अदालतचुनावदेशसंपादकीय

संविधान और नये चुनाव आयुक्त की चर्चा प्रासंगिक

सेवानिवृत्ति के चौबीस घंटे के भीतर किसी अधिकारी को अगर देश का चुनाव आयुक्त बना दिया जाए तो यह माना जाना चाहिए कि या तो भारतीय अफसरशाही के काम करने की गति अत्यधिक तेज है या फिर इस पद में भी अपनी पसंद वाली सोच हावी हो चुकी है।

नये चुनाव आयुक्त अरुण गोयल के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट से जो बात निकली हैं, वह तो दूसरी सोच की तरफ इशारा करने वाली है। दूसरी तरफ खुद प्रधानमंत्री यह कह रहे हैं कि भारतवर्ष अपने संविधान की ताकत से आगे बढ़ रहा है। इसी तरक्की की वजह से पूरी दुनिया भारत की तरफ देख रही है। गुरुवार को देश की शीर्ष अदालत में इस मामले पर सुनवाई के दौरान अदालत ने कहा कि केंद्रीय कानून मंत्रालय ने निर्वाचन आयुक्त चुनने के लिए प्रधानमंत्री को जिन नौकरशाहों के नामों की सिफारिश की थी, उनमें से एक भी व्यक्ति ऐसा नहीं था, जो चुनाव आयोग में निर्धारित छह साल का कार्यकाल पूरा कर सके।

जस्टिस केएम जोसेफ की अध्यक्षता वाली पांच-सदस्यीय संविधान पीठ ने आश्चर्य जताया कि क्या सरकार सेवानिवृत्त नौकरशाहों की नियुक्ति करके मेधावी युवा उम्मीदवारों के लिए दरवाजे बंद नहीं कर रही है? पीठ ने कहा, एक कानून मौजूद है। हम आपसे उम्मीद करते हैं कि आप इस तरह से कार्य करेंगे कि आप वैधानिक आवश्यकताओं का पालन करेंगे। ऐसा क्यों है कि आपके पास सेवानिवृत्त नौकरशाहों का ही एक पूल होगा, अन्य का क्यों नहीं? केवल चार नाम क्यों?

उम्मीदवारों का एक बड़ा पूल क्यों नहीं? जस्टिस जोसेफ ने कहा कि क्या आप मेधावी युवा उम्मीदवारों को बाहर नहीं कर रहे हैं? ऐसा लगता है कि आप इस बात पर अड़े हुए हैं कि किसी भी मुख्य चुनाव आयुक्त या चुनाव आयुक्त को आयोग में पूरे छह साल का कार्यकाल न मिले और यह कानून के खिलाफ है।

निर्वाचन आयोग (चुनाव आयुक्त की सेवा और कारोबार का संव्यवहार शर्तों) अधिनियम, 1991 के तहत चुनाव आयुक्त का कार्यकाल छह साल या 65 वर्ष की आयु तक हो सकता है। अदालत की इस टिप्पणी के बाद संविधान दिवस के समारोह में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शनिवार को कहा कि भारत की सबसे बड़ी ताकत हमारा संविधान है, जिसके बल पर देश आगे बढ़ रहा है। प्रधानमंत्री ने ‘संविधान दिवस’ के अवसर पर उच्चतम न्यायालय परिसर में आयोजित समारोह को संबोधित करते हुए कहा कि आज कि वैश्विक परिस्थितियों में पूरे विश्व की नजर भारत पर है।

भारत के तेज विकास, तेजी से बढ़ती हुई अर्थव्यवस्था और मजबूत होती अंतरराष्ट्रीय छवि के बीच दुनिया हमें बहुत बड़ी उम्मीदों से देख रही है। इन सब के पीछे हमारी सबसे बड़ी ताकत हमारा संविधान है। प्रधानमंत्री ने कहा कि हमारे संविधान के प्रेंबल की शुरुआत में जो ‘वी द पीपुल’ लिखा है। यह सिर्फ तीन शब्द नहीं है। यह एक आह्वान है, एक प्रतिज्ञा है। एक विश्वास है।

संविधान में लिखी यह भावना उस भारत की मूल भावना है, जो दुनिया में लोकतंत्र की जननी रही है। श्री मोदी ने कहा,मुझे संतोष है कि आज देश मदर ऑफ डेमोक्रेसी के रूप में अपने इन प्राचीन आदर्शों को और संविधान की भावनाओं को लगातार मजबूत कर रहा है। प्रो-पीपुल भावना की ताकत से आज देश और देश का गरीब, देश की माताएं, बहनों का सशक्तिकरण हो रहा है।

प्रधानमंत्री ने कहा कि सामान्य मानविकी के लिए आज कानूनों को सरल बनाया जा रहा है। समय पर न्याय पहुंचाने के लिए हमारी न्यायपालिका भी लगातार कई सार्थक कदम उठा रही है। श्री मोदी ने कहा कि इस बार 15 अगस्त को लाल किला से उन्होंने कर्तव्यों की बात पर बल दिया था। राष्ट्रपिता को याद करते हुए कहा,महात्मा गांधी कहते थे कि हमारे अधिकार हमारे वह कर्तव्य है, जिन्हें हम सच्ची इंटीग्रिटी और डेडीकेशन के साथ पूरा करते हैं।

आज अमृतकाल में जब हम आजादी के 75 वर्ष पूर्ण करके अगले 25 वर्षों की यात्रा शुरू कर रहे हैं, तो संविधान का यह मंत्र देश के लिए एक संकल्प बन रहा है। यह दो किस्म की बातें सुनने में एक जैसी लगती हैं लेकिन व्यवहार में यह एक दूसरे से पूरी तरह भिन्न है।

वैसे भी विपक्ष लगातार यह आरोप लगाता आ रहा है कि अब चुनाव आयोग भी पूरी तरह पक्षपात पर उतर आया है। आयोग पर यह आरोप हिमाचल और गुजरात के चुनाव कार्यक्रमों के एलान से भी स्पष्ट हुआ क्योंकि एक ही दिन मतगणना के बाद भी गुजरात के कार्यक्रम का एलान इसलिए देर से किया गया ताकि प्रधानमंत्री अपने काम पूरा कर लें। इसलिए चुनाव आयुक्त की बहाली पर अगर अदालत सवाल उठा रहा है तो यह कोई अप्रत्याशित घटना नहीं है। इसलिए बड़ी बड़ी बातों पर बहस से ज्यादा यह विचार किया जाए कि वास्तव में क्या हम संविधान के करीब रह पाये हैं अथवा सत्ता की लालच ने राजनीतिक दलों को इससे दूर करने का काम किया है।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button