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तिगारे में दोनों पक्ष स्थायी युद्धविराम के लिए तैयार हुए

नैरोबीः इथोपिया की सरकार और तिगारे विद्रोही अब शांति के लिए मन बना चुके हैं। खबर है कि दोनों पक्षों में स्थायी युद्धविराम क प्रस्ताव पर सहमति जतायी है। इस युद्धविराम के लागू होने से वहां अरसे से चला आ रहा टकराव समाप्त होगा। बुधवार की रात को दोनों पक्षों से सहमति हासिल होने के बाद इसका एलान किया गया है।

इस युद्ध के दौरान वहां हजारों लोग अब तक मारे गये हैं जबकि लाखों लोगों को मजबूरी में अपना घर छोड़कर भागना पड़ा है। इथोपिया की सेना के साथ तिगारे पीपुल्स लिबरेशन फ्रंट के हथियारबंद विद्रोहियों का यह संघर्ष चल रहा था। दोनों ही पक्षों के प्रतिनिधियों ने इस स्थायी युद्धविराम के समझौता पर हस्ताक्षर कर दिया है।

इस समझौते में इस बात का उल्लेख है कि तिगारे विद्रोही क्रमवार तरीके से सरकार के पास अपने हथियार जमा कर देंगे लेकिन यह काम काफी सावधानी के साथ धीरे धीरे किया जाएगा ताकि दोनो पक्षों का विश्वास कायम रहे। इस विद्रोही संगठन ने सरकार के काम काज पर ध्यान देने के बाद संतुष्ट होने के बाद अपने संगठन को भी तोड़ देने पर रजामंदी जतायी है।

लेकिन समझौता पत्र में यह स्पष्ट है कि वह जमीन पर इस दिशा में सही काम होने के बाद ही ऐसा फैसला लेंगे। दोनों पक्षों के बीच हुए इस समझौते का एलान अफ्रीकन यूनियन की तरफ से नाईजीरिया के राष्ट्रपति द्वारा किया गया है। समझा जाता है कि दोनों पक्षों के बीच इस मुद्दे पर प्रिटोरिया में एक सप्ताह से बात चीत चल रही थी। अफ्रीकन यूनियन के प्रतिनिधि समझौते में उल्लेखित शर्तों का पालन सही ढंग से हो रहा है अथवा नहीं, इस पर नजर रखेंगे।

बता दें कि इस क्षेत्र में सरकारी कामकाज से असंतुष्ट होने के बाद तिगारे विद्रोहियों ने करीब दो साल पहले बगावत कर दिया था। बीच बीच में दोनों के बीच युद्ध बहुत तेज भी होता रहा है। संयुक्त राष्ट्र के महासचिव एंटोनियो गुटेरस ने दोनों पक्षों से युद्धविराम कर वहां के लोगों को शांति प्रदान करने की अपील की थी।

इथोपिया की सरकार ने विद्रोहियों को काबू में करने के लिए वहां के राहत अभियान के साथ साथ मोबाइल नेटवर्क तथा अन्य आवागमन को भी रोक दिया था। इसके बाद भी विद्रोहियों पर सरकार नियंत्रण कर पाने में विफल रही थी। सरकार के इस फैसले की वजह से वहां के करीब 13 मिलियन लोगों के समक्ष भूखमरी की स्थिति आ गयी थी। मजबूरी में लाखों लोग इलाका छोड़कर अन्यत्र चले गये थे और अलग अलग देशों में शरणार्थी बने हुए थे।

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