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धार्मिक मान्यता में शालीग्राम शिला है देवस्वरुप
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महंत ने अन्न जल त्यागने की चेतावनी दी है
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वैज्ञानिकों ने कहा यह दरअसल देवशिला है
राष्ट्रीय खबर
लखनऊः अयोध्या में नेपाल से आयी शालीग्राम शिलाओँ को देखने के लिए भक्तों की भारी भीड़ है। खास तरीके से पूरी श्रद्धा के साथ इन्हें लाने के रास्ते में भी जगह जगह पर इनका पूजन किया गया है। दरअसल शालीग्राम शिलाओँ को ही देवस्वरुप माना जाता है।
इन्हें पूजा के बाद बाद राम जन्मभूमि को सौंप दिया गया है। शिलाओं के अयोध्या पहुंचने पर देश भर में उत्साह का माहौल है। अब राम जन्मभूमि ट्रस्ट में शिलाओं को लेकर असमंजस दिख रहा है। ट्रस्ट के सदस्यों में शालिग्राम शिला से रामलला की मूर्ति बन सकती है या नहीं, इस पर अभी विचार किया जा रहा है।
सामाजिक तौर पर इन शिलाओँ पर प्रहार करना वर्जित माना गया है। इसलिए अब ट्रस्ट के हवाले से इस पर अंतिम फैसला नहीं लिया जा सका है। दूसरी तरफ यह दलील भी है कि शास्त्रों में वर्णित भगवान राम का नील वर्ण है। जो शिलाएं नेपाल से आई हैं वो नील वर्ण की नहीं हैं।
इस बीच तपस्वी जी की छावनी के महंत परमहंस दास नया विवाद खड़ा कर राम मंदिर ट्रस्ट को पत्र भी समर्पित कर दिया है। जिसे रामसेवक पुरम में जब शिला का पूजन के दौरान ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय को पत्र दिया। जिसमें यह लिखा कि यह शिला भगवान राम और भगवान लक्ष्मण के स्वरूप है। इन शिलाओं पर अगर हथौड़ी चलेगी तो मैं अन्न जल त्याग कर लूंगा।
नेपाल के गंडक नदी से निकली शालिग्राम शिला को विधि विधान पूर्वक पूजा पाठ के बाद अयोध्या लगाया गया है। देशभर से श्रद्धालु अयोध्या पहुंच कर पत्थर की पूजा-अर्चना कर रहे हैं। दूसरी तरफ पत्थरों पर शोध करने वाले वैज्ञानिकों की मानें तो तो वे शालिग्राम शिला नहीं देव शिला है।
अयोध्या के रामसेवकपुरम में रखे गये इन दो विशाल पत्थरों में से एक शिला 26 टन और दूसरा सिला 14 टन की है। साधु-संत, महंत और राम भक्तों के बीच इस बार की चर्चा काफी तेज है कि इसी शिला से भगवान राम समेत चारों भाइयों की प्रतिमाएं बनाई जाएंगी। यही कारण है कि मूर्ति निर्माण से पहले ही शिला की पूजा-अर्चना शुरू हो गई है। लेकिन इस शिला पर शोध करने वाले वैज्ञानिकों ने मूर्ति निर्माण के दावों को खारिज करते हुए विराम लगा दिया है।
भूगर्भीय वैज्ञानिक डॉ. कुलराज चालीसे ने बताया कि वह कई महीनों से इस विशालकाय शिला पर रिसर्च कर रहे हैं। ऐसे में अयोध्या लाई गई शिला काफी अनमोल है। इस देव शीला पर लोहे के औजार से नक्काशी नहीं की जा सकती है।
हालांकि इस शिला पर नक्काशी करने के लिए हीरा काटने वाले औजार का प्रयोग करना पड़ेगा। साथ ही बताया कि मां जानकी की नगरी से भगवान राम के स्वरूप निर्माण के लिए लाई गई देवशिला 7 हार्नेस की है। इसीलिए इस पर लोहे की छेनी से नक्काशी नहीं की जा सकती है। क्योंकि लोहे में 5 हार्नेस पाए जाते हैं । डॉ चालीसे का कहना है कि, पिछले जून माह से उनकी टीम इस पत्थर पर रिसर्च कर रही है।