महिला पहलवानों के यौन उत्पीड़न का मामला भी शायद टाल दिया जाता। इसके पहले कई बार अलग अलग खेलों में ऐसे आरोप लगते रहे हैं पर उनके आरोपियों के खिलाफ जांच तक नहीं हुई है।
इस बार चूंकि अंतर्राष्ट्रीय पदक विजेता धरना पर थे और हरियाणा के मुख्यमंत्री भी इसमें पहलवानों के पक्ष में आ गये थे तो सरकार को कार्रवाई करनी पड़ी। इससे यह सवाल उठ जाता है कि दरअसल खेल संघों के पदों पर आसीन राजनेता क्या कमाल कर पा रहे हैं अथवा उनके वहां होने के भारतीय खेलों के स्तर पर क्या कुछ सुधार हो रहा है।
इसमें क्रिकेट अलग है क्योंकि वह ऐसा खेलसंघ है, जो सरकार के भरोसे नहीं चलती है। यह अलग बात है कि अगर क्रिकेट के मैदान से दर्शक दूर हो जाएं तो तीन साल में वहां की सारी ऐय्याशी भी खत्म हो जाएगी।
लेकिन बात पहले भारतीय कुश्ती की कर लें। बता दें कि ओलंपिक पदक विजेता बजरंग पुनिया समेत देश कई पहलवानों का दिल्ली के जंतर-मंतर पर चल रहा धरना प्रदर्शन तब खत्म हुआ जब सरकार ने इस महासंघ के क्रियाकलापों को अपने अधीन ले लिया।
अगले चार सप्ताह में दाखिल होने वाली रिपोर्ट तक सब कुछ सरकार के नियंत्रण में होगा। पहलवानों ने खेल मंत्री अनुराग ठाकुर से मिले आश्वासन के बाद अपना धरना खत्म किया है। धरने पर बैठे पहलवानों का आरोप था कि भारतीय कुश्ती महासंघ ने अपने मनमानें नियमों से पहलवानों का उत्पड़ीन कर रहा है।
कुछ पहलवानों ने भारतीय कुश्ती महासंघ के अध्यक्ष पर यौन शोष का आरोप भी लगाया है। अब इन सब के बीच भारतीय कुश्ती महासंघ ने पलटवार किया है। यह ए स्वाभाविक प्रतिक्रिया है और हर कोई अपनी बात रखने के लिए स्वतंत्र है।
भारतीय कुश्ती महासंघ की तरफ से खेल मंत्री लिखे पत्र में पहलवानों द्वार लगाए गए इन आरोपों को छिपा हुआ एजेंडा और व्यक्तिगत रंजिश बताया है। भारतीय कुश्ती महासंघ की तरफ से खेल एवं युवा मामले के मंत्रालय को लिखे पत्र में कहा है कि ये प्रदर्शन पहलवानों की बेहतरी के लिए नहीं हो रहा है।
ये सिर्फ इसलिए किया जा रहा है क्योंकि इसके पीछे एक छिपी हुई मंशा है। और ये सब सिर्फ भारतीय कुश्ती महासंघ के ऊपर प्रेशर बनाने के लिए किया जा रहा है।
वैसे पत्र में यह स्पष्ट नहीं किया गया है कि दबाव बनाकर किसे लाभ पहुंचने की साजिश इन पहलवानों ने रची है। बता दें कि भारतीय कुश्ती महासंघ के खिलाफ दिल्ली में जंतर-मंतर पर बीते तीन दिनों से विनेश फोगाट, बजरंग पुनिया, रवि दहिया, दीपक पुनिया और साक्षी मलिक धरना दे रहे हैं।
गौरतलब है कि भारतीय कुश्ती महासंघ के अध्यक्ष बृजभूषण सिंह और पहलवानों के बीच जारी विवाद के बीच शुक्रवार को खेल मंत्री अनुराग ठाकुर के सरकारी आवास पर 7 घंटे तक मीटिंग हुई। इस मीटिंग में पूरे मामले की जांच के लिए एक कमेटी बनाने का फैसला लिया गया है।
ये कमेटी 4 हफ्ते में जांच करके रिपोर्ट देगी। जब तक कमेटी की जांच पूरी नहीं होती, तब तक बृजभूषण सिंह कुश्ती संघ के अध्यक्ष के तौर पर दैनिक कार्यों से खुद को अलग रखेंगे। अनुराग ठाकुर के आश्वासन के बाद पहलवानों की तरफ से बजरंग पुनिया ने जंतर-मंतर पर धरना खत्म करने का एलान किया।
अंतर्राष्ट्रीय पदक विजेता बजरंग पुनिया ने कहा कि हम खेल मंत्री का शुक्रिया करते हैं। प्रधानमंत्री मोदी ने भी हमारे खेल का बहुत साथ दिया है। हमने मजबूरी में ये कदम उठाया है। हमें कमिटी पर भरोसा है। कमेटी की रिपोर्ट आने तक खिलाड़ी जंतर-मंतर पर धरने पर नहीं बैठेंगे।
अब कुश्ती से उठे इसी विवाद की वजह से अन्य खेल संघों के अंदर होने वाली घटनाओं पर भी विचार किये जाने की जरूरत है। दरअसल कई खेल संघों में ऐसे आरोप लगते रहे हैं पर सरकार ने कभी इन आरोपों पर गंभीरता से ध्यान नहीं दिया है।
राजनीति के मैदान में खुद को हमेशा व्यस्त बताने वाले राजनेता इन खेल महासंघों पर क्यों रहना चाहते हैं, यह एक सामान्य सी जिज्ञासा है। क्रिकेट की बात अलग है क्योंकि वहां होने से राजनेताओं को दूसरे किस्म के लाभ के साथ साथ लोकप्रियता भी बैठे बिठाये मिलती रहती है।
जो खेल महासंघ सरकारी पैसे से संचालित हो रहे हैं, उनके प्रशिक्षण शिविरों के खर्च का भ्रष्टाचार भी अब जांच के दायरे में लाया जाना चाहिए। मिल बांटकर सरकारी पैसे की बंदरबांट करने की इस प्रवृत्ति ने भी भारतीय खेल के विकास को काफी रोका है।
यह पहला मौका है जब अंतर्राष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ी अपने ही महासंघ के खिलाफ मैदान में उतर आये हैं। वैसे विचार का विषय यह भी है कि आखिर एक महासंघ के सांसद अध्यक्ष पर कार्रवाई करने से सरकार आखिर डर क्यों रही थी। अगर विरोध में अंतर्राष्ट्रीय पदक विजेता और हरियाणा के मुख्यमंत्री नहीं होते तो क्या होता, इस पर विचार की आवश्यकता है।