कोरोना वायरस का संक्रमण देश में लगातार बढ़ता जा रहा है। चूंकि सरकार ने लोगों को जबरन भीड़ के इलाकों में जाने से अथवा मास्क पहनकर निकलने की शर्त से नहीं जोड़ा है, इसलिए हम इस आसन्न खतरे को लेकर फिर से लापरवाह बने हुए हैं।
सरकार की चेतावनी, डाक्टरों की हिदायत को हल्के में लेने का क्या नतीजा हो सकता है, यह हम देश में आयी कोरोना की दूसरी लहर में देख चुके हैं। उस वक्त भी कोरोना के फैलने का एकमात्र कारण लोगों का परहेज से परहेज करना था। अब फिर हमलोग वही गलती दोहरा रहे हैं। कोविड-19 संक्रमण के मामलों में 13 अप्रैल को एक दिन में 30 फीसदी का इजाफा दर्ज किया गया और संक्रमण के मामले 7,800 से बढ़कर 10,000 का स्तर पार कर गए।
यह पिछले 223 दिनों में सबसे बड़ा इजाफा है और हमें याद दिलाता है कि 2019 के अंत से दुनिया को चपेट में लिए हुए यह वायरस कितना संक्रामक है। स्वास्थ्य मंत्रालय के मुताबिक 13 अप्रैल को देश में कोविड के 44,998 सक्रिय मामले थे। पहले की तरह ही केरल, महाराष्ट्र, दिल्ली और उत्तर प्रदेश में सबसे अधिक मामले देखने को मिल रहे हैं। इससे संकेत मिल रहा है कि लोग तेजी से दोबारा संक्रमित हो रहे हैं।
मंगलवार का राष्ट्रीय आंकड़ा यह बताता है कि 7633 नये मरीज पाये गये हैं। जिससे कुल संक्रमितों का आंकड़ा 61 हजार से ऊपर चला गया है। दूसरी तरफ इस बार मौत का प्रतिशत भी बढ़कर 1.18 हो चुका है। यह बता दें कि चिकित्सकों ने वायरस के इस नये वायरस स्वरुप को कम खतरनाक माना है।
नये वेरियंट एक्सबीबी.1.16 वायरस की प्रकृति को कमजोर माना है और इससे संक्रमित लोग अस्पताल कम ही जा रहे हैं। लेकिन साथ ही विशेषज्ञ वायरस की प्रकृति का हवाला देते हुए बार बार कह रहे हैं कि यह वेरियंट फिर से कभी भी बदलकर मारक अवस्था में आ सकता है। दूसरी तरफ वैक्सिन और बुस्टरों का इस पर कोई प्रतिरोधक असर नहीं है, यह बात भी प्रमाणित हो चुका है।
इसके बाद भी हमलोग ना तो मास्क पहन कर निकल रहे हैं और ना ही भीड़ भाड़ वाले इलाकों में जाने से परहेज कर रहे हैं। यह अजीब सी भारतीय प्रवृत्ति है कि जबतक कोई बाहरी नियंत्रण ना कायम किया जाए, खास तौर पर उत्तर भारत के लिए खुद को आत्मानुशासित नहीं कर सकते।
अब अगर बाद में फिर से स्थिति बिगड़ गयी तो उसके लिए सरकार को जिम्मेदार ठहराना हमारी पुरानी बीमारी है। चूंकि नया वायरस प्रतिरोधक क्षमता को चकमा दे सकता है , इसीलिए बुजुर्गों और बच्चों में खासतौर पर कोविड संक्रमण देखने को मिल रहा है। यह गौर करने वाली बात है कि कोरोना वायरस में अब तक 50 से अधिक बदलाव आ चुके हैं और 2019 के बाद से कोविड के मामलो में सबसे बड़े इजाफे के लिए इसी को जिम्मेदार माना जाता है और वायरस के इस प्रकार को चिंता का विषय बताया जा रहा है।
वायरस का यह प्रकार उन लोगों को संक्रमित कर सकता है जिन्हें टीका लग चुका है या जो पहले संक्रमित हो चुके हैं। पूर्व के अनुभवों के आधार पर सरकार ने अस्पतालों में कोविड अनुरूप आचरण को लेकर पूर्व तैयारी करके अच्छा किया है। बड़ा सवाल यह है कि बार बार परेशान होने के बाद भी हम खुद के आचरण में सुधार क्यों नहीं कर पा रहे हैं।
संक्रमण भले ही अभी जानलेवा न हो लेकिन यह प्रतिरोधक क्षमता को कमजोर कर सकता है। इसका न केवल जन स्वास्थ्य पर असर होगा बल्कि इससे आर्थिक संभावनाएं भी प्रभावित होंगी। और अगर इसका स्वरुप बदला और नया स्वरुप मारक हो गया तो खतरे का आकलन तो हर कोई अपने निजी अनुभव से कर सकता है।
इसके प्रसार को रोकने के लिए कई आसान उपाय अपनाए जा सकते हैं। उदाहरण के लिए यह बात ध्यान देने लायक है कि संक्रमण के मामलों में यह इजाफा इसलिए है क्योंकि जांच हो रही है। चूंकि आबादी का बड़ा हिस्सा ऐसी जांच का खर्च नहीं उठा पाएगा इसलिए जन स्वास्थ्य केंद्रों पर गरीबों के लिए नि:शुल्क या रियायती दर पर जांच की सुविधा दी जा सकती है।
चिकित्सकों का मानना यह भी है कि कोविड बूस्टर खुराक के पात्र लोगों को यह खुराक ले लेनी चाहिए ताकि उनका बचाव मजबूत हो सके। हालांकि हमारे देश में चिकित्सा विज्ञानी चौथी बूस्टर खुराक को लेकर बंटे हुए हैं, लेकिन देश की बड़ी आबादी खासकर कमजोर आर्थिक वर्ग के लोगों को अभी तीसरी खुराक भी लेनी है।
चूंकि टीकाकरण प्रमाणपत्रों को आधार से जोड़ा गया है इसलिए इस काम में मुश्किल नहीं आनी चाहिए। सार्वजनिक जगहों पर मास्क अनिवार्य किया जाना चाहिए। संक्षेप में कहें तो वायरस के इस प्रकार की प्रकृति गंभीर न होने के कारण ढिलाई बरतने की आवश्यकता नहीं और जनता को खुद से भी बचाव करना चाहिए।