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भाजपा की जाल में उलझती दूसरी पार्टियां

भाजपा को फिर से अपने धर्म आधारित वोटों की राजनीति की जमीन को मजबूत करने का खुला अवसर मिल गया है। बिहार के शिक्षा मंत्री चंद्रशेखर यादव ने सबसे पहले रामचरित मानस पर नालंदा ओपन यूनिवर्सिटी के एक कार्यक्रम में कहा कि यह मनुस्मृति की तरह नफरती ग्रंथ है।

सरकार के मुखिया नीतीश कुमार की आपत्ति पर भी वह अपने स्टैंड पर अड़े रहे। आरजेडी के शीर्षस्थ नेता, बिहार के डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव और प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह को भी चंद्रशेखर का स्टैंड नागवार नहीं लगा। इस खींचतान के बीच उत्तर प्रदेश समाजवादी पार्टी के नेता स्वामी प्रसाद मौर्य ने रामचरित मानस को बकवास बताया और इस पर प्रतिबंध लगाने की मांग कर दी है।

उसके बाद भाजपा को यह मौका बिहार सरकार के राजस्व मंत्री आलोक मेहता ने प्रदान किया है। आलोक मेहता का विवादित बयान खासा चर्चा में है। उन्होंने भागलपुर में कहा था कि जिन्हें आज 10 प्रतिशत में गिना जाता है, वह पहले मंदिर में घंटी बजाते थे और अंग्रेजों के दलाल थे।

ये जो 10 फीसद लोग हैं, उनके सामने जो आवाज उठाता था, उनकी जुबान बंद कर दी जाती थी। जो लोग 10 फीसद हैं, आने वाले समय में आरक्षण पर खतरा हैं। जिसका वोट बैंक महज दो प्रतिशत हो, वह किसी को मुख्यमंत्री कैसे बना सकता है? मामला पार्टी के अंदर और गठबंधन पर भी असर डाल गया।

तब आलोक मेहता ने कहा कि उनके बयान को तोड़-मरोड़कर पेश किया गया। मंदिर में घंटी बजाने वाले बयान पर उन्होंने कहा कि मैंने तो उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी जी पर बोला था। वे क्या करते थे? मंदिर में पूजा ही करते थे न? वहां घंटी बजाते थे, आज सत्ता के शीर्ष पर बैठे हुए हैं।

लेकिन आलोक मेहता के लिए ये सफाई भी काम आती नहीं दिख रही है। लखनऊ में चर्चाएं हैं कि अपने बयान को योगी आदित्यनाथ की तरफ मोड़कर आलोक मेहता नाक घुमाकर पकड़ने की कोशिश’ कर रहे हैं। इसके अलावा राम चरित मानस और गोस्वामी तुलसीदास पर भी बयान ऐसे समय में जारी हुए जब भाजपा अपने हिंदुत्व के एजेंडे को मजबूत जमीन फिर से देने की कोशिशों में जुटी हुई थी।

भाजपा के लिए यह परेशानी राहुल गांधी ने खड़ी कर दी थी। राहुल ने कहा है कि नफरत के बाजार में वह मोहब्बत की दुकान खोल रहे हैं। उधर सुप्रीम कोर्ट ने भी नफरत फैलाने वाले एंकरों के खिलाफ तीखी टिप्पणी कर भाजपा के लिए चुनावी समीकरणों को कठिन बना दिया था।

भाजपा विरोधी दलों के नेताओँ का बयान दरअसल अपनी जातिवादी राजनीति को साधने की कोशिश है, इस पर संदेह की कोई गुंजाइश नहीं है। यह सारा विरोध दरअसल भाजपा के विरोध के लिए राम, रामायण, हिन्दू और ब्राह्मण के बाद अब सवर्ण भी निशाने पर हैं।

चुनाव जीतने के लिए इस तरह के विरोध में सामान्य जन की भागीदारी भी है या नहीं, यह तो चुनाव परिणामों के बाद पता चलेगा, जिसके लिए ऐसे बयान दिये जा रहे हैं। इसलिए कि अब तक के अनुभव यही बताते हैं कि राम का जितना विरोध विरोधियों ने मुखर होकर किया, राम को ध्येय मानने वाली भाजपा को उतना ही फायदा हुआ।

लालकृष्ण आडवाणी की रथयात्रा से लेकर 2019 के लोकसभा चुनाव तक तो यही देखने को मिला है। अगले साल लोकसभा के चुनाव होने हैं। दूसरी तरफ इसी साल अयोध्या में राम मंदिर भी बनकर तैयार हो जाएगा। इसके बीच ही विपक्ष के नेताओं ने भाजपा के विरोध के लिए फिर राम को निशाने पर लिया है।

इस बार देखना दिलचस्प होगा कि राम का विरोध कितना कारगर होता है। नेताओं की इस बयानबाजी में कन्नड़ के एक लेखक केएस भगवान भी कूद पड़े हैं। उन्होंने आपत्तिजनक बयान दिया है और कहा है कि सीता के साथ राम दोपहर से लेकर पूरे दिन शराब पीते रहते थे।

कोई रामायण का उत्तराखंड पढ़ेगा तो यह स्पष्ट हो जाएगा कि भगवान राम कैसे आदर्श नहीं कहे जा सकते।’ केएस भगवान कर्नाटक के रहने वाले रिटायर्ड प्रोफेसर हैं। लेखक के रूप में उनकी अच्छी ख्याति है। उन्होंने कहा है कि आज राम राज्य स्थापित करने की बात हो रही है। अगर कोई वाल्मीकि रामायण के उत्तर कांड को पढ़े तो यह साफ हो जाएगा कि राम आदर्श नहीं थे।

राम दोपहर में सीता के साथ बैठते थे और पूरे दिन शराब पीते थे। उन्होंने सीता को जंगल में भेज दिया। शूद्र शम्बूक का सिर काट डाला। ऐसे में राम आदर्श कैसे हो सकते हैं।

कुल मिलाकर फिर से देश में वह माहौल विरोधी नेता और आलोचक ही पैदा कर रहे हैं, जिससे अंततः भारतीय जनता पार्टी को फायदा हो सकता है। भाजपा पहले से ही इस मुद्दे को फिर से असरदार बनाने में जुटी थी। अब विरोधी दल के नेताओं की बयानबाजी ने भाजपा को यह मौका बैठे बिठाये ही दे दिया है।

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