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एक ही डोनर से नर और मादा के स्टेम सेल तैयार

जिसे अब तक असंभव माना गया था उसे संभव कर दिखाया

  • स्टेम सेल दाता को जेनेटिक बीमारी थी

  • जेनेटिक बीमारियों का स्थायी ईलाज संभव

  • इसके पहले कभी ऐसी सफलता हाथ नहीं आयी

राष्ट्रीय खबर

रांचीः जीव विज्ञान में पुरुष और नारी के स्टेम सेल का अंतर बहुत प्रमुख माना गया है। इसी तरह वंशवृद्धि के चक्र में भी इन दोनों की अहमियत आंकी गयी है। पहले इसके लिए नर और मादा के शरीर से ही इस स्टेम सेल को हासिल किया जाता था। दरअसल यह असंभव प्रतीत होता था कि दोनों के स्टेम सेल किसी एक के पास से हासिल किये जा सकें। इस असंभव को भी अब संभव बना दिया है वैज्ञानिकों ने।

एक ही डोनल के स्टेम सेल से इन दोनों किस्मों के स्टेम सेलों को विकसित करने में सफलता मिली है। अब प्रयोगशाला में मिली इस सफलता क बाद जेनेटिक वैज्ञानिकों को और गहराई से उनका अध्ययन करने का अवसर प्राप्त होगा। इसके जरिए संभव है कि कई अनुवांशिक बीमारियों का स्थायी समाधान भी भविष्य में मिल सके। इंसानी प्लूरिपोटेंट स्टेम सेल का यह कमाल अब जेनेटिक विज्ञान के जरिए चिकित्सा विज्ञान को नई रोशनी प्रदान करने वाला साबित होगा।

बता दें कि आम तौर पर ऐसे सेलों का वर्गीकरण पहले ही किया गया है। उन्हें एक्स वाई, एक्स एक्स, एक्स ओ और एक्स एक्स वाई प्लूरिपोटेंट स्टेम सेल में बांटा गया है। एक ही डोनर से इनका विकास संभव होने के बाद इस पर आगे शोध कर जेनेटिक स्तर पर कई बीमारियों को स्थायी तौर पर ठीक करने का नया रास्ता खुल गया है।

दरअसल एक दाता से स्टेम सेलों को नये सिरे से प्रोग्राम किया गया है। इस जेनेटिक प्रयोग के जरिए ही ऐसा कर पाना संभव हुआ है। इस सफलता की वजह से अब जेनेटिक तौर तरीकों को बेहतर तरीके से समझ पाने में भी आसानी होगी, ऐसा वैज्ञानिक मान रह हैं। इसके अलावा ऐसे सेलों को नये सिरे से प्रोग्राम करने में मिली सफलता की वजह से जेनेटिक तौर पर कई खामियों को भी अब स्थायी तौर पर सुधारा जा सकेगा। वरना पहले इसकी कल्पना तक नहीं की गयी थी।

जेरूशलम के हादासा मेडिकल ऑर्गेनाइजेशन में बेंजामिन रूबिनोफ की अगुवाई में यह काम किया गया है। शोध की शुरुआत नर और मादा स्टेम सेलों के अंतर को समझने से प्रारंभ की गयी थी। इस शोध को आगे बढ़ाते हुए उस दाता का स्टेम सेल हासिल किया गया जो एक अजीब जेनेटिक बीमारी से पीड़ित था।

ऐसी स्थिति पुरुषों में होती है, जिसमें नर के पास एक्स क्रोमोसोम का एक अतिरिक्त कॉपी रहती है। इस अतिरिक्त कॉपी की वजह से ही उनमें एक जेनेटिक बदलाव होता है और उनके भीतर एक्स एक्स वाई की स्थिति बनती है। यह एक जेनेटिक बदलाव है जो आम इंसानों में नहीं होता है। वैसे पैदा होने वाले पांच सौ बच्चों में से एक में यह विसंगति होती है। इसे क्लीनफेल्टर सिंड्रोम कहा जाता है।

इसी इंसान से स्टेम सेल हासिल करने के बाद जेनेटिक वैज्ञानिकों ने इसकी मदद से कई स्टेम सेल तैयार किये। बताया गया है कि इस दल ने 46 एक्स एक्स, 46 एक्स वाई, 45 एक्स ओ और 46 एक्स एक्स वाई सेल बनाने में कामयाबी पायी है। सुक्ष्म स्तर पर इनकी संरचना में काफी कुछ अलग होता है।

दरअसल इस  जेनेटिक बीमारी से पीड़ित व्यक्ति से ऐसे सेल हासिल किये जा सकते हैं, ऐसा पहले सोचा भी नहीं गया था। इस बारे में एक स्टेम वैज्ञानिक मारियानी आरगेनजियानो कहती हैं कि स्टेम सेलों के भीतर भी नर और मादा का अंतर होता है, यह सभी जानते हैं लेकिन उससे भी सुक्ष्म स्तर पर एक सेल से दोनों किस्म के स्टेम सेल हासिल कर लेना अपने आप में बड़ी उपलब्धि है।

क्योंकि स्टेम सेल के नर और मादा हिस्से अलग अलग तरीके से प्रतिक्रिया करते हैं। अब नई शोध ने इस दूरी को भी खत्म करने में सफलता पा ली है। यानी इंसानी क्रोमोजम के आधार पर जो कुछ होता था उसे अब प्रयोगशाला में सुधारना संभव होगा।

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