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उपराज्यपाल से मिलकर इस्तीफा देंगे केजरीवाल

नईदिल्ली में ईमानदारी के सवाल पर भाजपा की परेशानी बढ़ायी

  • भाजपा हरियाणा में उलझी थी इधर खेल

  • जनता के जनादेश की चाल चली है

  • अदालत के बाद जनता के बीच जाना है

राष्ट्रीय खबर

 

नईदिल्लीः भारतीय जनता पार्टी हरियाणा में अपने अंदर की गुटबाजी को संभालने में जुटी थी। भाजपा को यह अंदेशा था कि कांग्रेस और आप का चुनावी गठबंधन नहीं होने से उसे वोट विभाजन का लाभ मिलेगी। इसके बीच ही आम आदमी पार्टी के प्रमुख अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली के मैदान में ऐसा छक्का जड़ दिया, जो भाजपा की पकड़ से बाहर जा चुकी है।

ईमानदारी के सवाल पर जनादेश की मांग कर आम आदमी पार्टी प्रमुख ने ऐसी चाल चल दी है, जिसकी काट फिलहाल तो भाजपा के पास नहीं है। याद रखना होगा कि पिछले चुनाव में भी अरविंद केजरीवाल ने सार्वजनिक मंच से यह कहा था कि अगर उनकी पार्टी ने सही काम नहीं किया है तो वोट देने की जरूरत नहीं है।

दरअसल शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा में लंबी लकीर खींच देने के बाद अब जल्द चुनाव कराने की मांग कर आप पार्टी ने भाजपा की परेशानी बढ़ा दी है। कहा जा रहा है कि अरविंद केजरीवाल 17 सितंबर को शाम 4.30 बजे दिल्ली के उपराज्यपाल से मिलकर इस्तीफा देंगे। आप  ने कहा अरविंद केजरीवाल का दिल्ली के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने का फैसला एक सोची-समझी राजनीतिक चाल है।

भ्रष्टाचार के दाग को हटाने से लेकर सत्ता विरोधी लहर को मात देने और विपक्षी खेमे में भाजपा विरोधी लहर का फायदा उठाने तक, ये पांच बड़ी वजहें हैं कि केजरीवाल ने राजनीतिक छक्का क्यों मारा। दिल्ली की तिहाड़ जेल से रिहा होने के कुछ दिनों बाद ही मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने अप्रत्याशित कदम उठाकर सबको चौंका दिया।

उन्होंने कहा कि वह दो दिन में इस्तीफा दे देंगे। यह आश्चर्य की बात थी क्योंकि इस दौरान उन्होंने भाजपा की ओर से मुख्यमंत्री पद छोड़ने की मांग का विरोध किया था। आप के राष्ट्रीय संयोजक केजरीवाल ने कहा, जब तक जनता अपना फैसला नहीं सुना देती, मैं उस कुर्सी पर नहीं बैठूंगा, मुझे कानूनी अदालत से न्याय मिला, अब मुझे जनता की अदालत से न्याय मिलेगा।

मैं जनता के आदेश के बाद ही मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठूंगा। भ्रष्टाचार के दाग को हटाने से लेकर सत्ता विरोधी लहर को मात देने और विपक्षी खेमे में भाजपा विरोधी लहर का फायदा उठाने तक, अरविंद केजरीवाल के इस्तीफे और समय से पहले चुनाव कराने के फैसले को राजनीतिक छक्का माना जा सकता है।

इस दांव की वजह से आम आदमी पार्टी के पास खोने को कुछ नहीं। दिल्ली विधानसभा चुनाव फरवरी 2025 में होने थे। पांच महीने से भी कम समय बचा है, केजरीवाल का इस्तीफा देने और चुनाव की तारीखों को आगे बढ़ाने का कदम दिल्ली की सत्ता में वापसी का प्रयास है। वैसे भी, सुप्रीम कोर्ट की सख्त जमानत शर्तों के कारण केजरीवाल को मुख्यमंत्री के रूप में काम करने की अनुमति नहीं मिलती।

केजरीवाल ने अपने इरादे स्पष्ट करते हुए कहा, चुनाव फरवरी में होने हैं। मैं मांग करता हूं कि चुनाव नवंबर में महाराष्ट्र चुनाव के साथ ही हों। इस्तीफे की घोषणा का समय महत्वपूर्ण है क्योंकि इससे उन्हें खुद को भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार द्वारा प्रतिशोध की राजनीति के शिकार के रूप में पेश करने का मौका मिलता है।

भले ही चुनाव फरवरी में हों, न कि नवंबर में, जैसा कि केजरीवाल चाहते हैं, एक अलग मुख्यमंत्री का होना उनके लिए फायदेमंद होगा। आप ज्यादातर वन-मैन शो है, और कोई भी मुख्यमंत्री केजरीवाल के मार्गदर्शन में काम करेगा, यह कोई रहस्य नहीं है। यह एक अलग चेहरे वाला केजरीवाल शो होगा, वह भी बहुत कम समय के लिए।

इस्तीफा देकर, केजरीवाल शायद जनता की सहानुभूति हासिल करने और अपने आधार को संगठित करने का लक्ष्य बना रहे हैं, जो संभावित रूप से आगामी चुनावों में चुनावी लाभ में तब्दील हो सकता है। केजरीवाल के इस्तीफे के पीछे एक मुख्य कारण उन पर, उनके पूर्व उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया और आप के अन्य लोगों पर चल रहे भ्रष्टाचार के आरोप हो सकते हैं।

आबकारी नीति का मामला आप के लिए काँटा बना हुआ है, दोनों नेताओं को कानूनी लड़ाई और सार्वजनिक जांच का सामना करना पड़ रहा है। इस पार्टी, जिसका जन्म 2011 में भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन से हुआ था, उसके नेता केजरीवाल अपने पद से इस्तीफा देकर इन आरोपों से खुद को दूर रखना चाहेंगे और लोगों से नया जनादेश मांगेंगे, जिससे उनके आलोचकों पर प्रभावी रूप से पलटवार होगा।

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