हेगः एक अंतर्राष्ट्रीय संस्था ने सीरिया की सेना पर मानवाधिकार उल्लंघन का गंभीर आरोप लगाया है। यह कहा गया है कि वहां की सेना ने अपने ही लोगों पर क्लोरिन गैस का इस्तेमाल अप्रैल 2018 में किया था। दरअसल सीरिया की वायुसेना ने वहां के शहर डूमा पर दो ऐसे सिलिंडर गिराये थे, जिनमें क्लोरिन गैस था।
इसकी वजह से 43 लोगों की मौत हो गयी थी। एक अंतर्राष्ट्रीय संगठन की शोध की इस रिपोर्ट के बाद फिर से सीरिया पर कई किस्म के आरोप लग गये हैं। कहा गया है कि सीरिया के राष्ट्रपति बसर अल असद के समय में ऐसा घातक रासायनिक हथियार प्रयोग किया गया था।
उस वक्त देश में गृह युद्ध जैसी स्थिति थी और सेना ने दमन के लिए ऐसे जानलेवा गैस का प्रयोग किया था। आम तौर पर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर इस किस्म के जानलेवा गैसों के प्रयोग पर पूरी तरह प्रतिबंध है। इसलिए रिपोर्ट आने के बाद इस कार्रवाई को अंतर्राष्ट्रीय नियमों के खिलाफ किया गया आचरण बताया गया है।
वैसे रिपोर्ट जारी होने के बाद सीरिया की सरकार की तरफ से इस पर कोई त्वरित प्रतिक्रिया नहीं दी गयी है। इसके पूर्व भी जब यह अंतर्राष्ट्रीय संगठन ओपीसीडब्ल्यू वहां की जांच करने गया था तो सीरिया की सरकार ने उन्हें मान्यता देने से इंकार कर दिया था।
वैसे सीरिया का सहयोगी रूस हर बार सुरक्षा परिषद में सीरिया के बचाव में आगे आता रहा है। उसके खिलाफ कार्रवाई के प्रस्ताव पर हर बार रूस की तरफ से वीटो का प्रयोग किया जाता है। इसी वजह से सीरिया के खिलाफ अंतर्राष्ट्रीय अदालत में मामला भी दर्ज नहीं हो पाता है।
रिपोर्ट मे कहा गया है कि संगठन की टीम ने वहां का दौरा कर जो साक्ष्य एकत्रित किये हैं, उससे साफ है कि सीरिया की सेना ने तीन अवसरों पर रासायनिक हथियारों का प्रयोग किया था। यह सारे हथियार मार्च 2017 से लेकर फरवरी 2018 के बीच किये गये थे।
दो क्लोरिया गैस का हमला लाटामनेह में तथा एक हमला साराकेब में भी हुआ था। वहां की स्थिति देखने वाल दल की रिपोर्ट में बताया गया है कि एक सिलिंडर के गिरने से डूमा में एक तीन मंजिला भवन ध्वस्त हो गया था। इस बीच सिलिंडर से होने वाले गैस के रिसाव की वजह से आस पास के लोग मारे गये थे। वैसे इस दौरान सैकड़ों लोगों पर इस जानलेवा गैस का प्रभाव भी पड़ा था।