अधिनियम की धारा 6 ए वैध
राष्ट्रीय खबर
नईदिल्लीः सर्वोच्च न्यायालय ने 4:1 बहुमत से नागरिकता अधिनियम की धारा 6ए की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखा है। भारत के मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली संविधान पीठ ने बहुमत के फैसले में नागरिकता अधिनियम, 1955 की धारा 6ए की संवैधानिकता को बरकरार रखा।
हालांकि, न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला ने कहा कि धारा 6ए भावी प्रभाव से असंवैधानिक है। धारा 6ए एक विशेष प्रावधान है जिसे 1955 के अधिनियम में 15 अगस्त, 1985 को तत्कालीन राजीव गांधी सरकार द्वारा 1971 में भारत-पाकिस्तान युद्ध के बाद असम आंदोलन के प्रतिनिधियों के साथ हस्ताक्षरित असम समझौते नामक समझौता ज्ञापन को आगे बढ़ाने के लिए डाला गया था।
धारा 6ए के तहत, 1 जनवरी, 1966 से पहले असम में प्रवेश करने वाले और राज्य में सामान्य रूप से निवासी रहे विदेशियों को भारतीय नागरिकों के सभी अधिकार और दायित्व प्राप्त होंगे। 1 जनवरी, 1966 और 25 मार्च, 1971 के बीच राज्य में प्रवेश करने वालों को भी वही अधिकार और दायित्व प्राप्त होंगे, सिवाय इसके कि वे 10 साल तक मतदान नहीं कर सकेंगे।
याचिकाकर्ताओं ने अदालत में सवाल उठाया कि सीमावर्ती राज्यों में से सिर्फ़ असम को ही धारा 6ए लागू करने के लिए क्यों चुना गया। उन्होंने धारा 6ए के परिणामस्वरूप या उसके प्रभाव से घुसपैठ में वृद्धि को दोषी ठहराया था। इसके विपरीत, प्रतिवादियों ने बताया कि किसी क्षेत्र की सांस्कृतिक विशेषताओं की सुरक्षा को नागरिकता से वंचित करने की सीमा तक बढ़ाया जा सकता है
क्योंकि इससे ‘नागरिक राष्ट्रवाद’ से ‘सांस्कृतिक राष्ट्रवाद’ में बदलाव आएगा, जो संवैधानिक लोकाचार के विरुद्ध है। इस फ़ैसले का असम के विवादास्पद एनआरसी अभ्यास पर महत्वपूर्ण असर पड़ने की संभावना है। बता दें कि इस मुद्दे पर असम सरकार ने पहले से ही एनआरसी की जांच करायी थी। इसके तहत अनेक बांग्लादेशी नागरिकों का पता भी चला था।
एक अनुमान के मुताबिक वहां करीब तीन लाख अवैध अप्रवासी रह रहे हैं। इनमें म्यांमार के रोहिंग्या शरणार्थी भी हैं, जो बांग्लादेश की सीमा पार कर असम में आ गये है। मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा ने बार बार इस मुद्दे को उठाया है और इसकी वजह से इलाकों का समीकरण बिगड़ जाने का आरोप लगाया है।