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विदेशों से आये गैर मुस्लिम शरणार्थियों की जगह गुजरात में

अमित शाह की चाल विधानसभा चुनाव पर नजर

अहमदाबादः भारत के बाहर से आये गैर मुसलमान शरणार्थियों को गुजरात के दो जिलों में रखा जाएगा। दरअसल इन दो जिलों में उन्हें भारत की नागरिकता देने की तैयारी चल रही है। इस संबंध में केंद्रीय गृह मंत्रालय ने तैयारी की है। जाहिर सी बात है कि गुजरात विधानसभा का चुनाव सर पर होने के बीच यह फैसला अमित शाह के स्तर पर भाजपा के पक्ष में हिंदू वोट के ध्रुवीकरण का एक प्रयास है।

दूसरी तरफ मोरबो हादसे के बाद अमित शाह के इस चाल को गुजरात में बहुत अच्छी नजरों से नहीं देखा जा रहा है। कभी भाजपा के कट्टर समर्थक रहे लोग भी हर बात में राजनीति पर अब नाराजगी जाहिर करने लगे हैं।

गुजरात के आणंद और मेहसाना में वैसे लोगों को नागरिकता देने की तैयारी हैं, जो दूसरे देशों से आये हुए गैर मुसलमान है। इनमें हिंदुओं के अलावा इसाई और बौद्ध परिवार भी हैँ। इनमें से अधिकांश पाकिस्तान से आये हैं। इसके अलावा अफगानिस्तान, बांग्लादेश से भी लोग यहां शरणार्थी बनकर आये हैं।विदेशों से आये गैर मुस्लिम शरणार्थियों की जगह गुजरात में

केंद्रीय गृह मंत्रालय ने इन दो जिलों में जिन्हें नागरिकता देने का काम प्रारंभ किया है, उनमें सिख, पारसी और जैन परिवार भी हैं। अमित शाह ने कहा है कि देश में मौजूद 1955 के नागरिकता कानून के तहत ही यहां बसाये जा रहे लोगों को देश की नागरिकता देने की तैयारी चल रही है। देश में सीएए तैयार होने के बाद भी वह अब तक कानून नहीं बनाया जा सका है। इसी वजह से केंद्रीय गृह मंत्री ने 1955 के कानून के सहारे ही इस काम को आगे बढ़ाने का फैसला लिया है। खबर है कि इन जिलों के जिलाधिकारियों को इसके लिए निर्देश प्राप्त हो चुके हैं। यहां जिन छह धर्मों के लोगों को नागरिकता देने की तैयारी चल रही है, उनके लिए कमसे कम पांच साल भारत में रहने की शर्त को भी हटाया जा रहा है।
लगातार गुजरात में मोदी और शाह नई नई परियोजनाओं का एलान कर रहे हैं। इससे स्पष्ट है कि यह काम पूरा होते ही चुनावी कार्यक्रमों का एलान होगा। आदर्श आचार संहिता लागू होने के पहले ही वोट को अपने पाले में करने में अमित शाह ने यह चाल चली है। दूसरी तरफ मोरबो के हादसे का कई तथ्य सार्वजनिक होने के बाद स्थानीय जनता भी फिलहाल भाजपा से नाराज है। विरोधियों का भी दावा है कि अपना गढ़ और गुजरात मॉडल का काफी प्रचार करने के बाद भी इस बार मोदी और शाह अपना किला नहीं बचा पायेंगे।

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