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रूस और यूक्रेन युद्ध से सात सौ से अधिक डॉल्फिन मर गये

  • ब्लैक सी इलाके में जोरदार विस्फोट होते रहे

  • धमाकों से इनका आपसी संवाद टूट गया है

  • पानी में धमाका अधिक तेजी से बढ़ता है

राष्ट्रीय खबर

रांचीः रूस और यूक्रेन के बीच जारी जंग का सबसे अधिक कहर उन प्राणियों पर बरसा है, जिनका इस युद्ध से कोई वास्ता नहीं रहा है। इनमें ब्लैक सी इलाके के डॉल्फिन भी हैं। अनुमान है कि इस युद्ध के प्रारंभ होने के बाद उस इलाके के करीब सात सौ डॉल्फिन मारे गये हैं।

दरअसल समुद्री इलाके में गोला बारूद की विस्फोट से वे अपना संपर्क खो बैठे थे। साथ ही बारूदी प्रभाव से भी पानी के अंदर अनेक समुद्री प्रजातियां घायल होने के बाद मर गयी हैं। यह समझ लेना जरूरी है कि ऐसे समुद्री जीव, जो समूह में रहते हैं, वे आपसी संवाद बनाते हुए हर काम करते हैं। विस्फोट के शोर से उनका यह आपसी संवाद का चक्र टूटने के बाद से तितर बितर होने की वजह से भी गलत इलाकों तक चले गये थे। पर्यावरण विशेषज्ञों तथा इन जीवों को बचाने का काम करने वाली स्वयंसेवी संस्थाएं इस स्थिति से चिंतित है। उनका मानना है कि गोला बारूद के प्रभाव से समुद्र का यह इलाका भी जीवन के लिए घातक बन रहा है।

यूं तो युद्ध के दौरान दोनों देशों के हजारों लोग मारे गये हैं। लेकिन समुद्री जीवों का इस युद्ध के कोई रिश्ता भी नहीं था। सिर्फ समुद्र के इस इलाके में निरंतर युद्ध के विस्फोट की वजह से उनके जीवन पर ऐसा खतरा मंडराने लगा है। शोध दल ने पाया है कि लगातार विस्फोट के शोर से घबड़ाये डाल्फिनों का समूह अप्रत्याशित इलाकों में कैद हो कर रह गया है।

माना जा रहा है कि सामान्य तौर पर वे आपस में जो बात किया करते थे, वह नहीं हो पा रहा है। इससे पूरा समूह ही दिशाभ्रष्ट हो गया है। बारूदी विस्फोट के प्रभाव क्षेत्र में मौजूद कई ऐसी प्रजातियां घायल होने के बाद भी मरे हैं। इस युद्ध का वहां के समुद्री जीवन पर दीर्घकालीन प्रभाव क्या होगा, इस बारे में अभी कुछ नहीं कहा जा सकता। ऐसी स्थिति इसलिए है कि पहले इस पर ऐसा शोध भी नहीं हुआ था।

यह भी देखा गया है कि अप्रत्याशित इलाके तक आ पहुंचने वाली डॉल्फिन ने तट पर आकर दम तोड़ा है। इसके अलावा वह सही तरीके से तैर नहीं पाने की वजह से मछुआरों के जाल में फंसकर मरे हैं। युद्ध की चपेट में सिर्फ डॉल्फिन ही नहीं आये हैं बल्कि वहां पर इसी प्रजाति के पोरपोइजों को भी मृत पाया गया है। इस समुद्री क्षेत्र में ब्लैक सी पर जारी रूसी घेराबंदी का प्रभाव दूर तक जा रहा है, ऐसा समुद्र विज्ञानी मान रहे हैं। वहां के आंकड़ों को बेहतर तरीके से संकलित भी नहीं किया जा सकता है क्योंकि वहां समुद्र में कई इलाकों में बारूदी सुरंग भी बिछे हुए हैं।

वैसे कुछ शवों को देखने से ऐसा लगता है कि किसी विस्फोट की चपेट में आने की वजह से वे झूलस गये थे। इसी वजह से उनकी मौत हो गयी। इसके अलावा गलत दिशा में तैरने वालों की शायद सुनने की शक्ति प्रभावित हुई है। इस वजह से विस्फोट के जोरदार धमाके के बाद वे गलत दिशा में तैरने लगे थे और मारे गये हैं।समुद्र में अत्यधिक नौसेना के जहाजों के होने की वजह से भी वे आपसी संवाद नहीं कर पा रहे हैं। पानी के अंदर होने वाले विस्फोटों ने भी उन्हें भ्रमित कर दिया अथवा नजदीक होने की वजह से वे घायल हो गये।

दरअसल इन प्रजातियों की जिंदा रहने और आगे बढ़ने का गुण ही संवाद पर कायम रहती है। युद्ध के धमाकों की वजह से इस गुण का कोई इस्तेमाल ही नहीं हो पाने से ऐसी स्थिति आयी है। यह बताया गया है कि पानी के अंदर कोई भी धमाका हवा के मुकाबले साढ़े चार गुणा अधिक गति से आगे बढ़ती है। इसलिए उसका असर पानी की गहराई में अधिक होता है। विस्फोट के बाद गलत दिशा में बढ़ने की वजह से वे मछुआरों के जाल में भी आकर फंस गये और वहीं मर गये। शोधकर्ता मानते हैं कि युद्ध की स्थिति में वहां के वास्तविक हालात क्या हैं, इसका जायजा भी नहीं लिया जा सकता है। युद्ध की समाप्ति के बाद ही क्या कुछ हुआ है इसका पता चल पायेगा।

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