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नये भाजपा विरोधी गठबंधन का नाम इंडिया होने पर बयानबाजी

  • 19 वर्षों तक कार्यरत था यह यूपीए

  • नये गठबंधन के संयोजक का फैसला नहीं

  • इंडिया की अगली बैठक अब मुंबई में होगी

राष्ट्रीय खबर

नईदिल्लीः लगातार 19 साल बाद सक्रिय रहने के बाद अंततः यूपीए (संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन) इतिहास हो गया। उसका नाम और आकार भले ही बदल गया हो लेकिन लक्ष्य नहीं बदला। 2004 के लोकसभा चुनाव के बाद कांग्रेस के नेतृत्व में राष्ट्रीय स्तर पर बना भाजपा विरोधी गठबंधन यूपीए मंगलवार को बेंगलुरु में लगभग ध्वस्त हो गया। भाजपा का विरोध करने के लिए एक नया गठबंधन – इंडिया (भारतीय राष्ट्रीय विकासात्मक समावेशी गठबंधन) उभरा है। विपक्षी खेमे के सूत्रों के मुताबिक, इसका नामकरण करने में तृणमूल नेता ममता बनर्जी की भूमिका अहम है।

बेंगलुरु बैठक में मौजूद रहे तृणमूल के राज्यसभा नेता डेरेक ओ ब्रायन ने मंगलवार को कहा, सोमवार रात को सोनिया गांधी के रात्रिभोज से पहले बैठक में नए गठबंधन के नाम को व्यावहारिक रूप से अंतिम रूप दिया गया। उन्होंने कहा कि ममता उस क्रम में पहली वक्ता थी और राहुल आखिरी वक्ता। तृणमूल नेता ने अपने भाषण में विपक्षी गठबंधन का नाम प्रस्तावित किया। इसके बाद अरविंद केजरीवाल, शरद पवार, अखिलेश यादव, उद्धव ठाकरे, महबूबा मुफ्ती ने ममता के प्रस्ताव का समर्थन किया। आखिरी वक्ता राहुल ने कहा कि तृणमूल नेता द्वारा प्रस्तावित नाम पर उनका पूरा समर्थन है।

तृणमूल नेतृत्व ने दावा किया कि पार्टी के अखिल भारतीय महासचिव अभिषेक बनर्जी ने विपक्षी गठबंधन के नामकरण में प्रमुख भूमिका निभाई। बेंगलुरु बैठक में वह भी मौजूद थे। दरअसल, सोमवार की रात से ही पटना में विपक्षी गठबंधन की बैठक को लेकर नए समीकरणों का सिलसिला देखने को मिल रहा है। मंगलवार दोपहर की प्रेस कॉन्फ्रेंस ने एक बार फिर पुरानी कहावत का सार साबित कर दिया कि राजनीति अजीब साथी बनाती है’।

प्रेस कॉन्फ्रेंस में नए गठबंधन के नाम पर दूसरी वक्ता ममता ने मोदी को चुनौती देते हुए कहा, अगर आप कर सकते हैं तो हमें हराएं। यह पूछे जाने पर, क्या एनडीए भारत (विपक्ष के नए गठबंधन) को चुनौती दे सकता है? क्या भाजपा ऐसा कर सकती है?’पांचवें वक्ता राहुल ने भी इसी लहजे में कहा, जब भी कोई इंडिया के खिलाफ लड़ा है, हार गया है। संयोग से, मंगलवार को ही दिल्ली के अशोक होटल में भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए की बैठक हुई थी।

भाजपा द्वारा आयोजित 38 राजनीतिक दलों की उस बैठक में, प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने विपक्षी गठबंधन पर हमला किया और कहा, यह भ्रष्टाचार और भाई-भतीजावाद का गठबंधन है। संयोग से, पीछे बैठे महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री के बागी भतीजे अजीत पवार थे। मुख्यमंत्री और एनसीपी प्रमुख शरद पवार, जिन पर हजारों करोड़ रुपये के सिंचाई भ्रष्टाचार का आरोप था। उन्होंने उसी राज्य में अभियान चलाया जिसके खिलाफ उन्होंने कहा था, एनसीपी का मतलब नेचुरली करप्ट पार्टी है।

राजनीतिक पर्यवेक्षकों के एक वर्ग का कहना है कि प्रधानमंत्री को एहसास हो गया है कि अलग-अलग राजनीतिक रुख और विचारधारा वाले विभिन्न दल मोदी के विरोध को भुनाकर ही एक मंच पर आए हैं और इसी वजह से वह शुरू से ही आक्रामक हैं। विपक्षी गठबंधन की पहली बैठक 23 जून को पटना में हुई थी। दूसरी बैठक मंगलवार को बेंगलुरु में हुई। प्रेस कॉन्फ्रेंस के पहले वक्ता कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा कि अगली कॉन्फ्रेंस महाराष्ट्र की राजधानी मुंबई में होगी।

इसका मतलब यह है कि यह पहली बार है जब भाजपा गठबंधन शासित राज्य में विपक्ष की बैठक होगी। संयोग से उस राज्य में भाजपा ने उद्धव ठाकरे की शिवसेना और शरद की एनसीपी को तोड़कर एनडीए की ताकत बढ़ा दी थी। हालांकि नाम बदल गया है, लेकिन बेंगलुरु में नए गठबंधन के अध्यक्ष या संयोजक पद की घोषणा नहीं की गई है। मंगलवार को विपक्षी गठबंधन ने संकेत दिया कि मुंबई बैठक में इस संबंध में फैसला लिया जा सकता है। राजनीतिक सूत्रों के मुताबिक, सत्ता गंवाने के बाद महाराष्ट्र में कांग्रेस-एनसीपी (शरद)-शिवसेना (उद्धव) द्वारा बनाया गया महा विकास अघाड़ी गठबंधन कुछ हद तक बिखर गया है। सूत्रों ने कहा कि इस स्थिति में, बीआर अंबेडकर के पोते और पूर्व सांसद प्रकाश अंबेडकर के नेतृत्व वाले भारिपा बहुजन महासंघ और कुछ अन्य छोटे दलों को देखा जा सकता है।

इंडिया नामकरण पर नीतीश गुट को आपत्ति

ममता बनर्जी के प्रस्ताव पर 26 पार्टियों के विपक्षी गठबंधन का नाम ‘इंडिया रखा गया है। लेकिन नीतीश कुमार को ये नाम पसंद नहीं है। दावा किया गया है कि बिहार के मुख्यमंत्री ने गठबंधन के इस नामकरण का कड़ा विरोध किया। लेकिन नीतीश को आपत्ति क्यों के बारे में सूत्रों का दावा है कि नीतीश को पहले से जानकारी नहीं दी गई थी।

मीटिंग में अचानक नाम का खुलासा हुआ। इस पर जदयू सुप्रीमो नाराज हो गये। उन्होंने पूछा कि गठबंधन का नाम इंडिया कैसे हो सकता है। दरअसल विपक्ष को एकजुट करने में अनुभवी नीतीश की भूमिका निर्विवाद है। लेकिन कांग्रेस जिस तरह से अचानक गठबंधन बनाने की कोशिश कर रही है, उससे जेडीयू और राजद नाखुश हैं।

सवाल उठना स्वाभाविक है कि क्या विपक्षी गठबंधन बनने के बाद उसमें दरार की आशंका के बीज भी पनपे थे? वैसे इस बारे में नीतीश कुमार की सफाई भी आ गयी है और उन्होंने इस किस्म की नाराजगी को गलत बताते हुए कहा कि जल्दबाजी की वजह से वे सभी लोग वहां बैठक खत्म होते ही निकल गये थे।

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