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नईदिल्लीः भारतीय रुपया पिछले एक दशक में सबसे ज्यादा नीचे गिरा है। पूर्व प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह के कार्यकाल में भारतीय रुपये का अवमूल्यन को देश की साख गिरने से जोड़कर भाजपा का प्रचार चलता था। अब वही सवाल उठने पर भाजपा के लोग भारत को दुनिया की पांचवी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने का दावा करते हैं। इस दावे में भारतीय जनसंख्या के हिसाब से क्या तरक्की हुई है, यह विषय हमेशा गौण रह जाता है।
दूसरी तरफ अंतर्राष्ट्रीय बाजार को भारत के अंदर की राजनीति से कुछ लेना देना नहीं होता। इसलिए एशिया के बाजार का ताजा आंकड़ा यही दर्शाता है कि पूरे एशिया महाद्वीप में अगर किसी देश की मुद्रा सबसे अधिक नीचे गिरी है तो वह भारतीय रुपया ही है। यूं तो कोरोना महामारी और लॉकडाउन की वजह से पूरी दुनिया में मंदी आयी है। फिर भी दूसरे देशों की तुलना में भारतीय रुपये का यह अवमूल्यन साफ दर्शाता है कि देश की आर्थिक नीतियां देश को आगे ले जाने में विफल हो रही हैं।
इसी वजह से भारतीय रुपया के मुकाबले डॉलर और मजबूत होता जा रहा है। अंतर्राष्ट्रीय आंकड़ों के मुताबिक भारतीय मुद्रा में सबसे अधिक 11.3 प्रतिशत का पतन हुआ है। पिछले वर्ष के जो आंकड़े सार्वजनिक हुए हैं, उसके मुताबिक भारतीय रुपये का प्रदर्शन एशिया के बाजार में सबसे खराब रहा है।
वर्ष 2013 के बाद यह सबसे बुरी स्थिति है। आंकड़े बताते हैं कि 2021 के प्रारंभ में एक डॉलर के मुकाबले भारतीय रुपये की कीमत 74.33 रुपये थी। अब यह बढ़कर 82.72 पर पहुंच गयी है। इसमें यह आंकड़ा भी शामिल किया गया है कि रूस और यूक्रेन के युद्ध की वजह से पूरी दुनिया में तेल का संकट और उसके दाम बढ़े हैं।
दूसरी तरफ भारतीय अर्थव्यवस्था का बिगड़ता हाल देखकर अनेक विदेशी निवेशकों ने यहां से पैसा खींच लिया है। इस कारण रुपया लगातार पतन के रास्ते पर है। देश का अपना निर्यात नहीं बढ़ने की वजह से भी डॉलर की आमद कम हुई है। सरकार की तरफ से कोरोना के दौरान गरीबों को मुफ्त राशन देने के खर्च को इसका कारण बताया जा रहा है। इसी वजह से समझा जा सकता है कि जनसंख्या के लिहाज से दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था का वास्तविक हालत पहले के मुकाबले बहुत खराब होता चला जा रहा है।
देश के बैंकों के पास नकदी की कमी की वजह से भी बार बार दिक्कतें आ रही है। दूसरी तरफ केंद्र सरकार ने कितने लोगों को कितना कर्ज माफ किया है, यह आंकड़ा गोपनीय है। इन फैसलों से अंतर्राष्ट्रीय बाजार को कोई फर्क नहीं पड़ता। भारत की कुल स्थिति की वजह से ही यह समझा जा रहा है कि फेड रिजर्व भारत पर अपने ब्याज को अभी अधिक रखने जा रहा है। इससे भारतीय रुपया के और नीचे आने का संकट कायम है।
विशेषज्ञ मानते हैं कि डॉलर की कीमतों में हो रही बढ़ोत्तरी को रोकने का एकमात्र तरीका निर्यात बढ़ाना है। नोटबंदी और जीएसटी की वजह से यहां का छोटा कारोबार जिस तरीके से घाटा में गया है, उसे अब तक पूरी तरह उबरने का मौका भी नहीं मिल पाया है। दूसरी तरफ दक्षिण कोरिया एवं थाईलैंड की मुद्रा फिर से मजबूत हासिल करने लगी है।