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वाशिंग मशीन की टूटता तिलिस्म

विधानसभा उपचुनावों में दो परिणाम यह दर्शाते हैं कि भाजपा की वाशिंग मशीन का प्रभाव अब मतदाताओं पर घट रहा है। उत्तरप्रदेश इनमें महत्वपूर्ण है जबकि पश्चिम बंगाल के धुपगुड़ी में भी टीएमसी ने भाजपा पर जीत बनायी है। घोसी की बात करें तो सपा प्रत्याशी सुधाकर सिंह ने मतगणना के सभी दौर में भाजपा उम्मीदवार दारा सिंह चौहान पर बढ़त बनाए रखी, जिससे जाहिर तौर पर संकेत मिलता है कि उन्हें निर्वाचन क्षेत्र के दलित बहुल इलाकों में भी मतदाताओं का समर्थन मिला।

ऐसा प्रतीत होता है कि दलित मतदाताओं ने शुक्रवार को घोसी विधानसभा उपचुनाव में समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार सुधाकर सिंह की जीत में निर्णायक भूमिका निभाई, जबकि बहुजन समाज पार्टी (बसपा) प्रमुख मायावती ने अपने पार्टी समर्थकों से मतदान से दूर रहने या नोटा का विकल्प चुनने का आह्वान किया था।

सुधाकर सिंह ने मतगणना के सभी दौर में भाजपा उम्मीदवार दारा सिंह चौहान पर बढ़त बनाए रखी, जिससे जाहिर तौर पर संकेत मिलता है कि उन्हें निर्वाचन क्षेत्र के दलित बहुल इलाकों में भी मतदाताओं का समर्थन मिला। 2022 के विधानसभा चुनाव में सपा के टिकट पर दारा सिंह चौहान को 1,08,430 वोट मिले जबकि भाजपा प्रत्याशी विजय कुमार राजभर को 86,214 वोट मिले।

पिछले साल चौहान ने 22,216 वोटों से चुनाव जीता था। उपचुनाव में, सुधाकर सिंह को 1,24,427 वोट मिले, जबकि चौहान को भाजपा उम्मीदवार के रूप में 81,668 वोट मिले और वह 42,759 वोटों से हार गए। 2022 के विधानसभा चुनाव में, बसपा उम्मीदवार वसीम एकबाल को निर्वाचन क्षेत्र में 53,953 वोट मिले, जिसमें लगभग 60,000 दलित मतदाता हैं।

2022 के विधानसभा चुनाव की तुलना में 2023 के उपचुनाव में सपा प्रत्याशी को ज्यादा वोट मिले। सपा नेता असित यादव ने कहा, यह स्पष्ट संकेत है कि पार्टी के आधार वोट – ओबीसी और मुस्लिम – के साथ-साथ पार्टी उम्मीदवार को दलित समुदाय का भी समर्थन मिला क्योंकि बसपा ने उपचुनाव में कोई उम्मीदवार नहीं उतारा था। घोसी में 2022 के विधानसभा चुनाव में जहां 1,246 मतदाताओं ने नोटा का विकल्प चुना, वहीं इस साल 5 सितंबर को हुए उपचुनाव में 1,725 मतदाताओं ने नोटा का बटन दबाया।

यादव ने कहा, यह स्पष्ट रूप से इंगित करता है कि दलित मतदाताओं ने बसपा प्रमुख के आह्वान की अवहेलना की। सपा नेता के दावे पर पलटवार करते हुए बसपा के एक नेता ने कहा कि 2022 के विधानसभा चुनाव में घोसी में 58.53 फीसद वोट पड़े थे लेकिन इस साल उपचुनाव में मतदान प्रतिशत गिरकर 50 फीसद हो गया। मतदान प्रतिशत में गिरावट इस बात का संकेत है कि दलित मतदाता मतदान से दूर रहे। बसपा ने 1993 और 2007 में घोसी विधानसभा सीट जीती थी।

यह 1989, 1996, 2012 और 2017 के विधानसभा चुनावों में उपविजेता रही थी। 2019 के लोकसभा चुनाव में बसपा को घोसी लोकसभा सीट मिली। वरिष्ठ सपा नेता राजेंद्र चौधरी ने कहा, दलित समेत सभी समुदायों का वोट सपा को मिला। अपने मतदाताओं से मतदान से दूर रहने का आह्वान कर भाजपा प्रत्याशी की जीत का मार्ग प्रशस्त करने की बसपा की रणनीति विफल रही। दलित समुदाय इंडिया के साथ एकजुटता व्यक्त करने के लिए 2024 के लोकसभा चुनाव में सपा का समर्थन करेगा। बसपा की उपचुनाव में उम्मीदवार नहीं उतारने की रणनीति से 2024 के लोकसभा चुनाव में उसकी संभावनाओं को नुकसान पहुंचने की संभावना है।

बसपा प्रमुख मायावती एनडीए और  इंडिया से दूरी बनाकर 2024 के लोकसभा चुनाव में तीसरी ताकत बनकर उभरने की रणनीति पर काम कर रही हैं। विधानसभा उपचुनाव में सपा की जीत के बाद मतदाताओं में यह संदेश गया है कि लोकसभा चुनाव में सपा भाजपा की ताकत को चुनौती देने की क्षमता रखती है। दरअसल उत्तरप्रदेश का यह चुनाव परिणाम भाजपा के लिए शुभ संकेत नहीं है। इससे पहले लगातार चुनावों में जीत दर्ज करने वाली पार्टी के प्रति नेताओं में यह सोच पनपी थी कि कमल फूल निशान के नीचे जाना उन्हें सरकारी एजेंसियों से सुरक्षा प्रदान करने के साथ साथ जीत की गारंटी देता है।

अब खुद उत्तरप्रदेश से ही यह सोच गलत साबित होने के बाद मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र में दलबदल करने वाले विधायकों और सांसदों की चिंता बढ़ना स्वाभाविक है। वैसे भी एक पुरानी कहावत है कि जब नाव डूबने लगती है तो सबसे पहले चूहे जहाज से कूदने लगते हैं। इसलिए भाजपा की वाशिंग मशीन की सोच आने वाले दिनों में चुनावी राजनीति पर कितना असर डालेगी, इस पर सवाल उठ गया है। दूसरी तरफ यह मुद्दा भी महत्वपूर्ण है कि बसपा के दोनों खेमा से अलग होने से कई चुनावी समीकरणो में उलटफेर हो सकता है। बसपा की पकड़ सिर्फ उत्तरप्रदेश ही नहीं बल्कि कई अन्य राज्यों में भी उनका अपना जनाधार है। इससे चुनावी आकलन में हेरफेर होना तय माना जा रहा है। इंडिया और भारत में उलझी विपक्ष की राजनीति के बीच यह बड़ा सवाल सिर्फ भारतीय जनता पार्टी के लिए है।

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