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जिन्हें मूक प्राणी समझा था वे आपस में बात करते हैं

  • घर के पालतू कछुए से पहली जानकारी

  • ऐसे प्राणी दिनभर शोर नहीं मचाते हैं

  • आंकड़ों पर अभी और शोध जरूरी

राष्ट्रीय खबर

रांचीः इंसान जिन प्राणियों की आवाज नहीं सुन पाते थे, उन्हें मूक प्राणी समझ लिया गया था। इतने दिनों के बाद यह सोच गलत प्रमाणित हुई है। इसके साथ ही उन 53 प्रजातियों की पहचान कर ली गयी है, जो पूर्व में मूक प्राणी की श्रेणी में रखे गये थे। इंसानी कान जिनकी आवाजों को सुन सकते थे, उन्हें ही स्वरयुक्त प्राणी समझा गया था। इनमें हाथी से लेकर छोटी पक्षी तक शामिल है।

दरअसल अपनी दैनिक दिनचर्या में इन प्राणियों की आवाज हम सुनते आये हैं। मसलन सुबह की नींद की पक्षियों के चहचहाने से खुलती है। रात के अंधेरे में घर का पालतू अथवा सड़का कुत्ता भी भौंकता है। अपने आस पास कौआ से लेकर बिल्ली तक को हम शोर करते सुन लेते हैं। चिड़ियाघरों या दूसरे स्थानों पर हमलोगों ने अन्य प्राणियों की आवाज सुनी है। लेकिन जिनकी आवाज हम नहीं सुन पाये थे, उन्हें हम वैसा प्राणी मानते थे जो बोलते नहीं है। यह सोच गलत प्रमाणित हुई है।

वैज्ञानिकों ने खास शोध के तहत 53 ऐसी प्रजातियों की पहचान की है, जो आवाज करते हैं। इसे प्रमाणित करने के लिए उनकी आवाज को रिकार्ड भी किया गया है। इस शोध की जानकारी पिछले सप्ताह प्रकाशित प्रमुख वैज्ञानिक पत्रिका नेचर कम्युनिकेशंस में दी गयी है।

ऐसी प्रजातियां आपस में संवाद करती हैं और उनके आवाज का अलग अलग स्वर होता था। इसका अर्थ यह है कि इन आवाजों का अलग अलग संकेत भी होता है। इस शोध से जुड़े यूनिवर्सिटी ऑफ ज्यूरिख के वैज्ञानिक गैब्रियल जोरगिविच कोहेन ने कहा कि हमें पक्षियों के गाने से लेकर ह्वेल की पुकार तक की जानकारी थी। लेकिन दुनिया में ऐसे भी प्राणी हैं जो शायद दो दिन के अंतराल में एक बार संवाद करते हैं।

चूंकि हमें यह नियमित तौर पर सुनाई नहीं पड़ता इसलिए हमलोगों ने इन प्रजातियों को मूक मान लिया था। इंसानों की यह सोच दरअसल गलत थी। अब इस गलत सोच को सुधारने का वक्त आ गया है। ऐसे जीवों के आवाज को सुनने के लिए हमें ध्यान देने की जरूरत है।

वह कहते हैं कि अपने घर के पालतू कछुए पर लगातार ध्यान देने की वजह से यह पता चल पाया कि वह भी आवाज करता है। यह कछुआ कई किस्म की आवाज निकालता है। उसके बाद इस विषय पर शोध की गाड़ी आगे बढ़ी तो एक एक कर कछुए की 50 नमूनों के आवाज रिकार्ड किये गये।
इस क्रम में आम तौर पर हमारी नजरों से ओझल रहने वाले अन्य प्राणियों की आवाज को भी उन्होंने अत्याधुनिक यंत्रों की मदद से रिकार्ड किया। दरअसल ऐसे प्राणी दूसरों की तरह लगातार शोर नहीं करते बल्कि सिर्फ जरूरत पर ही आवाज निकालते हैं और हरेक के पास अलग अलग आवाज का एक सीमित भंडार है।

शोध के तहत ही यह भी पता चला कि जीवित प्राणियों में आवाज का क्रमिक विकास रातों रात नहीं हुआ था। इस धरती पर मौजूद प्राणियों ने धीरे धीरे आवाज निकालना सीखा है। शायद इन सभी प्राणियो के पूर्वजों ने करीब 407 मिलियन वर्ष पहले पहली बार कोई आवाज निकाला होगा। धीरे धीरे अलग अलग प्रजातियों में बंटने की वजह से अलग अलग आवाज यानी ध्वनि का विकास होता चला गया।

आवाज वाला पहला प्राणी शायद डोवोनियम काल का रहा होगा। उस वक्त का जीवन पानी के अंदर ही था। इसलिए पानी के अंदर रहने वाले प्राणियों के आपसी संवाद के बारे में हमे अधिक जानकारी आज भी नहीं है। वे अपने सीमित शब्द भंडार के जरिए आपस में क्या संवाद करते हैं, इसे समझने में अभी और समय लगेगा क्योंकि ऐसे शब्दों पर ज्यादा शोध भी नहीं हुआ है। इस बारे में कनाडा के ब्रिटिश कोलंबिया यूनिवर्सिटी की इरिना बालाघ कहती हैं कि इसके आंकड़ों की अधिकता के गहन विश्लेषण से ही पता चल पायेगा कि कौन से प्राणी कब और कैसे संदेश प्रेषित करते हैं।

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