-
आजादी के पहले के रईस परिवार
-
स्वर्गीय शिव प्रसाद साहू चुनाव लड़े थे
-
भाई गोपाल साहू ने भी आजमाया था हाथ
राष्ट्रीय खबर
रांचीः कांग्रेस के राज्यसभा सांसद धीरज साहू इनदिनों भाजपा के निशाने पर हैं। इसके अलावा टीवी चैनलों को भी अपने कार्यक्रम के लिए एक पंचिंग बैग मिल गया है, जिस पर जितना मर्जी घूंसे बरसाये जा सकते हैं। इसी राजनीतिक दबाव की वजह से कांग्रेस ने भी धीरज साहू से इस पैसे के मामले में स्पष्टीकरण मांगा है।
दूसरी तरफ झारखंड के दक्षिणी छोटानागपुर इलाके के पुराने लोगों को धीरज साहू नहीं उनके परिवार के लोगों से इस पैसे की बरामदगी से कोई हैरानी नहीं है। जो लोग स्वर्गीय बलदेव प्रसाद साहू के जमाने से इस परिवार को जानते हैं, उन्हें पता है कि यह एक अत्यधिक अमीर परिवार है। सिर्फ जमीन से जुड़े रहने की वजह से यह खानदान दूसरे अमीरों की तरह दिखावा कम करता है।
लोहरदगा का कॉलेज भी बलदेव साहू के नाम पर है। दरअसल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा इस मामले का जिक्र किये जाते ही टीवी चैनलों को अपना शिकार दिख गया था। दूसरी तरफ स्थानीय स्तर पर इतने पैसे की बरामदगी को बारे में सामान्य सोच है कि इस परिवार के पास इतना नकद पैसा होना कोई बड़ी बात नहीं है। अलबत्ता लोग मानते हैं कि हो सकता है कि इसमें कुछ रकम बिना आयकर वाली हो। लेकिन यह उनके कारोबार का ही पैसा है, इस पर किसी को कोई संदेह नहीं है।
सबसे पहले यह समझ लें कि यह आयकर का सर्वे है, छापामारी नहीं। यह कार्रवाई भी बौद्ध डिस्टीलरी नामक कंपनी पर है। इस कंपनी का अपना वेबसाइट भी है, जिस पर हर सूचना मौजूद है। बीडीपीएल समूह का मुख्यालय ओडिशा में है, जिसमें 6 व्यावसायिक प्रभागों में 4 कंपनियां शामिल हैं।
प्रत्येक कंपनियां निदेशक मंडल के मार्गदर्शन और पर्यवेक्षण के तहत स्वतंत्र रूप से काम करती हैं। कंपनियों में बौध डिस्टिलरी प्राइवेट लिमिटेड (ईएनए, सीओ2, डीडीजीएस), बलदेव साहू इंफ्रा प्राइवेट लिमिटेड (फ्लाई ऐश ब्रिक्स) क्वालिटी बॉटलर्स प्राइवेट लिमिटेड (आईएमएफएल बॉटलिंग) और किशोर प्रसाद बिजय प्रसाद बेवरेजेज प्राइवेट लिमिटेड (आईएमएफएल ब्रांडों की बिक्री और विपणन) शामिल हैं।
इस कंपनी में राज्यसभा सांसद के भाई उदय शंकर प्रसाद चेयरमैन हैं। इस कंपनी पर परिवार के रीतेश साहू, अमित साहू, सिद्धार्थ साहू, हर्षित साहू, राहुल साहू, संजय साहू बतौर निदेशक हैं। उदय शंकर प्रसाद और बाकी लोग सक्रिय राजनीति के काफी दूर रहते हैं। इस परिवार की राजनीतिक पृष्टभूमि कांग्रेस से पहले भी स्वतंत्रता आंदोलन की है।
यह वह दौर था, जब रांची भी लोहरदगा जिला के अधीन था। स्वतंत्रता के बाद इस परिवार से स्वर्गीय शिव प्रसाद साहू कांग्रेस की राजनीति में आये। इसके अलावा एक भाई गोपाल साहू भी चुनाव में हाथ आजमा चुके हैं। खुद धीरज साहू भी चतरा से लोकसभा का चुनाव लड़ चुके हैं। एक और भाई स्वर्गीय नंदलाल साहू अपने फिल्मी रूचि की वजह से हमेशा ही फिल्म अभिनेताओं को अपने फॉर्म हाउस पर लाया करते थे। कुछ दिनों तक गोपाल साहू भी फिल्म जगत से जुड़े रहे थे।
लोगों को पता है कि आजादी की लड़ाई में इस परिवार का क्या योगदान रहा है। उस जमाने में नकद 47 लाख रुपया और 47 किलो सोना दान से स्पष्ट है कि यह परिवार कब से अमीर है। प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से पहले बल्लभ भाई पटेल, जयप्रकाश नारायण और विनोवा भावे के अलावा अनगिनत स्वतंत्रता सेनानी इसके यहां आते रहे हैं।
इसी वजह से आम लोगों को इस परिवार से सैकड़ों करोड़ नकदी की बरामदगी की हैरानी नहीं है क्योंकि यह परिवार मुख्य रूप से देशी शराब के कारोबार से जुड़ा है। इस कारोबार की जानकारी रखने वालों के मुताबिक इस कारोबार में असली कारोबार ही नकदी का होता है। इसलिए जिस परिवार के पास उड़ीसा, छत्तीसगढ़ में इस कारोबार का एकाधिकार जैसा हो, उसके पास इतने पैसे तो नियमित रूप से ही ही आते होंगे। देशी शराब के कारोबार मे चेक और ड्राफ्ट का उपयोग होता है या नहीं, यह देशी शराब का ठेका देखने वाले भी समझ जाएंगे।
इसी वजह से इस परिवार को जानने वाले लोगों को इतने पैसे की बरामदगी से कोई हैरानी नहीं है। लिहाजा लोग इसे राजनीतिक मकसद के लिए प्याली में तूफान उठाने की कोशिश मान रहे हैं। चूंकि बाजार में कोई और राजनीतिक मुद्दा नहीं है इसलिए लोकसभा चुनाव के पहले कांग्रेस को कालेधन का समर्थक बताने की भाजपा की चाल फिलहाल कामयाब होती दिख रही है। वैसे आम लोगों को कहना है कि इस परिवार को करीब से जानने वाले भाजपा नेताओं ने भी इस बारे में ऐसी कोई बात नहीं कही, जिसमें धीरज साहू के परिवार को समाज का दुश्मन बताया जाए क्योंकि उन्हें भी इस परिवार की आर्थिक ताकत का एहसास है।