Breaking News in Hindi

रात भर का है मेहमान अंधेरा.. … …

मणिपुर की हालत कुछ ऐसी है कि चारों तरफ अंधेरा ही अंधेरा दिखाई दे रहे हैं। दरअसल जब सत्ता ही हिंसा को बढ़ावा दे और सामाजिक विभेद के जरिए अपनी गोटी सेट करे तो इस किस्म के हादसों का क्या बुरा असर होता है, यह तो हम सूडान में जारी गृहयुद्ध या म्यामांर में सैन्य शासन के खिलाफ उठ खड़े हुए नागरिक समूहों से समझ और सीख सकते हैं।

दरअसल आम आदमी जो कुछ बड़ी आसानी से समझ सकता है, वह राजनीति की कुर्सी पर बैठे लोग क्यों नहीं समझ पाते, यह सोचने वाली बात है। मान सकते हैं कि सत्ता की लालच बहुत कुकर्म कराती है पर यह सत्ता स्थायी तो नहीं है। आज नहीं तो कल सत्ता होने के बाद भी सत्ता पर आसीन आदमी नहीं रहेगा, यह भी शाश्वत सत्य है।

वैसे इस भारतीय सोच को शायद आज भी बहुत सारे लोग समझ नहीं पाये हैं कि आम भारतीय बहुत लंबे काल तक हिंसक गतिविधियों को सहन नहीं करता और प्रतिक्रिया में उससे भी अधिक हिंसक गतिविधियों को अंजाम देता है। पंजाब के आतंकवाद की आग कहां तक फैली थी, इसका अनुभव तो हमें है।

अब नये सिरे से उत्तर पूर्व में जो हिंसा भड़का है, उसका असर भी इतनी जल्दी तो खत्म नहीं होगा लेकिन हम मिल जुलकर प्रयास तो कर सकते हैं। हर मुद्दे को राजनीतिक चश्मे से देखना एक बड़ी भूल है। पहली बार ऐसा साफ साफ प्रतीत हो रहा है कि नरेंद्र मोदी ने सत्ता संभालने वक्त जो कुछ भी कहा था, वह पूरा सच नहीं था।

एक पुरानी कहावत है कि सत्ता आदमी को भ्रष्ट बनाती है और असीम सत्ता आदमी को तानाशाह बना देती है। बेझिझक कहें तो इतने दिनों की हिंसा के बाद सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी जानकर नरेंद्र मोदी ने सिर्फ मीडिया के सामने जो कुछ कहा, वह इस बात का संकेत है कि वह इतनी हिंसा के बाद भी अपनी फैसले से पीछे नहीं हटना चाहते।

दूसरी तरफ उनके मणिपुर के मुख्यमंत्री एन वीरेन सिंह अब राज्य के एक बड़े वर्ग का भरोसा ही खो चुके हैं और मैतेई समुदाय के पक्षपाती के तौर पर पहचाने जा रहे हैं। श्री मोदी ने मणिपुर की घटना पर दुख व्यक्त करते हुए भी अपने लोगों को यह इशारा दे दिया कि बंगाल और राजस्थान की हिंसा का मुद्दा भी उठाना है। बस और क्या टेप रिकार्डर की तरह बजने वाले लोग चालू हो गये।

इसी बात पर एक बहुत पुरानी ब्लैक एंड ह्वाइट फिल्म का गीत याद आ रहा है। इस गीत को लिखा था साहिर लुधियानवी ने और संगीत में ढाला था ओपी नैय्यर ने। फिल्म 31 दिसंबर के इस गीत को तलत महमूद और आशा भोंसले ने अपना स्वर दिया था। गीत के बोल कुछ इस तरह हैं।

रात भर का है मेहमान अंधेरा किस के रोके रूका है सवेरा
रात भर का है मेहमान अंधेरा किस के रोके रूका है सवेरा
रात भर का है मेहमान अंधेरा

रात जितनी भी संगीन होगी सुबह उतनी ही रंगीन होगी
रात जितनी भी संगीन होगी सुबह उतनी ही रंगीन होगी
गम न कर गर, है बदल घनेरा किस से रोके रूका है सवेरा

रात भर का है मेहमान अंधेरा
लब पे शिकवा न ले अश्क पी ले जिस तरह भी हो खुछ देर जी ले
लब पे शिकवा न ल अश्क पी ले जिस तरह भी हो खुछ देर जी ले
अब उखड़ने को है गम का डेरा किस के रोके रूका है सवेरा
रात भर का है मेहमान अंधेरा

आ कोई मिलके तदबीर सोचे सुख के सपनो की तासीर सोचे
आ कोई मिलके तदबीर सोचे सुख के सपनो की तासीर सोचे
जो तेरा है वो ही गम है मेरा किस के रोके रूका है सवेरा
रात भर का है मेहमान अंधेरा

इस राजनीतिक उठापटक से अलग एक उम्मीद शीर्ष अदालत से हैं, जो अब भी केंद्र सरकार के आगे पूरी तरह नतमस्तक होने को तैयार नहीं है। वरना दूसरी स्वायत्त संस्थानों ने तो पूरी तरह हथियार डाल दिये हैं, यह साफ हो चुका है। सवाल यह नहीं है कि इन संस्थाओं पर दबाव क्यों है, सवाल यह महत्वपूर्ण है कि इन संस्थाओं ने हथियार क्यों डाले हैं। अब उदाहरण के लिए ईडी को ही ले लें। उसके बार बार सेवाविस्तार पाने वाले मुखिया 31 जुलाई को अदालत के आदेश पर हट जाएंगे। उसके बाद कौन आयेगा और कैसा आचरण करेगा, यह देखने वाली बात होगी।

कुल मिलाकर दो नये सवाल उठ गये हैं। पहला तो क्या यह वही भाजपा है, जिसे हम अटल बिहारी बाजपेयी के समय जानते थे या इसका नाम छोड़कर सब कुछ बदल चुका है। दूसरा सवाल कि अगर जनता की नाराजगी से जनादेश इस सरकार के खिलाफ गया तो हर बात पर सरकार का डंका बजाने वाली मुख्य धारा की मीडिया का भविष्य क्या होगा। अंत में यह याद रखना होगा कि रामधारी सिंह दिनकर ने लिखा है

समर शेष है, नहीं पाप का भागी केवल व्याध
जो तटस्थ हैं, समय लिखेगा उनके भी अपराध।।

Leave A Reply

Your email address will not be published.