ओस्लोः नार्वे के समुद्री क्षेत्र में बेशकीमती धातुओँ और खनिजों का बहुत विशाल भंडार मिलने की घोषणा की गयी है। दरअसल समुद्र की गहराइयों में इस किस्म का शोध करने वाली एक संस्था ने समुद्र की गहराई से एकत्रित किये गये नमूनों के आधार पर इसका आकलन किया है।
बता दें कि नॉर्वे तेल और गैस का एक प्रमुख निर्यातक है। खनिज और धातुओं का पता चलने के बाद अब वह इस पर विचार कर रहा है कि क्या उसे अपने आसपास के समुद्र में खनन करना चाहिए?
ऐसा इसलिए क्योंकि समुद्र में खनन पर्यावरण से जुड़ी चिंताओं को जन्म देता है और यह एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसके लिए संसद से इजाजत की जरूरत पड़ती है।
अध्यन करने वाले नॉर्वेजियन पेट्रोलियम डायरेक्टोरेट ने कहा है कि अधययन के दौरान समुद्र तल पर पाए जाने वाली धातुओं में मैग्नीशियम, नाइओबियम, कोबाल्ट और दुर्लभ पृथ्वी खनिज हैं। अनुमान है कि नार्वेजियन सागर और ग्रीनलैंड सागर के दूरदराज क्षेत्रों में 38 मिलियन टन तांबा है।
यह पूरी दुनिया में हर साल खनन किए जाने वाले कुल तांबे का दोगुना है। सल्फाइड या ब्लैक स्मोकर्स की बात करें तो समुद्र की गहराई में मौजूद टीलों पर पाए जाते हैं। ये टीले पृथ्वी के मेंटल से मैग्मा निकलने से बने हैं जो लगभग 3 किमी की गहराई में मौजूद है।
लगभग 2.4 करोड़ टन मैग्नीशियम और 31 लाख टन कोबाल्ट का भी अनुमान लगाया गया है। 17 लाख टन सेरियम और मिश्र धातुओं में इस्तेमाल होने वाली एक दुर्लभ धातु मिली हैं। मैंगनीज की परत में अन्य दुर्लभ धातुओं जैसे कि नियोडिमियन, येट्रियम और डिस्प्रोसियम होने का अनुमान है।
एनपीडी ने कहा कि नियोडिमियम और डिस्प्रोसियम दुर्लभ खनिज होते हैं। यह पवन चक्की और इलेक्ट्रिक वाहनों के इंजनों में चुंबक के लिए बहुत जरूरी होते हैं।
वैसे धन की लिहाज से इसे महत्वपूर्ण बताये जाने के साथ साथ पर्यावरणीय समूहों ने इस उत्खनन से उन जीवों के लिए खतरा जताया है जो समुद्र की सतह पर रहते हैं।
खनन का प्रभाव समझने के लिए और अध्ययन का आह्वान किया गया है। नॉर्वे के इंस्टीट्यूट ऑफ मरीन रिसर्च ने एक परामर्श पत्र में कहा कि गहरे महासागरों के बारे में ज्ञान की कमी है।
यहां हमेशा नई प्रजातियां खोजी जाती रही हैं। एनपीडी ने कहा कि आगे की स्टडी से यह पता चल सकेगा कि कितना खनिज बिना पर्यावरण को नुकसान पहुंचाए निकाला जा सकता है।