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अलकायदा नेता को मारने वाला ड्रोन खरीदेगा भारत

राष्ट्रीय खबर

नई दिल्ली: अमेरिका की तरफ से आये प्रस्ताव को अब जाकर औपचारिक मंजूरी मिली है, जिसमें भारत 30 एम क्यू 9 रीपर या प्रीडेटर बी ड्रोन खरीदेगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अमेरिका यात्रा के लिए इस सौदे को रोका गया था। खबर के मुताबिक ड्रोन और जेट तकनीक की खरीद पर भारत तीन बिलियन डॉलर के सौदे पर भी हस्ताक्षर करेगा।

रक्षा और सुरक्षा प्रतिष्ठान के सूत्रों ने कहा कि रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के नेतृत्व वाली रक्षा अधिग्रहण परिषद (डीएसी) ने गुरुवार को मेगा डील को मंजूरी दे दी। मोदी के अगले हफ्ते वाशिंगटन रवाना होने से पहले भारतीय नौसेना द्वारा पेश की गई खरीद की फाइल अब एक नौकरशाही प्रक्रिया से गुजरेगी, जो मुख्य रूप से सुरक्षा पर कैबिनेट समिति की मंजूरी है।

जैसा कि सितंबर 2021 में ही तीनों सेनाएँ अंततः ड्रोन सौदे के लिए सहमत होने के लिए तैयार हो गई थीं, जो कि एक त्रि-सेवा अधिग्रहण है, लेकिन इसका नेतृत्व नौसेना द्वारा किया जा रहा है। रीपर नौ हार्ड-पॉइंट्स के साथ आता है, जो हवा से जमीन पर मार करने वाली मिसाइलों के अलावा सेंसर और लेजर-गाइडेड बम ले जाने में सक्षम है।

यह 27 घंटे से अधिक समय तक हवा में रह सकता है। यह 3,850 पाउंड (1,746 किलोग्राम पेलोड क्षमता के साथ 50,000 फीट तक संचालित हो सकता है जिसमें 3,000 पाउंड (1,361 किलोग्राम) बाहरी स्टोर शामिल हैं।योजना के अनुसार, नौसेना, जो पहले से ही ड्रोन के दो निहत्थे संस्करणों – सी गार्जियन – को पट्टे पर संचालित करती है, को पाई का बहुमत हिस्सा मिलेगा जबकि सेना और वायु सेना को थोड़ी कम संख्या मिलेगी।

तत्कालीन ट्रम्प प्रशासन ने 27 अक्टूबर 2020 को नई दिल्ली में टू-प्लस-टू मंत्रिस्तरीय संवाद में 30 सशस्त्र ड्रोन के सौदे की घोषणा की उम्मीद की थी। भारत चाहता था कि अमेरिकी निर्माण फर्म जनरल एटॉमिक्स ड्रोन के लिए भारत में एक क्षेत्रीय रखरखाव मरम्मत और ओवरहाल सुविधा स्थापित करे।

रक्षा प्रतिष्ठान के सूत्रों ने कहा कि यह एक ऐसा सौदा था जिसके लिए अमेरिकी बहुत उत्सुक थे और इस सौदे पर सहमत होने से पहले भारत ने कई मोर्चों पर मोलभाव किया। 2018 में अमेरिका ने भारत को गार्जियन ड्रोन के सशस्त्र संस्करण की पेशकश की थी, जो मूल रूप से निहत्थे और निगरानी के लिए बिक्री के लिए अधिकृत थे।

भारत पहले नौसेना के लिए निहत्थे सी गार्जियन ड्रोन और हमले के विकल्पों के लिए सशस्त्र प्रीडेटर बी दोनों पर नजर गड़ाए हुए था, लेकिन रक्षा और सुरक्षा प्रतिष्ठान के भीतर कई लोगों का मानना था कि दोनों ऑपरेशन केवल एक प्रकार से ही किए जा सकते हैं। यह अमेरिकी ड्रोनों से जुड़ी निषेधात्मक कीमत के कारण था।

नौसेना ने शुरू में 22 सी गार्जियन के लिए योजना बनाई थी, जिसकी कीमत 2 बिलियन डॉलर से अधिक थी, लेकिन फिर यह संख्या घटाकर सिर्फ 12 कर दी गई। चूंकि तीनों सेनाएँ हथियारबंद ड्रोन चाहती थीं, इसलिए इस सौदे को संयुक्त रूप से आगे बढ़ाने का निर्णय लिया गया।

रीपर को अमेरिकी वायु सेना, अमेरिकी डिपार्टमेंट ऑफ होमलैंड सिक्योरिटी, नासा, रॉयल एयर फोर्स, इतालवी वायु सेना, फ्रांसीसी वायु सेना और स्पेनिश वायु सेना द्वारा अधिग्रहित किया गया है। इसकी खास उपलब्धि यह भी है कि इसी ड्रोन को उपयोग कर अमेरिकी सेना ने काबुल में छिपे अलकायदा प्रमुख अल जवाहिरी को उसके घर की खिड़की के पास मार गिराया था। उसके बाद से ही इसकी अचूक लक्ष्यभेद क्षमता को सही माना गया।

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