिए केंद्र सरकार का स्थायी वकील नियुक्त किया गया, जो 2019 तक चला। इसलिए राहुल गांधी के खिलाफ दायर मामला अब गुजरात के उन अदृश्य परतों को भी खोलता जा रहा है, जिस पर पहले आम जनता का ध्यान नहीं गया था।
लेकिन इससे गुजरात की न्यायव्यस्था पर सरकारी पकड़ कैसी है, यह भी धीरे धीरे स्पष्ट होता जा रहा है। यह अलग बात है कि कानून और विधि व्यवस्था की वास्तविक स्थिति क्या है, यह पूरा देश महिला पहलवानों के धरने और उससे जुड़े घटनाक्रमों से देख रहा है। जहां एक अभियुक्त अब भी स्पष्ट तौर पर पूरे शासन को चुनौती दे रहा है और खुद को बेकसूर भी बता रहा है।
अजीब स्थिति यह है कि कभी देश का नाम रोशन करने वाली दूसरी पूर्व महिला खिलाड़ियों ने भी अपनी बदली हुई भूमिका में शायद इस सरकार के सामने घुटने टेक दिये हैं। इस तमाम घटनाक्रमों से यह स्पष्ट होता जा रहा है कि अब शायद राहुल गांधी का मामला भी सीढ़ी दर सीढ़ी चढ़ता हुआ सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचेगा।
अपना सरकारी बंगला खाली कर राहुल गांधी ने भी यह साफ कर दिया है कि वह इतनी जल्दी हथियार डालने के मूड में नहीं हैं और इन घटनाक्रमों का राजनीतिक असर क्या हो रहा है, यह कर्नाटक विधानसभा के चुनाव में और साफ होने जा रहा है।