तवांग के इलाके में चीनी सैनिक अंदर आ गयी थी। वहां भारतीय सेना ने उन्हें पीट पीट कर वापस लौटा दिया है। इतनी सी घटना का राजनीतिक लाभ उठाना कोई अच्छी बात नहीं है। देश की सेना को इस काम के लिए तैनात रखा गया है, उन्हें अपना काम करने दीजिए। इस बार तवांग की घटना के बाद भारत को जो वैश्विक समर्थन प्राप्त हुआ है, वह आगे भी कायम रहे, इसके लिए जरूरी है कि इस गंभीर सुरक्षा मुद्दे पर फालतू की राजनीति ना की जाए।
वरना हमारे पास यूक्रेन के युद्ध का उदाहरण मौजूद है कि नाहक की बयानबाजी का अंततः क्या बुरा नतीजा निकलता है। इस एक घटना के बाद यह स्पष्ट हो चुका है कि चीन ने तवांग में झड़प से ठीक पहले भारतीय सीमा के नजदीक बड़े पैमाने पर युद्धक तैयारी कर ली थी।
ताजा सैटलाइट तस्वीसरों के मुताबिक तवांग से कुछ ही सौ किमी की दूरी पर स्थित तिब्बमत के कई एयरबेस पर चीन ने बड़े पैमाने पर फाइटर जेट और ड्रोन विमान तैनात किए हैं। चीन के इन हथियारों के निशाने पर सीधे तौर पर भारत का पूर्वोत्तेर का इलाका है। यह खुलासा ऐसे समय पर हुआ है जब तवांग में झड़प के बाद चीन ने अपनी हवाई हरकत को बढ़ा दिया है। यही वजह है कि भारतीय वायुसेना को भी दो बार अपने सुखोई लड़ाकू विमानों को भेजना पड़ा है।
भारत ने चीनी विमानों को भारतीय सीमा के पास देखा था। एनडीटीवी की रिपोर्ट के मुताबिक तवांग से मात्र 150 किमी की दूरी पर स्थित बांग्डाा एयरबेस पर चीन ने अपने अत्या धुनिक WZ-7 ‘सोरिंग ड्रैगन’ ड्रोन को तैनात किया है। इस ड्रोन का आधिकारिक रूप से साल 2021 में अनावरण किया गया था। यह ड्रोन विमान कम से कम 10 घंटे तक उड़ान भर सकता है।
यह ड्रोन विमान खुफिया जासूसी और निगरानी करने में माहिर माना जाता है। यही नहीं यह ड्रोन विमान जमीन पर हमला करने के लिए क्रूज मिसाइलों को डेटा ट्रांसमिट कर सकता है। भारतीय वायुसेना के फाइटर पायलट समीर जोशी ने कहा, ‘इन ड्रोन का शामिल किया जाना यह बताता है कि एक सक्रिय और पूरी तरह से काम करने वाला नेटवर्क इन्वामयरमेंट बनाया गया है ताकि अक्साई चिन और पूर्वोत्तार इलाके में मैकमोहन लाइन के आसपास सैन्यक मिशनों को सपोर्ट दिया जा सके।’
समीर जोशी इन दिनों एचएएल के साथ मिलकर ड्रोन तकनीक पर काम कर रहे हैं ताकि भारतीय सेना को दिया जा सके। दूसरे शब्दोंे में कहें तो चीनी ड्रोन विमान एक एकीकृत सिस्टिम का हिस्साल बन गए हैं जिससे पीएलए की एयरफोर्स रियल टाइम और सटीक तरीके से भारतीय ठिकानों की निगरानी कर सकेगी। इसकी मदद से चीनी सेना दूसरे ड्रोन या फाइटर जेट और मिसाइल की मदद से निशाना बना सकेगी। 14 दिसंबर की बांगडा एयरबेस की तस्वीएरें बताती हैं कि दो फाइटर जेट एयरबेस पर मौजूद हैं। ये विमान ठीक उसी तरह के हैं जैसे भारत ने रूस से सुखोई-30 एमकेआई को खरीदा है।
सैन्यक विश्लेषक सिम टैक ने कहा कि इन हथियारों की मदद से चीन भारत की हर हरकत पर नजर रख सकता है। उन्हों ने कहा कि चीन की इस इलाके में हवाई जंग की ताकत का निश्चित रूप से भारतीय वायुसेना पर असर पड़ेगा। लेकिन यह भी स्पष्ट है कि भारत ऐसी झड़प के बारे में सच्चाई स्वीकार करता है तो दूसरी तरफ चीन में वह साहस नहीं है। गलवान घाटी की घटना में भी भारत ने अपने सैनिकों के मारे जाने की सूचना को स्वीकार कर लिया था जबकि चीन को इस सूचना को दबाये रखने में काफी मशक्कत करनी पड़ी। इस बार भी भारतीय सेना ने गलवान के अनुभवों के आधार पर चीन को ज्यादा होशियारी दिखाने का मौका नहीं दिया और कहा जाता है कि भारतीय सेना के मुकाबले चीन के अधिक सैनिक तवांग की झड़प में घायल हुए हैं।
इस मुद्दे पर जारी राजनीति से न तो कोई समाधान निकलता है और ना ही चीन की सेना पऱ इसका कोई प्रभाव पड़ता है। इसलिए बेहतर यही है कि इस सीमा पर जारी विवाद को देखने समझने और सुलझाने का काम भारतीय सेना पर ही छोड़ दिया जाए। वैसे भी चीन के साथ युद्ध होने की वजह से वहां तनाव अधिक होता है। वरना भारत के साथ बांग्लादेश की सीमा का भी विवाद है। दूसरी तरफ पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच डूरंड लाइन को लेकर विवाद है और वहां हाल के दिनों में फायरिंग तक हो चुकी है। इसलिए भारत की भलाई इसी में है कि इस सीमा विवाद को कैसे सुलझाना है, यह काम सैन्य कमांडरों पर छोड़ा जाए। वे पहले भी कई स्थानों पर इसे शांतिपूर्वक सुलझाने में कामयाब रहे हैं।