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गुजरात मॉडल की चर्चा से भाजपा में नया संकट

गुजरात मॉडल का एक अर्थ यह निकला है कि कभी भी पूरे राज्य मंत्रिमंडल को ही बदल देना। यह प्रयोग गुजरात में सफल रहा है और भूपेंद्र पटेल को तब मुख्यमंत्री बनाया गया था जब इसकी उम्मीद किसी को नहीं थी। कहीं से भी इस बात की चर्चा या मांग नहीं थी कि विजय रूपाणी को हटाया जाए। रातोंरात यह सत्ता परिवर्तन हुआ और अब भूपेंद्र पटेल दोबारा सीएम की कुर्सी संभाल चुके हैं।

इसलिए अब भाजपा के अंदर गुजरात मॉडल का एक अर्थ पूरी सरकार का बदल जाना भी हो गया है। इसके बीच ही भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव और वरिष्ठ नेता कैलाश विजयवर्गीय ने हरदा में गुजरात मॉडल को पूरे देश में लागू करने की बात कही है। इससे एक कदम आगे जाते हुए भाजपा के मैहर से विधायक नारायण त्रिपाठी ने भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा को चिट्ठी लिख दी है।

गुजरात चुनाव मॉडल से मिली प्रचंड जीत से भाजपा नेता खुश हैं, लेकिन मध्य प्रदेश में शिवराज कैबिनेट के मंत्रियों की धड़कनें बढ़ गई है। दरअसल, गुजरात में चुनाव से ठीक पहले एंटी इंकम्बेंसी के फैक्टर को खत्म करने के मुख्यमंत्री समेत कैबिनेट ही बदल दी गई थी। कई वरिष्ठों के टिकट काटकर नए चेहरों को उम्मीदवार बनाया गया था। इसे गुजरात में भाजपा को ऐतिहासिक जीत मिलने का आधार बताया जा रहा है।

मध्यप्रदेश में भी चुनाव से पहले कैबिनेट में बदलाव को लेकर चर्चाओं का दौर तेज हो गया है। इसमें कई नॉन-परफार्मेंस वाले मंत्रियों को हटाने और कई के विभाग बदलने की अटकलें लगाई जा रही हैं। इसमें सिंधिया गुट के मंत्रियों को हटाने की भी चर्चा है। भाजपा नेता मध्यप्रदेश में भी गुजरात जैसी जीत दोहराने की बात कह रहे हैं। गुजरात में चुनाव से पहले सत्ता और संगठन दोनों में ही बड़े फेरबदल किए गए।

इसके बाद 182 में से भाजपा 156 सीट की ऐतिहासिक जीत हासिल की। इसका कारण गुजरात चुनाव मॉडल को बताया जा रहा है। अब इस मॉडल को मध्यप्रदेश में लागू करने को लेकर चर्चा जोर पकड़ती जा रही है। भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव और वरिष्ठ नेता कैलाश विजयवर्गीय ने हरदा में गुजरात मॉडल को पूरे देश में लागू करने की बात कही। इससे एक कदम आगे बढ़ते हुए भाजपा के मैहर से विधायक नारायण त्रिपाठी ने पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा को चिट्ठी लिख दी है।

त्रिपाठी ने राष्ट्रीय अध्यक्ष को मध्यप्रदेश में गुजरात मॉडल लागू करने की बात कही है। उन्होंने कहा कि सत्ता और संगठन दोनों में ही आमूलचूल परिवर्तन किया जाना चाहिए। भाजपा के अंदर से ही बदलाव की उठती मांग ने कई मंत्रियों और विधायकों की नींद उड़ा दी है।  मध्यप्रदेश में विधानसभा चुनाव में एक साल से भी कम का समय बचा है। भाजपा 2018 के विधानसभा चुनाव में सत्ता से दूर हो गई थी।

ज्योतिरादित्य सिंधिया के अपने समर्थक विधायकों के साथ भाजपा में शामिल होने से कांग्रेस की सरकर गिर गई। फिर भाजपा ने सरकार बना ली। अब पार्टी पिछली कोई गलती दोहराना नहीं चाहती है। शिवराज कैबिनेट में अभी चार मंत्री पद खाली है। पार्टी चुनाव से पहले कैबिनेट में क्षेत्रीय और जातिगत समीकरणों को साधना चाहती है। नॉन परफार्मर मंत्रियों को हटा सकती है। इससे एंटी-इंकम्बेंसी फेक्टर को भी कम करने का प्रयास किया जा सकता है। भाजपा इनकी जगह दो से तीन बार के विधायकों को मौका दे सकती है।

इस मामले में जानकारों का कहना है कि पिछली बार 2018 में भी चुनाव से पहले कैबिनेट में बदलाव किया गया था। कई मंत्रियों को हटाया गया था। अभी कई क्षेत्रों से कैबिनेट में प्रतिनिधित्व ही नहीं मिला है। आने वाले चुनाव में जातिगत समीकरण को ध्यान में रखकर भी कैबिनेट में बदलाव हो सकता है।  लगातार सत्ता में रहते हुए शिव राज सिंह चौहान कई बार भाजपा के राष्ट्रीय नेताओं के लिए भी परेशानी का सबब बन जाते हैं। नरेंद्र मोदी के सत्ता में आने के पहले श्री चौहान के नाम की चर्चा भी प्रधानमंत्री पद के दावेदारों को तौर पर हुई थी।

अब गुजरात मॉडल का एक अर्थ किसी भी विरोधी के कद को ज्यादा बढ़ने का मौका नहीं देने का भी निकाला जा रहा है। ऐसे में अगर मध्यप्रदेश में विधानसभा चुनाव से ठीक पहले ऐसी मांग परोक्ष तौर पर उठने लगी है तो उसके पीछे पार्टी की अंदरूनी राजनीति भी जिम्मेदार है। दूसरी तरफ ज्योतिरादित्य सिंधियां के साथ कांग्रेस छोड़कर आये विधायकों को भाजपा ने दिल से स्वीकार नहीं किया है, यह स्पष्ट है। अब इस वजह से गुजरात मॉडल के नाम पर यहां भी अगले चुनाव के ध्यान में रखते हुए समीकरणों को साधने की मांग को भी गुजरात मॉडल से जोड़कर देखा जाने लगा है। वैसे भी मध्यप्रदेश की यह गुटबाजी कोई नई नहीं है सिर्फ सिंधिया की वजह से एक तीसरा कोण भी बन चुका है।

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