रूक जाना नहीं कहना तो आसान है पर इस भीषण गर्मी में जगह जगह जाकर जनता को हाथ जोड़ना पड़ रहा है, यह कोई आसान काम नहीं है। चुनावी दंगल में उतरे प्रत्याशी और उनके प्रचारकों की कठिन जिम्मेदारी समझिये। बेचारे गली गली छान रहे हैं कि कहीं कोई छूट ना जाए। ऊपर से चार सौ पार होगा या नहीं, यह बड़ा सवाल बना हुआ है।
मोदी जी और राहुल गांधी के बीच की जुबानी जंग अब अडाणी-अंबानी से लेकर खटाखट खटाखट तक आ पहुंची है। ऊपर से अखिलेश यादव ने चुटकी लेते हुए इसमें फटाफट फटाफट जोड़ दिया है। शुरु में चुनावी जीत का रास्ता जितना आसान लग रहा था, वह अब वइसा नहीं रहा। भाई लोगों ने जगह जगह पर स्पीड ब्रेकर लगा दिये हैं।
ऊपर से पार्टी के दूसरे नेता भी शायद निकम्मे ही हैं कि उनके भरोसे चुनावी गाड़ी आगे नहीं बढ़ पा रही है। लेकिन एक बात समझ में आ गयी कि किसी ने सुझाव देने के नाम पर सारे नेताओं से भद्दा मजाक किया था। सात चरणों के चुनाव में जीभ बाहर आ गया जनसभाओं में भाषण देते देते। वह भी इस गर्मी के मौसम में।
दूसरी तरफ सुप्रीम कोर्ट के माई लॉर्ड लोग हैं कि बार बार कुछ न कुछ तकनीकी मुद्दा उठा लाते हैं और सरकार को उसका जबाव भी देना पड़ता है। अब तो बेचारा चुनाव आयोग भी चौतरफा घिरता हुआ नजर आने लगा है। इससे पहले इलेक्शन कमिशन की ऐसी फजीहत इससे पहले कभी नहीं हुई थी। बार बार लोग आरोप लगा रहे हैं और आने वाले दिनों के लिए खतरा बढ़ता ही जा रहा है।
इंडिया गठबंधन की एक महिला नेत्री ने तो साफ साफ कह दिया है कि इंडिया गठबंधन की सरकार बनी तो हरेक के कामकाज की समीक्षा होगी। इस बात पर अपने मीडिया के साथ ज्यादा चिंतित है क्योंकि सबसे कमजोर कड़ी तो वे लोग ही है। मालिक का क्या, वह तो मौके देखते ही पाला बदल लेगा लेकिन वर्तमान सरकार के साथ अपना चेहरा चमकाने वाले नौकरी में रह पायेंगे या नहीं, यह बड़ी चिंता की बात है। दक्षिण भारत का टेंशन पहले से था अब यूपी में भी तनाव जैसी हालत है।
इसी बात पर फिल्म इम्तहान का एक गीत याद आ रहा है। इस गीत को लिखा था मजरूह सुलतानपुरी ने और संगीत में ढाला था लक्ष्मीकांत प्यारेलाल ने। इसे किशोर कुमार ने अपना स्वर दिया था। गीत के बोल इस तरह हैं।
रुक जाना नहीं तू कहीं हार के
काँटों पे चलके मिलेंगे साये बहार के
ओ राही, ओ राही…
सूरज देख रुक गया है तेरे आगे झुक गया है
जब कभी ऐसे कोई मस्ताना
निकले है अपनी धुन में दीवाना
शाम सुहानी बन जाते हैं दिन इंतज़ार के
ओ राही, ओ राही…
साथी न कारवां है ये तेरा इम्तिहां है
यूँ ही चला चल दिल के सहारे
करती है मंज़िल तुझको इशारे
देख कहीं कोई रोक नहीं ले तुझको पुकार के
ओ राही, ओ राही…
नैन आँसू जो लिये हैं ये राहों के दिये हैं
लोगों को उनका सब कुछ देके
तू तो चला था सपने ही लेके
कोई नहीं तो तेरे अपने हैं सपने ये प्यार के
ओ राही, ओ राही…
एक तरफ की बात होती तो शायद संभाल भी लेते। इस बार तो चौतरफा हमला हो रहा है। हर मोर्चे पर चुनौती है और जनता भी बहुत चालाक हो गयी है। वह भी अपने लिए अधिक सुविधा मांगती जा रही है। सब कुछ अगर जनता को ही दे दिया तो अपने लिए क्या बचेगा। यह चिंता नेताओं को कम और अफसरों को अधिक है क्योंकि असली राज तो देश के अफसर ही भोग रहे हैं। कोई एक फंसता है तो सारे बैच मैच बचाने में जुट जाते है। यानी अंग्रेजों के चले जाने के बाद भी असली सत्ता इन अफसरों के हाथों में ही कैद है। अब कहीं यह स्थिति बदल गयी तो उनकी लाटसाहबी का क्या होगा। टेंशन वाली बात है।
दूसरी तरफ एक अंतरिम जमानत ने मोटा भाई को इतना परेशान कर दिया कि उन्हें सुप्रीम कोर्ट के फैसले की भी आलोचना करनी पड़ गयी। क्या मजबूरी आ गयी है। गुजरात वाले फार्मूले अब दिल्ली में सही तरीके से काम नहीं कर रहे हैं और मौका देखकर चींटी भी अब हाथी को लात मारने लगा है। केजरीवाल ने योगी पर एक बात क्या कह दी, बार बार सफाई देने की नौबत आ गयी है। लेकिन यह भी सच है कि शिवराज सिंह चौहान से लेकर मनोहर लाल खट्टर और वसुंधरा राजे सिंधिया तक सारे साइड लग चुके हैं। इसलिए भय लगता है कि अगर इलेक्शन का रिजल्ट मन मुताबिक नहीं आया तो पार्टी के अंदर भी नाराज बैठे लोग इस जोड़ी की खटिया खड़ी करने में कोई कसर नहीं छोड़ेंगे। इसलिए चार जून तक रूक जाना नहीं।