प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने मंगलवार को मंच साझा किया जहां मोदी ने गहलोत को सबसे वरिष्ठ मुख्यमंत्रियों में एक बताया। मोदी बांसवाड़ा के पास मानगढ़ धाम में ‘मानगढ़ धाम की गौरव गाथा’ कार्यक्रम में भाग लेने आए थे। कार्यक्रम के मंच पर गहलोत के साथ साथ मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, गुजरात के मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल एवं अन्य नेता भी मौजूद थे।
मोदी ने अपने संबोधन की शुरुआत में कहा, ‘‘मुख्यमंत्री के नाते अशोक गहलोत जी और हम साथ-साथ काम करते रहे और अशोक जी मुख्यमंत्रियों की जमात में सबसे सीनियर थे.. सबसे सीनियर मुख्यमंत्रियों में हैं और अब भी जो मंच पर बैठे हैं उनमें भी अशोक जी सीनियर मुख्यमंत्रियों में एक हैं। उनका यहां आना, आज कार्यक्रम में उपस्थित रहना.. आजादी के अमृत महोत्सव में हम सभी का मानगढ धाम आना यह हम सबके लिये प्रेरक है सुखद है।” उन्होंने कहा कि ‘‘ मानगढ़ धाम राजस्थान, गुजरात, मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र के लोगों की सांझी विरासत है।”
इस अवसर पर चौहान ने कहा कि हमारे देश को आजादी अंग्रेजों ने चांदी की इस तश्तरी में रखकर भेंट नहीं की, बल्कि हजारो क्रांतिकारी हंसते-हंसते फांसी के फंदे पर चढ़ गये थे। उन्होंने कहा कि कईयों ने अपनी जिंदगी अंडमान और निकोबार की जेलों में गुजार दी थी और कई ऐसे थे जिन्होंने अपने खून की बूंद से मानगढ़ और भारत की भूमि को पवित्र किया था.. रंगा था तब जाकर यह देश स्वतंत्र हुआ था लेकिन आजादी के बाद आजादी की लड़ाई का सही इतिहास सचमुच में नहीं पढ़ाया गया और कई शहीद ऐसे थे जिनका बलिदान सामने नहीं आया। उन्होंने कहा कि आजादी के जिन क्रांतिकारियों का नाम सामने नहीं आ पाया उनके बलिदान स्थल पर अगर स्मारक बनाने का फैसला किसी ने किया, तो हमारे प्रिय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किया है।
पटेल ने कहा कि हमारा आदिवासी समाज एक बलिदानी समाज है तथा राजस्थान, गुजरात और मध्यप्रदेश के त्रिसंगम पर स्थित यह मानगढ़ हिल हमारे आदिवासी भाई-बहनों की वीरता की अनेक उदाहरणों में से एक है। उन्होंने कहा कि 17 नवंबर 1913 का वो काला दिन कौन भूल सकता है जब अंग्रेजों ने लगभग 1500 आदिवासी भाई-बहनों को गोलियों से भून दिया था। उन्होंने कहा कि जलियांवाला बाग हत्याकांड से भीषण इस मानगढ हत्याकांड में हजारो आदिवासी राष्ट्रप्रेमी लोगों ने अपने प्राणों की आहुति दे दी।
उल्लेखनीय है कि मानगढ़ की पहाड़ी भील समुदाय और राजस्थान, गुजरात और मध्य प्रदेश की अन्य जनजातियों के लिए विशेष महत्व रखती है। स्वतंत्रता संग्राम के दौरान यहां भील और अन्य जनजातियों ने लंबे समय तक अंग्रेजों से लोहा लिया। स्वतंत्रता सेनानी श्री गोविंद गुरु के नेतृत्व में 17 नवंबर 1913 को 1.5 लाख से अधिक भीलों ने मानगढ़ पहाड़ी पर सभा की थी। इस सभा पर अंग्रेजों ने गोलियां चला दीं, जिसमें लगभग 1,500 आदिवासियों की जान चली गई।