हेमंत सोरेन के जेल जाने के पहले ही एहतियात के तौर पर महागठबंधन के विधायकों ने चंपई सोरेन को अपना नेता चुन लिया था। इसके बाद का घटनाक्रम सबके सामने है और यह दिन के उजाले की तरफ साफ हो गया कि राज्यपाल भी दिल्ली के इशारे पर बहुमत के चुने गये नेता को शपथ दिलाने में विलंब कर रहे थे। दूसरी तरफ मीडिया का एक वर्ग लगातार यह प्रचारित कर रहा था कि इस महागठबंधन में फूट है और बहुमत का समर्थन चंपई सोरेन को प्राप्त नहीं है। इसके लिए सीता सोरेन के बयान को भी उछाला गया।
लेकिन इसके बीच फिर से राजभवन के जरिए गैर भाजपा सरकारों को नियंत्रित करने की साजिशों का खुलासा हो गया। इससे पहले देश ने दिल्ली के उप राज्यपाल, तमिलनाडू के राज्यपाल और पंजाब के राज्यपाल के अलावा समय समय पर पश्चिम बंगाल के राज्यपाल का तेवर देखा है। वर्तमान उपराष्ट्रपति धनखड़ जब पश्चिम बंगाल के राज्यपाल थे तब भी उनके भाजपा समर्थक होने के तेवर से हर कोई वाकिफ है। अब दूसरी तरफ पर झांके तो पता चलता है कि झारखंड मुक्ति मोर्चा के नेता हेमंत सोरेन ने बुधवार को प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) द्वारा मनी लॉन्ड्रिंग के आरोप में गिरफ्तार किए जाने से कुछ देर पहले झारखंड के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। श्री सोरेन पर फर्जी दस्तावेजों के आधार पर आदिवासी भूमि लेनदेन से लाभ उठाने का आरोप है। न्यायपालिका इन आरोपों की जांच करेगी, लेकिन किसी आरोपी की गिरफ्तारी की आवश्यकता क्या है, यह एक गंभीर प्रश्न है जिसे न्यायपालिका को स्पष्ट और लागू करने योग्य शर्तों में हल करने की आवश्यकता है। धन शोधन निवारण अधिनियम (पीएमएलए) के तहत ईडी के पास गिरफ्तारी की व्यापक शक्तियां हैं। पीएमएलए मामलों में जमानत की बाधाएं बहुत अधिक हैं। इन शक्तियों को बरकरार रखने वाले सुप्रीम कोर्ट के जुलाई 2022 के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाएँ उसके समक्ष लंबित हैं। इस बीच, ईडी ने एक विपक्षी दल के मुख्यमंत्री को गिरफ्तार करके दांव बढ़ा दिया है, जिसे एक नियमित कानून प्रवर्तन घटना के रूप में नहीं देखा जा सकता है। श्री सोरेन के वकीलों ने 1 फरवरी को अदालत में उल्लेख किया कि इसका देश की राजनीति पर प्रभाव पड़ेगा, गिरफ्तारी के खिलाफ उनकी याचिका पर तत्काल सुनवाई की मांग की गई। इस बीच, चार बार पूछताछ के लिए उपस्थित नहीं होने पर ईडी ने दिल्ली के मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी नेता अरविंद केजरीवाल को 2 फरवरी को उसके सामने पेश होने के लिए कहा है। इस समन को भी केजरीवाल ने नजरअंदाज कर दिया है। दूसरी तरफ सुप्रीम कोर्ट ने हेमंत सोरेन को हाईकोर्ट जाने की सलाह दी है। श्री सोरेन ने ‘गरीबों, दलितों और आदिवासियों पर अत्याचार करने वाली सामंती व्यवस्था के खिलाफ युद्ध‘ का आह्वान किया है, अपने खिलाफ मामले को उन आदिवासी समुदायों पर हमला बताया है जिनका वह प्रतिनिधित्व करते हैं। आरोपों का सामना करते हुए, राजनेता अक्सर अपनी सामुदायिक पहचान के पीछे छुपने की कोशिश करते हैं, लेकिन यह निर्विवाद है कि भारतीय कानून के लंबे हाथ समाज के कमजोर वर्गों तक अधिक आसानी से पहुंचते हैं। श्री सोरेन की गिरफ्तारी से झामुमो की मुश्किलें खत्म नहीं हुईं। नए मुख्यमंत्री का चयन पारिवारिक झगड़े में उलझ गया। इसके बजाय, एक समझौते के रूप में, यह आदिवासी अधिकारों के लिए अनुभवी सेनानी चंपई सोरेन होंगे, लेकिन राज्यपाल ने अभी तक उन्हें सरकार बनाने के लिए आमंत्रित नहीं किया है जबकि बिहार में नीतीश कुमार पांच घंटे में ही दोबारा मुख्यमंत्री बनाये गये। झारखंड पुलिस ने एससी/एसटी (अत्याचार निवारण) अधिनियम के तहत श्री सोरेन की शिकायत के आधार पर पहली सूचना रिपोर्ट दर्ज की है, लेकिन इसके टिकने की संभावना नहीं है। उन्होंने कहा, ईडी की जांच ने अब एक पैटर्न स्थापित किया है जो सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी के राजनीतिक डिजाइनों के साथ बिल्कुल फिट बैठता है। श्री सोरेन की गिरफ्तारी बिहार में गठबंधन की पुनर्रचना के बाद हुई जिसने भाजपा को सत्ता में वापस लाया, जहां राज्यपाल ने इसे सुविधाजनक बनाने के लिए तेजी से काम किया। कई मौकों पर, ईडी की जांच के दायरे में आए नेता भाजपा से हाथ मिलाने के बाद जादुई तरीके से बेदाग हो गए। कभी-कभी केंद्रीय एजेंसियां जो भेद करती हैं वह भ्रष्ट और साफ-सुथरे लोगों के बीच नहीं, बल्कि यह होता है कि कोई भाजपा के साथ है या नहीं। वैसे यह तय हो गया है कि भाजपा जो रास्ता दिखाती जा रही है वह भविष्य में भाजपा के ही अनेक नेताओं की परेशानी का कारण बन सकती है। राजभवन को राजनीति का अखाड़ा बनाने के गलत परिणाम निकलेंगे।