जो तुम हंसोगे तो पूरा देश हंसेगा, यह उम्मीद बेमानी है। चुनाव करीब आ रहा है और अपनी पुरानी आदत के माफिक इंडिया सॉरी भारत का मैंगो मैन फिर से पलटी मारता नजर आने लगा है। पहले तो ऐसा ही होता था। मोदी जी ने जब जो कुछ कहा, उस पर देश के बहुमत ने आंख बंद कर भरोसा किया। अब माहौल थोड़ा बदल गया है। लगता है कि वह खुद भी इस बात को अच्छी तरह समझ रहे हैं कि इस बार दाल थोड़ी कड़ी है, इसलिए गलने में टैम ले रहा है। लोग आज भी उसी हर खाते में पंद्रह लाख और हर साल दो करोड़ नौकरी की रट लगाये फिर रहे हैं। अरे भाई मोदी जी ने इतना कुछ तो दिया है फिर ऐसी एहसान फरामोशी क्यों।
लगता है पप्पू पास होने के लिए अपनी भारत जोड़ो यात्रा में इतनी लंबी दूरी तय कर गया कि अब उसके विरोधी भी उसे रावण मानने लगे हैं। इससे साबित हो जाता है कि वाकई पप्पू पास हो गया है। ऊपर से जहां तहां लोगों से मिलने पहुंच जाता है। ऊपर से चुनाव के ठीक पहले यह ओबीसी का मसला सरदर्द बनता जा रहा है। राहुल गांधी ने एक प्रेस कांफ्रेंस में मौजूद पत्रकारों के बीच ही जब ओबीसी, दलित और आदिवासी का सवाल उठा दिया तो बिना कुछ कहे ही सारा सच सामने आ गया और देश की एक बहुत बड़ी आबादी को यह बात समझ में भी आ गयी। अब श्री राम मंदिर का उदघाटन पुराने वोट बैंक को कायम रख पायेगा या नहीं, यह देखने वाली बात होगी।
पता नहीं क्यों मेरे को यह कंफ्यूजन हो रहा है कि पार्टी के अंदर भी दो लोगों की चलती से नाराज लोगों ने भी अबकी बार पल्ला झाड़ रखा है। सारा चुनावी बोझ दो कंधों पर हैं लेकिन उनमें से एक कंधा पहले ही कई चुनावों में नाकाम साबित हो चुका है। पता नहीं किस वजह से लोग उसे चाणक्य कहते हैं।
ऊपर से ईडी, सीबीआई और इनकम टैक्स के हथियार भी अब उतने कारगर साबित नहीं हो रहे हैं। अकेले मनीष सिसोदिया के मामले में सुप्रीम कोर्ट की मौखिक टिप्पणी ने चुनावी आग में घी डालने का काम किया है। अदालत पूछ रही है कि गड़बड़ी की है तो उसका सबूत कहां हैं। यह सवाल सही है क्योंकि पहले हम सभी जानते थे कि भ्रष्टाचार तो कमाई के लिए किया जाता है। इसलिए अगर भ्रष्टाचार का मामला है तो पैसे भी बरामद होने चाहिए।
अगर नहीं सिर्फ चुनाव में खर्च किये गये हैं तो पैसा संबंधित व्यक्ति के हाथ से गुजरा है, इसका कोई सबूत होना चाहिए। अब तक तो किसने पैसा दिया, किसको दिया और कहां खर्च किया, यह सिर्फ जुबानी जमा खर्च की बात हो गयी है। इसलिए पहले जैसा भारतीय मतदाता हर बात में हां में हां मिलाने से कतरा रहा है, यही भय पैदा कर रहा है।
इसी बात पर एक पुरानी फिल्म का गीत याद आने लगा है। फिल्म का नाम है कठपुतली, जो वर्ष 1971 में बनायी गयी थी। इस गीत को लिखा था वर्मा मलिक ने और संगीत में ढाला था कल्याणी जी आनंद जी ने। किशोर कुमार ने इस गीत को अपना स्वर दिया था। गीत के बोल कुछ इस तरह हैं।
जो तुम हंसोगे तो दुनिया हंसेगी
रोओगे तुम तो न रोयेगी दुनिया, न रोयेगी दुनिया
तेरे आंसुओ को समझ न सकेगी
तेरे आँसुओ पे हँसेगी ये दुनिया हँसेगी ये दुनिया
सूरज की किरणों ने जग में किया सवेरा
सूरज की किरणों ने जग में किया सवेरा
दीपक जो हंसने लगा तो हो गया दूर अँधेरा
हो गया दूर अँधेरा
जगमगाते रहो गुनगुनाते रहो
ज़िन्दगी में सदा मुस्कराते रहो
जो तुम हंसोगे तो दुनिया हंसेगी
रोवोगे तुम तो न रोयेगी दुनिया न रोयेगी दुनिया
कली हँसी तो फूल खिला फूल से हंसे नज़ारे
कली हँसी तो फूल खिला फूल से हंसे नज़ारे
लेकर हंसी इन नज़रो की हंस दिए चाँद सितारे
हंस दिए चाँद सितारे
तुम सितारों की तरह तुम नज़रो की तरह
ज़िन्दगी में सदा मुस्कराते रहो
जो तुम हंसोगे तो दुनिया हंसेगी
रोओगे तुम तो न रोयेगी दुनिया
न रोयेगी दुनिया
तेरे आंसुओ को समझ न सकेगी
तेरे आँसुओ पे हँसेगी ये दुनिया
हँसेगी ये दुनिया।
अब अपने झारखंड में भी देख लें। हेमंत बाबू ईडी से दो दो हाथ करने को तैयार थे। उम्मीद थी कि अदालत से कोई राहत मिल जाएगी। नहीं मिली तो आगे क्या होगा, यह देखने वाली बात होगी। सवाल उठ गया है कि आखिर पैसा कहां है। स्विस बैंक से जो पैसा मोदी जी लाने वाले थे, उसका कोई अता पता नहीं चला। सिर्फ अपने पैदल यात्रा के दौरान अडाणी का मसला राहुल गांधी ने कुछ ऐसा उठा दिया कि मैंगों मैन भी वह फार्मूला जानना चाहता है जिसके जरिए अडाणी की इतनी तरक्की हुई है।