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यह किधर जा रहा है देश

जंतर मंतर पर दिल्ली पुलिस ने कल जो कुछ किया उससे यह सवाल खड़ा हो रहा है कि क्या वाकई देश लोकतंत्र को छोड़कर किसी दूसरी तरफ जा रहा है। जिस तेवर में प्रधानमंत्री ने नये संसद भवन में लोकतंत्र के मंदिर की बात कही, दिल्ली पुलिस का आचरण तो उसके बिल्कुल उलट है। ऐसा तब हुआ जबकि आरोपी बृजभूषण सिंह उसी नये संसद भवन में मौजूद था।

पुलिस ने रविवार को पहलवानों के खिलाफ क्रूर बल का प्रयोग किया और उन्हें और उनके समर्थकों को दिल्ली और आसपास के राज्यों में हिरासत में ले लिया। पहलवानों को घसीटने, धक्का देने और मारपीट के वीडियो व्यापक रूप से साझा किए जाने के बाद कई विपक्षी नेताओं, महिला अधिकार कार्यकर्ताओं और अन्य लोगों ने पुलिस कार्रवाई के खिलाफ आवाज उठाई है। करीब 700 पहलवानों को दिल्ली पुलिस ने हिरासत में लिया था।

जब पहलवानों को हिरासत में लिया जा रहा था और पुलिस कार्रवाई की जा रही थी, बृजभूषण शरण सिंह प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में नए संसद भवन के उद्घाटन में भाग ले रहे थे। वही दिल्ली पुलिस जिस पर सिंह के खिलाफ दायर दो एफआईआर में धीरे-धीरे कार्रवाई करने का आरोप लगाया गया है जिसमें एक नाबालिग का यौन उत्पीड़न करने के लिए पोस्को कानून की धारा भी लगी है।

पहलवानों के खिलाफ मामला रविवार को दंगा करने, गैरकानूनी रूप से एकत्र होने और लोक सेवकों को उनकी ड्यूटी करने से रोकने के आरोप में हिरासत में लिए जाने के कुछ घंटे बाद दर्ज किया गया था। पदक विजेता साक्षी मलिक, विनेश फोगट और बजरंग पुनिया सहित विरोध में भाग लेने वाले सभी पहलवानों को मामले में नामजद किया गया है।

यौन उत्पीड़न करने वाले बृजभूषण के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने में दिल्ली पुलिस को सात दिन लग गए, लेकिन शांतिपूर्वक विरोध करने के लिए पहलवानों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने में उन्हें सात घंटे भी नहीं लगे। क्या इस देश में तानाशाही आ गई है। घटनाक्रम इस बात का संकेत देते हैं कि देश लोकतंत्र छोड़कर किसी दूसरी दिशा में जा रहा है। वैसे पुलिस हिरासत से रिहा होने के बाद पहलवान फिर से जंतर-मंतर पर फिर से अपना सत्याग्रह शुरू करेंगे।

ओलंपिक स्वर्ण पदक विजेता नीरज चोपड़ा उन कुछ सक्रिय खिलाड़ियों में शामिल थे, जिन्होंने रविवार को नई दिल्ली में पुलिस द्वारा अपने विरोध स्थल से खींचे जाने के बाद पहलवानों के समर्थन में फिर से बात की। देर शाम महिला बंदियों को रिहा कर दिया गया। जैसा कि अपेक्षित था, अधिकांश सक्रिय भारतीय खिलाड़ी, क्रिकेटरों सहित  रविवार की इस दुखद घटना पर चुप रहे। नीरज चोपड़ा उन दुर्लभ एथलीटों में से एक थे जिन्होंने अपनी नाराजगी व्यक्त की थी। देर रात, भारत के फुटबॉल कप्तान सुनील छेत्री ने प्रदर्शनकारियों ने कहा पहलवानों को बिना सोचे समझे घसीटे जाने की क्या जरूरत है।

यह किसी के साथ व्यवहार करने का तरीका नहीं है। भारत के पूर्व क्रिकेटर इरफान पठान भी विरोध का समर्थन कर रहे थे। भारत के पूर्व फुटबॉलर सीके विनीत ने कहा, यह शर्म की बात है कि देश के लिए पदक जीतने वाले खिलाड़ियों को सड़क पर घसीटा जा रहा है। पिछले 36 दिनों से ये पहलवान सड़कों पर हैं और सरकार को इसकी कोई परवाह नहीं है। हमारे माननीय प्रधान मंत्री एजेंडा से चलने वाली फिल्म पर अपनी राय दे सकते हैं लेकिन ओलंपिक पदक विजेताओं पर एक शब्द भी नहीं कहा जा सकता है?

कुल मिलाकर यह स्पष्ट है कि एक सांसद को समर्थन देने के नाम पर प्रधानमंत्री देश के अनेक लोगों को नाराज कर रहे हैं। इन महिला पहलवानों का धरना और रविवार को उनके साथ पुलिस का आचरण पूरी दुनिया ने देखा है। ऊपर से गिरफ्तारी के बाद महिला पहलवानों का फर्जी फोटो शेयर किया जाना भी यह साबित कर देता है कि साजिश कितनी गहरी है।

वैसे यह अलग बात है कि अब सोशल मीडिया के विकल्प की वजह से जनता को सही और गलत की पहचान करने का अवसर मिल गया है। इसलिए अब जनता पहले की तरह गुमराह नहीं होती या भावना में नहीं बह जाती है। प्रत्यक्षदर्शियों के मुताबिक जंतर मंतर पर

दिल्ली पुलिस का एक अधिकारी एक ऐसी गाड़ी से लगातार घोषणाएं करता दिखा। वह अधिकारी बार-बार यही बात दोहरा रहा था, कोई भी ऐसा कार्य जो देश विरोधी है, ग़लत है वो स्वीकार्य नहीं होगा, उचित कार्रवाई की जाएगी, आप लोग ऐसा न करें। हमारे लिए ये एक गर्व का क्षण है कि हमारा नया संसद बना है और जिसका आज उद्घाटन भी हुआ है। आपसे विनती है कि शांति-व्यवस्था बनाए रखें, क़ानून को अपने हाथ में न लें। किसी भी तरह का देश-विरोधी प्रचार न करें. आप नारेबाजी न करें। इसी वजह से यह सवाल प्रासंगिक है कि क्या मोदी के शासनकाल में देश में दो किस्म का राज कायम किया गया है। भाजपा के लिए अलग कानून और पूरे देश की जनता के लिए अलग।

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