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चूहों पर इसका परीक्षण सफल रहा है
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जेनेटिक विज्ञान से नया प्रोटिन बनाया
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इंसानों पर क्लीनिकल ट्रायल अभी नहीं हुआ
राष्ट्रीय खबर
रांचीः आम तौर पर यह सर्वविदित सत्य है कि आधुनिक विज्ञान में किडनी की अधिकांश बीमारियों का स्थायी ईलाज नहीं हो पाता है। इसकी वजह से मरीज की स्थिति धीरे धीरे बिगड़ती है। इसी कारण बाद में किडनी फेल होने की वजह से उसकी मौत हो जाती है।
इस स्थिति को सुधारने की दिशा में नई रोशनी इंडियाना यूनिवर्सिटी स्कूल ऑफ मेडिसीन से आयी है। वहां के शोध दल ने चूहों पर जो परीक्षण किया है, वह सफल साबित हुआ है। इस दल ने किडनी की लाईलाज बीमारी से ग्रस्त चूहे की किडनी को इंजेक्शन के जरिए ठीक किया है।
इस परीक्षण के सफल होने के बाद ऐसा अनुमान लगाया जा रहा है कि भविष्य में इंसानों की भी ऐसी लाईलाज बीमारी का आसान ईलाज इस पद्धति से हो पायेगा। अगर यह शोध क्लीनिकल ट्रायल में सफल हुआ तो इंसानों को डायलिसिस के कठिन और खर्चीले प्रक्रिया से भी नहीं गुजरना पड़ेगा। वैसे शोध दल ने साफ कर दिया है कि अभी इसमें काफी वक्त लगना है।
वहां से एसोसियेट प्रोफसर कैथरीन जे केली और प्रोफसर जेसस डोमिनिगुएज ने यह काम किया है। दोनों जेनेटिक वैज्ञानिक हैं। इनलोगों ने चूहों पर अपने परीक्षण के तहत जेनेटिक तौर पर संशोधित सेल इंजेक्शन के जरिए देने के बाद चूहों की जांच की है।
इसके लिए दोनों ने प्रयोगशाला में एक खास किस्म का प्रोटिन, जिसे एसएए कहा गया है, उसे तैयार किया था। यह प्रोटिन किडनी के सेलों के विकास का अहम हिस्सा है। आम तौर पर यह स्वाभाविक तौर पर भी किडनी में मौजूद होता है लेकिन बीमारी की स्थिति में इसकी गैर मौजूदगी की वजह से परेशानियां धीरे धीरे बढ़ती जाती है।
कई बार किडनी प्रत्यारोपण के बाद भी वह स्वाभाविक अवस्था में काम नहीं कर पाता। इस कारण किडनी ट्रांसप्लांट कराने वाले लोगों की दिनचर्या बहुत सीमित हो जाती है। प्रयोगशाला में विकसित इस प्रोटिन से यह पाया गया है कि किडनी की बीमारी से पीड़ित चूहो के अंदर मौजूद किडनी में काफी सुधार हुआ।
इंजेक्शन के जरिए जब इस प्रोटिन को चूहों के शरीर में पहुंचाया गया तो वे अपने आप ही किडनी तक पहुंचे। वहां पहुंचने के बाद इस प्रोटिन ने अपनी आदत के मुताबिक किडनी के विकास और वहां के मौजूद सेलों को ठीक करने का काम प्रारंभ कर दिया।
इससे धीरे धीरे चूहे की किडनी स्वाभाविक अवस्था में लौट आयी। इस शोध के लेख को अमेरिकन जर्नल ऑफ फिजियोलॉजी में स्वीकृत किया गया है। इस शोध प्रबंध में भी दोनों वैज्ञानिकों ने बताया है कि इस पद्धति के विकसित होने पर दुनिया भर में किडनी की बीमारी से जूझ रहे मरीजों को राहत मिलेगी और यह उसके बाद लाईलाज बीमारी नहीं रह जाएगी।
वरना आज की स्थिति में किडनी की गड़बड़ी की वजह से मरीजों में मधुमेह, रक्तचाप और जल्द ही उम्रदराज होने की बीमारी भी होने लगती है। आंकड़े बताते हैं कि अकेले अमेरिका में ही बीस मिलियन ऐसे लोग हैं, जो किसी न किसी तरह के किडनी की बीमारी से ग्रस्त हैं।
किडनी का प्रत्यारोपण भी आसान काम नहीं होता और कई बार प्रत्यारोपण होने के बाद भी मरीज के अन्य अंग से प्रत्यारोपित किडनी को स्वीकार नहीं करते हैं। इसलिए अगर इंजेक्शन के जरिए ही किडनी को फिर से सुधारने की तकनीक विकसित हुई तो यह हर किस्म की वर्तमान चिकित्सा पद्धति को ही बदलकर रख देगा।
शोधकर्ता मानते हैं कि इस विधि को इंसानी स्टेम सेल के आधार पर विकसित कर किडनी को पूरी तरह ठीक कर पाना संभव होगा। वैसे इंसानों पर इसके इस्तेमाल के पहले कई दौर के क्लीनिकल ट्रायल का होना अभी शेष है ताकि इसके गुण दोषों का पता इन क्लीनिकल ट्रायलों में चल सके। चूहों पर जो प्रयोग सफल हुआ है, वह इंसानों पर कितना कारगर होता है, उसे जांचने में अभी वक्त लगेगा।