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सत्ता और विपक्ष के मिले जुले खेल में पर्दे के पीछे अफसर

प्रमुख संस्थाओं के सारे पद रिक्त होने का खेल

  • विपक्ष के नेता का खेल पुरानी सरकार से

  • अफसर नहीं चाहते कि सवाल जबाव हो

  • दस्तावेज बाहर आये तो कई राज खुलेंगे

राष्ट्रीय खबर

रांचीः सरकार कहती है कि विपक्ष का नेता घोषित नहीं होने की वजह से काम पूरा नहीं हो पा रहा है। दूसरी तरफ विपक्ष यानी भारतीय जनता पार्टी को अभी इन पदों को भरने से कोई राजनीतिक फायदा नहीं होने वाला है। लिहाजा वे भी चुप्पी साधकर बैठे हैं। इस स्थिति के गहन विश्लेषण से एक बार साफ हो रही है कि दरअसल अफसरों का एक वर्ग नहीं चाहता है कि राज्य की इन संवैधानिक संस्थाओं के रिक्त पद भरे जाएं।

इन पदों को भरे जाने की स्थिति में वे फिर से सवालों के घेरे में आयेंगे, जिसपर काफी समय से पर्दा डाले रखा गया है। झारखंड उच्च न्यायालय में भी एक जनहित याचिका इस मुद्दे पर दायर है। अदालत में भी सरकार ने वही बात दोहराया है कि विपक्ष का नेता नहीं होने की वजह से यह काम नहीं हो पा रहा है। अदालत ने इस स्थिति पर चिंता जाहिर करते हुए मार्च के अंतिम सप्ताह में सुनवाई करने की बात कही है।

झारखंड में वर्तमान में लोकायुक्त, सूचना आयोग,मानवाधिकार आयोग  एंव  अन्य 12 संवैधानिक  संस्थाओं  मे अध्यक्ष  व सदस्यों  के खाली  पदो की नियुक्ति झारखंड सरकार के द्वारा नहीं की गयी है। सदन मे झामुमो गठबंधन  की सरकार  है और  विपक्ष  मे भारतीय जनता पार्टी  है।

याद दिला दें कि रघुवर दास के शासन काल में बाबूलाल मरांडी को नेता प्रतिपक्ष बनने से रोकने की जो चाल चली गयी थी, वह अब भाजपा पर भारी है। पार्टी की अपनी परेशानियों की वजह से अब भी नेता प्रतिपक्ष घोषित नहीं हो पाया है जबकि पूर्व में जो इस पद पर थे, वह अमर कुमार बाउरी चुनाव हार गये हैं।

इस स्थिति का असली लाभ अफसरों का वह वर्ग उठा रहा है जो खास तौर पर भ्रष्टाचार संबंधी गंभीर आरोपों का उत्तर देने से हिचकते हैं। हाल के दिनों में अनेक निविदाओं ने अपनी पसंद के व्यक्ति अथवा कंपनी को ठेका देने के लिए निविदा शर्तों में ऐसी बातों को जोड़ने का धंधा चल पड़ा है, जो किसी खास कंपनी के हित में होती है।

इसका मकसद मूल्यांकन स्तर पर ही दूसरी कंपनियों को छांट कर अपनी पसंद की कंपनी को ठेका देने का है। इसके अलावा भी कार्यालयों की अनैतिक गतिविधियों पर पर्दा डालने का काम चल रहा है। ऐसे में अगर संवैधानिक संस्था तक बात पहुंचे तो दस्तावेज दिखाने से कई परेशानियां उत्पन्न हो सकती है।

इसी वजह से अफसरों के गिरोह ने दोनों पक्षों को अलग अलग दलील देकर उलझा रखा है। यह बता दें कि दिल्ली में भी ऐसी परेशानी आने पर नियम बदला गया था। झारखंड में भी अगर जरूरत है तो नियम बदलकर इन संस्थाओं पर लोगों को नियुक्त किया जा सकता है।

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