मेरे ख्वाबों में कई चीजें आ रही हैं। सपने में देखता हूं रसोई गैस के बाद पेट्रोल और डीजल और सस्ता हो गया। गरीबों को मुफ्त राशन के साथ साथ आधा किलो दूध भी मिलने लगा। मणिपुर में सब कुछ शांत हो गया और राम मंदिर का भव्य उदघाटन हो गया। खैर यह तो मेरी अपनी बात है। सत्ता के चारों तरफ चक्कर काट रहे ग्रह और उपग्रह क्या सपना देख रहे होंगे, इस पर कभी सोचा है। यह सोचना चाहिए कि आखिर उनके ख्याबों में क्या कुछ आता होगा।
सबसे पहले उन एंकरों की बात कर लें, जिनका बॉयकॉट इंडिया गठबंधन ने कर दिया है। उनके सपने में तो यही बार बार आता होगा कि चाहे कुछ भी हो नरेंद्र मोदी फिर से प्रधानमंत्री बन जाए। कई बार डर के मारे नींद भी खुलती होगी कि जैसा वह सोच रहे हैं, उसका उल्टा हो गया है। कल्पना कीजिए कि अगर वाकई सरकार बदल गयी तो इन बेचारों का क्या होगा। किसकी नौकरी रहेगी और किसकी जाएगी, यह चिंता दिन भर सताती है।
जो किसी तरह जेल से बाहर दिखते थे क्या वे फिर से जेल के अंदर होंगे, यह दूसरे किस्म की चिंता है। लेकिन चिंता सिर्फ इन एंकरों की नहीं बल्कि उनके मालिकों की भी बढ़ रही होगी। अब तक सरकार से जो माल मुनाफा कमाया है, उसका भविष्य क्या होगा। कई लोगों पर तो इतना कर्ज है कि सरकार बदली तो कंपनी ही नीलाम हो जाएगी। ख्वाब दूसरों को भी आती होगी खासकर उस अनजान चेहरे को, जो अब तक पर्दे के पीछे से टीवी चैनलों पर अपना हुक्म चलाता रहा है। पता नहीं दो चार डंडे पड़े तो इन चौदह लोगों में से कौन मुंह खोल दे। फिर तो जेल की रोटी खानी पड़ेगी।
अब राहुल गांधी को क्या सपना यानी ख्वाब आता होगा, यह भी सोचना वाली बात है। वैसे इतना तो लगता है कि इतनी लंबी दूरी तक चल लेने के बाद उन्हें नींद की कोई समस्या नहीं होगी। उनके उलट गौतम अडाणी जी को भी सपने आते होंगे लेकिन तय मानिए कि वह डरावने ही होंगे।
अब तक का सारा कुछ किया धरा अगर जमीन पऱ आ गया और छिपी हुई बातें सामने आ गयी तो चादर का कौन सा कोना संभालेंगे और किस कोना को जाने देंगे। अपने पूर्व के पप्पू ने जिनलोगों को अब गप्पू बना दिया है, उन्हें भी अपने भविष्य की चिंता सताती होगी। वाशिंग मशीन से धुलकर निकले तो बच गये लेकिन क्या यह बचाव स्थायी हो पायेगा।
देश की अन्यतम चर्चित और सुपरहिट फिल्म दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे के इस गीत को लिखा था आनंद बक्षी ने और संगीत में ढाला था जतिन और ललित की जोड़ी ने। इसे लता मंगेशकर ने अपना स्वर दिया था। गीत के बोल कुछ इस तरह हैं।
मेरे ख़्वाबों में जो आए, आके मुझे छेड़ जाए
मेरे ख़्वाबों में जो आए, आके मुझे छेड़ जाए
उस से कहूँ कभी सामने तो आए
मेरे ख़्वाबों में जो आए …
कैसा है कौन है वो जाने कहाँ है
कैसा है कौन है वो जाने कहाँ है
जिसके लिए मेरे होंठों पे हाँ है
अपना है या बेगाना है वो
सच है या कोई अफ़साना है वो
देखे घूर-घूर के यूँही दूर-दूर से
उससे कहूँ मेरी नींद न चुराए
मेरे ख़्वाबों में जो आए …
जादू से जैसे कोई छलने लगा है
जादू से जैसे कोई छलने लगा है
मैं क्या करूँ दिल मचलने लगा है
तेरा दीवाना कहता है वो
चुप-चुप से फिर क्यों रहता है वो
कर बैठा भूल वो, ले आया फूल वो
उससे कहूँ जाए चाँद लेके आए
मेरे ख़्वाबों में जो आए …
इनसे अलग दिन और रात में ख्वाब देखने वाले वैसे सांसद और भावी सांसद भी है। समझदार लोगों को पता चल गया है कि साहब के लोग सिर्फ ट्विटर यानी अब एक्स पर ही नजर रखते हैं। इसलिए दिन भऱ जो कुछ करते हैं, एक्स पर उसकी जानकारी देकर अपनी दोबारा वाली दावेदारी मजबूत करने की कोशिशों में जुटे हैं।
जिन्हें टिकट चाहिए वे इसी ख्वाब के चक्कर में गाहे बगाहे दिल्ली दरबार का चक्कर लगा रहे हैं। इसलिए ख्वाबों में जो कुछ आ रहा है, इसका एक ठोस निष्कर्ष निकलना चाहिए।
वैसे इन सभी को इनदिनों किसी ने किसी लेबल पर मैंगों मैन की चिंता करने वाले अदालतों का सपना भी आ रहा होगा। खास कर सरकार और उसकी एजेंसियों के काम काज पर नजर रखने वाले सुप्रीम कोर्ट ने वाकई कई लोगों को चिंताग्रस्त कर रखा है। पता नहीं कब कौन सा फैसला ऐसा आ जाए कि बाजी उल्टी पड़ जाए। अब देखिये शीर्ष अदालत ने सरकार के न चाहते हुए भी ईडी के निदेशक को रिटायर होने पर मजबूर कर दिया। मणिपुर पर भी एक एक कर रहस्यों पर से पर्दा उठ रहा है। ख्वाबों में सुप्रीम कोर्ट किसे भयभीत कर रहा है, बूझो तो जाने।