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दिल्ली में सरकार वनाम एलजी का विवाद जारी

राष्ट्रीय खबर

नईदिल्लीः दिल्ली की केजरीवाल सरकार द्वारा शिक्षकों को ट्रेनिंग के लिए फिनलैंड भेजने का प्रस्ताव डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया ने आज एलजी के पास दोबारा भेजा है। सिसोदिया ने प्रस्ताव में कहा है कि सरकार ने कास्ट बेनिफिट एनॉलिसिस सहित सभी पहलुओं से प्रस्ताव की जांच की और शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार के लिए शिक्षकों की ट्रेनिंग को जरूरी पाया है। मुझे उम्मीद है कि आप शिक्षकों को ट्रेनिंग के लिए विदेश जाने की अनुमति देंगे।

डिप्टी सीएम द्वारा दोबारा प्रस्ताव भेजे जाने को लेकर सीएम अरविंद केजरीवाल ने ट्वीट कर कहा, मुझे उम्मीद है कि एलजी दिल्ली सरकार के स्कूलों के टीचर्स को ट्रेनिंग के लिए विदेश जाने की अनुमति देंगे।’ आगे प्रस्ताव में सवाल करते हुए सिसोदिया ने उप राज्यपाल से  पूछा है कि अगर सीएम और शिक्षा मंत्री ने अपने शिक्षकों को विदेश भेजने का फैसला किया है, तो आप बार-बार मामूली आपत्तियां लगाकर इसे कैसे रोक सकते हैं?

यह लोकतंत्र और संविधान के खिलाफ है कि एक अनिर्वाचित व्यक्ति लोकतांत्रिक रूप से चुनी हुई सरकार के हर निर्णय ले रहा है और बदल रहा है। उन्होंने कहा है कि हमारे देश का संभ्रांत वर्ग सामंती मानसिकता का शिकार है। वे अपने बच्चों को विदेश भेजना चाहते हैं लेकिन गरीब बच्चों के शिक्षकों को विदेश भेजने का कड़ा विरोध करते हैं और कास्ट बेनिफिट एनॉलिसिस चाहते हैं।

आपकी टिप्पणी अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है। 21वीं सदी के भारत में ऐसी सामंती मानसिकता की कोई जगह नहीं है।  डिप्टी सीएम ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए कहा है कि सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में दो बार यह दोहराया है कि उपराज्यपाल को कोई स्वतंत्र निर्णय लेने की शक्ति नहीं है।

एलजी साहब को याद दिलाना चाहता हूं कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश केवल भारत के हर नागरिक के लिए बाध्य ही नहीं होते, बल्कि कानून बन जाते हैं। सुप्रीम कोर्ट के अनुसार भी एलजी के पास मंत्रिपरिषद के किसी भी निर्णय पर कास्ट बेनिफिट एनॉलिसिस करने का आदेश देने की शक्ति नहीं है।

मेरा अनुरोध है कि कृपया सूचित करें कि क्या आप प्रस्ताव को मंजूरी देंगे या इसे राष्ट्रपति को भेजेंगे? डिप्टी सीएम ने कहा कि एलजी के पास मंत्रिपरिषद के किसी भी निर्णय पर कॉस्ट बेनिफिट एनॉलिसिस का आदेश देने की पॉवर नहीं है।

एलजी ने कहा है कि वह सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का पालन करने के लिए बाध्य नहीं हैं, क्योंकि वो उसे सुप्रीम कोर्ट की राय मानते हैं। हम एलजी साहब को याद दिलाना चाहते हैं कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश न केवल भारत के हर नागरिक के लिए बाध्यकारी हैं बल्कि देश का कानून बन गए हैं।

हर नागरिक सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन करने के लिए बाध्य है। इसके अलावा, एलजी साहब ने यह भी कहा है कि वो दिल्ली के प्रशासक हैं।  इसलिए उन्हें किसी भी विषय पर किसी भी अधिकारी को कोई भी आदेश जारी करने की सर्वोच्च शक्तियां प्राप्त हैं।

हम विनम्रता पूर्वक कहना चाहते हैं कि दिल्ली के प्रशासक की शक्तियां असीमित नहीं हैं। उन्हें संविधान और सर्वोच्च न्यायालय के विभिन्न आदेशों में परिभाषित किया गया है, जो बाध्यकारी हैं। इस संबंध में एलजी एक अच्छे संवैधानिक विशेषज्ञ से सलाह ले सकते हैं।

उन्होंने आगे कहा है कि दिल्ली सरकार को दिल्ली के दो करोड़ लोगों ने चुना है। कई बार सर्वोच्च न्यायालय ने लोकतंत्र के पक्ष में फैसला सुनाया है कि एक मुख्यमंत्री की अध्यक्षता वाली निर्वाचित मंत्रिपरिषद के पास सभी शक्तियां हैं।

ऐसे में अगर मुख्यमंत्री और शिक्षा मंत्री ने फैसला किया है कि वे अपने शिक्षकों को ट्रेनिंग के लिए विदेश भेजना चाहते हैं, तो एलजी बार-बार मामूली आपत्तियां लगाकर इसे कैसे रोक सकते हैं? आगे सिसोदिया ने कहा कि साल 2018 में सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने अपने फैसले में कहा था कि दिल्ली सरकार की फाइलें एलजी के पास नहीं जाएंगी। एक बार किसी मंत्री द्वारा निर्णय लिए जाने के बाद उसकी एक प्रति एलजी को भेजी जाएगी। एलजी साहब के अप्रूवल या सहमति का इंतजार किए बिना मंत्री उस फैसले को लागू करना शुरू कर देंगे। एलजी की सहमति की आवश्यकता नहीं है।

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