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फिर सूचना का अधिकार किस काम का

अरविंद केजरीवाल पर पच्चीस हजार रुपये का जुर्माना लगा है। गुजरात हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति बीरेन वैष्णव ने यह फैसला सुनाते हुए कहा है कि प्रधानमंत्री की शैक्षणिक योग्यता के बारे में जानकारी देना आवश्यक नहीं है क्योंकि यह पहले से ही सार्वजनिक स्तर पर उपलब्ध है। इस फैसले से अदालत ने पूर्व के आदेशों को भी पलट दिया है।

दूसरी तरफ यह फैसला आने के बाद पूरे मामले पर राजनीतिक हमला करते हुए बीआरएस के कार्यकारी अध्यक्ष और तेलंगाना के मंत्री के टी रामा राव ने शुक्रवार को कहा कि उन्हें अपने सर्टिफिकेट सार्वजनिक रूप से साझा करने में कोई समस्या नहीं है। उन्होंने प्रधानमंत्री का नाम लिए बगैर कहा, ‘मेरे पास पुणे यूनिवर्सिटी से बायोटेक्नोलॉजी में मास्टर्स डिग्री है और सिटी यूनिवर्सिटी ऑफ न्यूयॉर्क से बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन में मास्टर्स डिग्री भी है।

इसी वजह से एक अजीबोगरीब फैसले से दो सवाल उठ खड़े हो रहे हैं। पहला सवाल यह है कि प्रधानमंत्री की डिग्री के बारे में इतनी गोपनीयता क्यों जरूरी है और दूसरा सवाल यह कि फिर सूचना के अधिकार का इस्तेमाल सच जानने के लिए क्यों नहीं किया जा सकता है। वैसे झारखंड के एक सांसद निशिकांत दुबे भी अपनी शैक्षणिक योग्यता के सवाल पर तृणमूल की फायरब्रांड सांसद महुआ मोइत्रा के निशाने पर हैं।

ताजा फैसले में न्यायाधीश बीरेन वैष्णव ने मोदी की स्नातक और स्नातक डिग्री के बारे में जानकारी प्रदान करने के लिए पीएमओ, गुजरात विश्वविद्यालय और दिल्ली विश्वविद्यालय के पीआईओ को मुख्य सूचना आयोग (सीआईसी) के निर्देश को पलट दिया। इसके साथ ही अरविंद केजरीवाल पर 25 हजार रुपये का अर्थदंड भी लगाया है। इसी वजह से तय है कि इस एक फैसले ने कई नये विवादों को जन्म दे दिया है।

अदालत का तर्क है कि लोकतंत्र में, कोई फर्क नहीं पड़ता कि पद धारण करने वाला व्यक्ति डॉक्टरेट है या अनपढ़ है। साथ ही इस मुद्दे से कोई जनहित जुड़ा नहीं है। यहां तक कि उनकी निजता भी प्रभावित होती है। प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि उन्होंने 1978 में गुजरात विश्वविद्यालय से स्नातक की उपाधि प्राप्त की और 1983 में दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त की।

केजरीवाल के वकील पर्सी कविना ने तर्क दिया कि, “यदि आप नामांकन फॉर्म (चुनाव के दौरान दाखिल) देखते हैं, तो इसमें उनकी शैक्षिक योग्यता का उल्लेख है। इस प्रकार, हम एक डिग्री प्रमाणपत्र मांग रहे हैं न कि उसकी मार्कशीट।

केंद्रीय सूचना आयोग (सीआईसी) के 2016 के उस आदेश को रद्द करते हुए, जिसमें गुजरात विश्वविद्यालय को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम पर डिग्री के संबंध में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को जानकारी उपलब्ध कराने का निर्देश दिया गया था, गुजरात उच्च न्यायालय ने आज कहा कि पीएम को किसी बड़े जनहित के अभाव में आरटीआई अधिनियम की धारा 8(1)(ई) और (जे) के प्रावधानों के तहत प्रकटीकरण से छूट दी गई है।

न्यायमूर्ति बीरेन वैष्णव की पीठ ने सीआईसी के आदेश को चुनौती देने वाली गुजरात विश्वविद्यालय द्वारा दायर अपील को स्वीकार कर लिया। न्यायालय ने जोर देकर कहा कि शैक्षिक योग्यता से संबंधित दस्तावेज और कुछ नहीं बल्कि छात्र की व्यक्तिगत जानकारी है, जिसका खुलासा तब तक नहीं किया जा सकता जब तक कि वह जनहित में न हो।

यह समझ में आने वाली बात है कि यह मामला यहीं पर शायद समाप्त नहीं होगा क्योंकि आम आदमी पार्टी ने पहले ही मोदी के खिलाफ राष्ट्रव्यापी अभियान प्रारंभ कर दिया है। खुद अरविंद केजरीवाल भी यह मंच से कह चुके हैं कि भारतवर्ष को एक अनपढ़ प्रधानमंत्री नहीं चाहिए और इसके लिए उन्होंने खुद नरेंद्र मोदी के ही एक इंटरव्यू का हवाला दिया है।

अचानक से बदली भारतीय राजनीति में यह सारे मुद्दे दरअसल सरकारी फैसलों और विपक्ष द्वारा केंद्रीय एजेंसियों को दुरुपयोग से ही जुड़ी हुई हैं। श्री केजरीवाल ने पहले ही कहा है कि जब कोई अशिक्षित व्यक्ति किसी बड़े आसन पर होता है तो उसे बरगला कर गलत फैसला कराना आसान होता है। शायद अडाणी प्रकरण में भी श्री मोदी ऐसा कर चुके हैं।

लोकसभा चुनाव के करीब आने के दौरान अब शिक्षा के स्तर पर यह बहस निश्चित तौर पर फैलेगी। इसकी एक वजह दिल्ली के सरकारी स्कूलों की गुणवत्ता में सुधार है। इस उपलब्धि को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी सराहा गया है।

पहले हिंडनबर्ग, फिर अडाणी, उसके बाद राहुल गांधी के खिलाफ मानहानि मामले में फैसला और इसके साथ ही विपक्ष का एक मुद्दे पर एकजुट होना वर्तमान सरकार और उसके समर्थकों के लिए चिंता का विषय है। समाजवादी पार्टी के सांसद और पूर्व कांग्रेसी कपिल सिब्बल के तर्कों को मानें तो सूरत की अदालत से मानहानि मामले में जो फैसला आया है, वह भी विवादों के घेरे में हैं। दूसरी तरफ हत्या के आरोपी लक्षद्वीप के सांसद की सदस्यता दोबारा बहाल होना भी सरकार को आरोपों के घेरे में खड़ी करती है। अब देखना है कि चुनावी मौसम में कौन सा मामला कहां तक खींचता है।

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