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आर्थिक तूफान के लिए हर भारतीय तैयार रहे

आने वाले वर्ष यानी 2024 के मध्य तक या उससे आगे भी राजनीतिक और भूराजनीतिक अनिश्चितताएं निवेशकों के सामान्य आर्थिक विचारों पर हावी रहेंगी। वैश्विक वित्तीय बाजार भी इजरायल और हमास के बीच छिड़े संघर्ष के कारण अप्रत्याशित अस्थिरता के दौर के लिए तैयार हैं। इसके चलते ईंधन आपूर्ति को लेकर नए सिरे से आशंकाएं उत्पन्न हो गई हैं और यह बात पहले ही मुश्किल से जूझ रही विश्व अर्थव्यवस्था में गतिविधियों को नए सिरे से प्रभावित करेगी।

इसका कारण पहले से  जारी यूक्रेन और रूस का युद्ध है। जहां तक भारत की बात है तो घरेलू राजनीतिक अनिश्चितताएं भी रुझानों में तेज बदलाव की वजह बन सकती हैं। आगामी त्योहारी मौसम में हो सकता है कि उपभोक्ताओं के रुझान में सुधार हो या शायद न भी हो। दूसरी तिमाही में कॉर्पोरेट जगत के प्रदर्शन में नजर आ रहे रुझानों का भी सावधानीपूर्वक विश्लेषण किया जाएगा। इन मोर्चों पर जो भी चिंताएं हैं उनका रुझानों पर गहरा असर होगा।

इजरायल-हमास संघर्ष के कारण कच्चे तेल और गैस की कीमतें पहले ही बढ़ चुकी हैं जबकि यूक्रेन युद्ध ने धातु बाजार को प्रभावित करना जारी रखा है। इस युद्ध की वजह से वैश्विक खाद्य बाजार में भी तंगी के हालात बने हुए हैं। इन बातों के बीच चीन में वृद्धि दर धीमी हो रही है तथा वहां अचल संपत्ति और विनिर्माण क्षेत्र गंभीर चिंता का विषय बना हुआ है। चीन में एवरग्रांडे जैसे बड़े अचल संपत्ति डेवलपरों का भारी भरकम कर्ज चिंता का सबब बन चुका है।

ईंधन की कीमतों में इजाफा मुद्रास्फीति को बढ़ा सकता है और साथ ही बाहरी घाटे और मुद्रा पर दबाव डाल सकता है। कुछ कॉपोर्रेट विश्लेषक मानते हैं कि मॉनसून के अस्थिर होने के बावजूद उपभोक्ता रुझानों में सुधार हुआ है। चुनाव संबंधी खर्च और आगामी त्योहारी मौसम को देखते हुए वित्त वर्ष 2023-24 की दूसरी छमाही में खपत में इजाफा देखने को मिल सकता है। अब तक भारत का शेयर बाजार अच्छी स्थिति में है लेकिन विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों का रुख सतर्कता भरा है।

अमेरिकी केंद्रीय बैंक फेडरल रिजर्व के वक्तव्य सख्ती के रुझान वाले हैं, ऐसे में जल्दी मौद्रिक सहजता की आशा नहीं की जा सकती। विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों ने बीते दो महीनों में 22,700 करोड़ रुपये की बिकवाली की है। इससे पहले उन्होंने जमकर लिवाली की थी। उन्होंने 2023-24 में भी 1.38 लाख करोड़ रुपये की खरीद की। उनके रुख में बदलाव तब आया जब फेड अपने वक्तव्यों में सख्ती बरतने लगा। म्युचुअल फंड के अलावा अन्य घरेलू संस्थान स्थिर गति से खरीद कर रहे हैं।

म्युचुअल फंडों में भी स्थिर आवक जारी है जिससे संकेत मिलता है कि खुदरा निवेशक अभी भी शेयरों को लेकर सकारात्मक हैं। स्मॉल कैप में भी खरीदी हुई है और साथ ही प्राथमिक बाजार गतिविधियों में सुधार देखने को मिला है। इन दोनों बातों से यही संकेत मिलता है कि खुदरा क्षेत्र में मजबूती आ रही है। मौजूदा भूराजनीतिक हालात में रिजर्व बैंक मौद्रिक सख्ती संबंधी अपना रुख नहीं बदलेगा, हालांकि वह ब्याज दरों को फिलहाल रोके रख सकता है।

अधिकांश निवेशकों के लिए अन्य बड़ा मसला होगा राजनीतिक ​स्थिरता। भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाली सरकार ने बीते दस वर्षों में निरंतरता प्रदान की है और बाजार आमतौर पर राजनीतिक स्थिरता से प्रसन्न नजर आते हैं। परंतु भारत अहम विधानसभा चुनावों की दिशा में बढ़ रहा है जिनके बाद अप्रैल-मई 2024 में आम चुनाव होंगे। जब तक अगली सरकार की तस्वीर साफ नहीं होगी निवेशक भी भविष्य की नीति को लेकर अनिश्चित रहेंगे। नई सरकार का आकार और स्वरूप के सामने आने के बाद ही इसमें बदलाव आएगा। मूल्यांकन की बात करें तो भारतीय बाजार फिलहाल बिल्कुल सस्ते नहीं हैं।

हालांकि अहम सूचकांकों का मूल्यांकन ऐतिहासिक ऊंचाई की तुलना में कम औसत मूल्य से आय गुणक पर किया जा रहा है। ऐसे में वैश्विक हालात सुधरने तथा चुनावी मौसम समाप्त होने तक अस्थिरता बनी रहने की उम्मीद है। इन हालात में निवेशक सतर्क रहें तो बेहतर होगा।

जाहिर तौर पर बाजार में निवेश में कमी अथवा उतार चढ़ाव का असर आम जनजीवन पर भी पड़ता है और इसी वजह से हमें अपनी पूर्व यानी प्राचीन सामाजिक अर्थव्यवस्था के रास्ते पर चलना चाहिए, जिसमें घरेलू बचत एक अनिवार्य शर्त है। पूर्व में भी आयी वैश्विक मंदी से भारत के बहुत कम प्रभावित होने की मुख्य वजह यही रही है।

अभी कोरोना महामारी के बाद से घरेलू बजट अब तक पूर्व स्थिति में नहीं लौट पाया है जबकि भारत में बाजारवाद का प्रलोभन पहले से अधिक बढ़ गया है। ऐसी स्थिति में यह हर भारतीय परिवार की जिम्मेदारी बनती है कि वह अन्य कार्यों के साथ साथ घरेलू बचत पर अभी से ध्यान दे ताकि जब संकट शीर्ष पर हो तब भी दूसरे पश्चिमी देशों के जैसा उनकी बुरी हालत नहीं हो। बाढ़ आने के पहले से बचाव का स्थान तय करना भी बुद्धिमानी है।

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