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अब मोदी और मनमोहन की तुलना कर लीजिए

तीन माह बाद नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री के तौर पर काम करते हुए दस साल हो जाएंगे। प्रधानमंत्री के रूप में उनका कार्यकाल मनमोहन सिंह के बराबर हो जाएगा जिन्होंने 2004 से 2014 तक संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार का नेतृत्व किया था।

ऐसे में दोनों प्रधानमंत्रियों के बीच तुलना लाजिमी है कि उन्होंने भारतीय अर्थव्यवस्था को किस प्रकार संभाला और देश के लिए किस तरह के नतीजे हासिल किए। इस मौके पर यह देखा जाना चाहिए कि पूर्व सरकार के प्रधानमंत्री, जिन्हें खुद नरेंद्र मोदी ने मौन मोहन सिंह कहा था और वर्तमान प्रधानमंत्री जिन्हें अडाणी प्रकरण में मौनी बाबा कहा जा रहा है, दोनों के काम काज की तुलना क्या हो सकती है।

मोदी के कार्यकाल से शुरू करते हैं। अगर नोटबंदी को हटा दिया जाए तो कम से कम चार ऐसी अहम पहल हैं जिनके ​लिए मोदी सरकार को याद किया जाएगा। आम जनता में बैंकिंग की व्यापक और गहरी पहुंच सुनि​श्चित करके मोदी सरकार ने गरीबों तक वित्तीय पहुंच उपलब्ध कराने का काम किया।

मोदी सरकार की एक बड़ी पहल वित्तीय तकनीक के क्षेत्र में थी। अगस्त 2016 में यूनीफाइड पेमेंट इंटरफेस यानी यूपीआई की शुरुआत हुई जिसने बैंक खातों को एक मोबाइल ऐ​प्लिकेशन से जोड़ दिया। बैकिंग के कई काम एक उपकरण से होने लगे और पैसों का अबाध लेनदेन शुरू हो सका।

मोदी सरकार ने मई 2016 में उज्ज्वला योजना पेश की थी ताकि गरीब परिवारों को नि:शुल्क घरेलू गैस कनेक्शन दिया जा सके। इस पहल ने आम लोगों पर गहरा असर डाला। घरेलू स्तर पर स्वच्छ ईंधन अपनाने की बात करें तो 2016 के 62 फीसदी से बढ़कर यह अब 99 फीसदी हो गया है।

करीब नौ करोड़ परिवार इस योजना का लाभ ले चुके हैं। कोविड महामारी की शुरुआत के कुछ सप्ताह के भीतर ही मोदी सरकार ने 80 करोड़ से अ​धिक लोगों के लिए नि:शुल्क खाद्यान्न योजना शुरू कर दी। यह मोदी की चौथी बड़ी पहल थी। इस योजना के क्रियान्वयन ने गरीबों को बड़ी राहत प्रदान की।

उन्हें नि:शुल्क गेहूं, धान और दालें मिलीं ताकि महामारी में लगे लॉकडाउन तथा रोजगार संकट के दौरान उन्हें खाने की दिक्कत न हो। मोदी सरकार ने महामारी के दौरान काम करवाकर महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अ​धिनियम यानी मनरेगा की मदद से बड़ी तादाद में गरीबों को न्यूनतम मेहनताना दिया।

मोदी सरकार की कई अन्य पहलें भी हैं जिन्होंने लाखों लोगों के जीवन स्तर में सुधार किया। आवास योजना भी उनमें से एक है। लेकिन इसके साथ ही नोटबंदी और जीएसटी जैसी घटनाएं भी हैं जिन्होंने बहुत बड़ी संख्या में लोगों को बुरी तरह प्रभावित किया।

नोटबंदी के कारण जो उथलपुथल मची उसने इतना बुरा असर डाला कि आज मोदी सरकार का कोई व्य​क्ति उन तथाक​थित फायदों की बात नहीं करता जिनका दावा नवंबर 2016 में नोटबंदी के समय किया गया था। वस्तु एवं सेवा कर की शुरुआत के समय कारोबारी सुगमता का वादा किया गया था।

इस कर के संग्रह में सुधार हो रहा है लेकिन नई कर व्यवस्था में अभी कई सुधारों की आवश्यकता है ताकि यह व्यवस्था वांछित स्तर तक पहुंच सके। मनमोहन सिंह ने अपने 10 वर्ष के कार्यकाल में वि​शिष्ट पहचान यानी आधार कार्ड योजना को नि​श्चित रूप से उनकी सबसे बड़ी पहल करार दिया जा सकता है। मोदी सरकार ने इसे और बढ़ावा दिया और आधार को कानूनी आधार प्रदान किया।

अब तक देश में 1.3 अरब आधार कार्ड जारी किए जा चुके हैं। मौदी की कई योजनाएं इसी आधार कार्ड पर आधारित हैं। डॉ मनमोहन सिंह की दूसरी बड़ी नीतिगत पहल थी 2005 में मनरेगा की शुरुआत ताकि गांवों में रहने वाले बेरोजगार लोगों को सामाजिक सुरक्षा दी जा सके। आश्चर्य की बात है कि मोदी सरकार ने समुचित फंड के साथ इस योजना को जारी रखा। कोविड-19 महामारी के आगमन के बाद यह योजना ग्रामीण बेरोजगारी से निपटने का एक अहम जरिया बन गई। जबकि खुद मोदी इसकी आलोचना कर चुके थे।

मनमोहन सिंह की शुरू की गई एक और बड़ी योजना थी राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अ​धिनियम। यह योजना सरकार बदलने के एक साल पहले 2013 में पेश की गई थी। इस कानून के तहत देश की 75 फीसदी ग्रामीण आबादी और 50 फीसदी शहरी आबादी को सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत रियायती अनाज दिया जाने लगा। अनुमान के मुताबिक इस योजना में 80 करोड़ भारतीय शामिल थे।

मनमोहन सिंह द्वारा पेश नीतिगत उपायों के बल पर मोदी अपनी योजनाएं पेश कर सके। बिना आधार की तकनीक और बुनियाद के मोदी सरकार यूपीआई भुगतान समेत फिनटेक नवाचारों पर आगे नहीं बढ़ सकती थी और आम आदमी के लिए इतनी मुफीद योजनाएं नहीं ला सकती थी।

अगर मनरेगा नहीं होती तो कोविड-19 महामारी के दौरान भी मोदी इतने प्रभावी ढंग से ग्रामीण इलाकों में बेरोजगारी का मुकाबला नहीं कर पाते। यहां तक कि महामारी में नि:शुल्क खाद्यान्न वितरण को भी सिंह सरकार की राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा योजना से मदद मिली।

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