श्रीनगर: कश्मीर घाटी में मंगलवार को नवरोज दिवस के अवसर पर राजधानी श्रीनगर के बाहरी इलाके तैलबल में सैकड़ों पुरुष, महिलाएं और बच्चे पारंपरिक जोंक चिकित्सा के लिए अपनी बारी का इंतजार करते नजर आये। औषधीय जोंक चिकित्सा या हिरुडिन थेरेपी के विशेषज्ञ फारूक अहमद बंगू तैलबल में विभिन्न बीमारियों के सैकड़ों रोगियों का इलाज करने में व्यस्त रहे।
उनचास वर्षीय फारूक का कहना है कि जोंक चिकित्सा का प्राचीन उपचार प्राय: 14 मार्च से नौ दिनों के लिए ईरानी नववर्ष कैलेंडर के साथ शुरू होता है । अगर कोई रोगी नवरोज के दिन श्रद्धा और विश्वास के साथ जोंक चिकित्सा अपनाता है, तो वह निश्चित रूप से अपनी बीमारी से ठीक हो सकता है।
उन्होंने कहा कि ये दिन उच्च यूरिक एसिड, उच्च रक्तचाप, हिमपात और एक प्रकार के ट्यूमर वाले रोगियों के लिए सबसे ज्यादा उपयुक्त होते हैं। प्राचीन मिस्र काल से, जोंक का उपयोग तंत्रिका तंत्र की विषमताओं, दंत समस्याओं, त्वचा रोगों और संक्रमण के इलाज के लिए उपयोग किया जाता है।
उन्होंने कहा कि जोंक का उपयोग अधिकतर प्लास्टिक सर्जरी और अन्य माइक्रोसर्जरी में किया जाता है क्योंकि इसमें पेप्टाइड्स और प्रोटीन होते हैं जो रक्त के थक्कों को रोकने का काम करते हैं। इन स्रावों को एंटीकौयगुलांट के रूप में भी जाना जाता है। उन्होंने कहा कि इस चिकित्सा में घावों से खून बहता रहता है जिससे रोगियों को ठीक होने में मदद मिल सके।
उन्होंने कहा कि जटिलताओं को रोकने के लिए वर्तमान में जोंक चिकित्सा का अपने सरल और सस्ते साधनों के कारण पुनरुद्धार हो रहा है और एक जोंक की कीमत 70 रुपये होती है। उन्होंने बताया कि जोंक चिकित्सा में एक जीवित जोंक का अनुप्रयोग शरीर के विशेष क्षेत्र से रक्त प्रवाह या ख़राब रक्त को शरीर से बाहर निकाले के लिए त्वचा पर किया जाता है।
उन्नीसवीं सदी से यूरोप, एशिया और अमेरिका में शरीर में रक्त की मात्रा को कम करने के लिए प्राय: जोंक चिकित्सा का अभ्यास किया जाता था , हालांकि वर्तमान में पूरी दुनिया में विभिन्न बीमारियों के लिए उपलब्ध आधुनिक वैज्ञानिक चिकित्सा और जीवन शैली में बदलाव के साथ बहुत ही कम संख्या में लोग जोंक पद्धति में विश्वास करते हैं।