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अरविंद को बेल पर ठिकाना रहेगा जेल

सुप्रीम कोर्ट में खुल गया ईडी और सरकार का खेल


  • धारा 19 पर भी अब विचार होगा

  • आम आदमी पार्टी ने कहा सत्यमेव जयते

  • जमानत का फैसला गुण दोष के आधार पर


राष्ट्रीय खबर

नईदिल्लीः बार बार राजनीतिक विरोधियों को सबक सिखाने के लिए ईडी के दुरुपयोग का मामला अब लगभग स्पष्ट हो गया है। दरअसल सुप्रीम कोर्ट ने जो मुद्दे उठा दिये हैं, वे भविष्य के लिए नीति निर्धारण का काम करेंगे। अरविंद केजरीवाल की अंतरिम जमानत के बाद उठे सवाल आगे भी बहस के केंद्र में रहेंगे। वैसे शीर्ष अदालत द्वारा जमानत दिये जाने के बाद भी अरविंद केजरीवाल अभी जेल में ही रहेंगे क्योंकि सीबीआई ने उन्हें पहले ही गिरफ्तार कर लिया था। वैसे यह भी स्पष्ट हो गया कि जांच एजेंसियों को अपने साक्ष्यों का अदालत में क्या हश्र होगा, इसका एहसास था। इसी वजह से दिल्ली के मुख्यमंत्री को जेल में रखने के लिए यह साजिश रची गयी थी।


 

याद दिला दें कि झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को भी सर्वोच्च न्यायालय ने आदेश दिया, चूंकि जीवन के अधिकार का सवाल है और चूंकि मामला एक बड़ी पीठ को भेजा गया है, इसलिए हम अरविंद केजरीवाल को अंतरिम जमानत पर रिहा करने का निर्देश देते हैं। हाईकोर्ट ने जमानत इस आधार पर दी है कि उनके खिलाफ लगाये गये आरोप का कोई साक्ष्य ही नहीं है और ईडी ने सिर्फ कहानी बनाने का काम किया है। वैसे हेमंत की जमानत को भी ईडी ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है।

सुप्रीम कोर्ट ने प्रवर्तन निदेशालय द्वारा जांचे गए राज्य आबकारी नीति मामले में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को अंतरिम जमानत दे दी है। कोर्ट ने पीएमएलए की धारा 19 के तहत एजेंसी द्वारा उनकी गिरफ्तारी की वैधता पर भी सवाल उठाए हैं और इसे बड़ी बेंच को भेज दिया है। इससे एजेंसी की शक्तियों पर असर पड़ सकता है। कथित आबकारी नीति घोटाले से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को अंतरिम जमानत दिए जाने के तुरंत बाद आम आदमी पार्टी ने कहा, सत्यमेव जयते।

हालांकि, केजरीवाल और उनकी पार्टी को राहत अल्पकालिक होगी क्योंकि 55 वर्षीय दिल्ली के सीएम अभी जेल से बाहर नहीं आ पाएंगे; वह अब समाप्त हो चुकी दिल्ली आबकारी नीति से जुड़े केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) के भ्रष्टाचार मामले में 25 जुलाई तक न्यायिक हिरासत में हैं। दिल्ली के सीएम पद से उन्हें इस्तीफा देना चाहिए या नहीं, इस मुद्दे पर कोर्ट ने यह भी कहा कि वे उन्हें ऐसा करने का आदेश नहीं दे सकते, क्योंकि ऐसा करना उनका अपना फैसला है।

हालांकि, जस्टिस संजीव खन्ना और दीपांकर दत्ता की बेंच ने प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट (पीएमएलए) के तहत उनकी गिरफ्तारी से जुड़े कानून के सवाल पर इसे बड़ी बेंच को सौंप दिया।

इसलिए, इसे बड़ी बेंच को सौंपते हुए कोर्ट ने केजरीवाल को अंतरिम जमानत पर रिहा करना उचित समझा।शीर्ष अदालत ने स्पष्ट किया कि केजरीवाल की रिहाई अंतरिम प्रकृति की है और उन पर वैसी ही शर्तें लागू होंगी, जैसी तब लगाई गई थीं, जब वे लोकसभा चुनाव से ठीक पहले बाहर आए थे। अदालत ने कहा कि उनकी नियमित जमानत का फैसला गुण-दोष के आधार पर किया जाएगा और उसके फैसले को मामले के गुण-दोष के आधार पर निष्कर्ष नहीं माना जाएगा।

शीर्ष अदालत ने अपने आदेश में धन शोधन निवारण अधिनियम (पीएमएलए) की धारा 19 का सवाल उठाया, जो गिरफ्तारी की शक्ति से संबंधित है, और कहा कि इस पर शीर्ष अदालत की एक बड़ी पीठ द्वारा विचार किए जाने की आवश्यकता है। पीएमएलए की धारा 19 गिरफ्तारी की शक्ति से संबंधित है। धारा 19(1) में कहा गया है कि यदि ईडी निदेशक के पास अपने पास मौजूद सामग्री के आधार पर यह विश्वास करने का कारण है (ऐसे विश्वास के कारण को लिखित रूप में दर्ज किया जाना चाहिए) कि कोई व्यक्ति इस अधिनियम के तहत दंडनीय अपराध का दोषी है, तो वह ऐसे व्यक्ति को गिरफ्तार कर सकता है और जितनी जल्दी हो सके, उसे ऐसी गिरफ्तारी के आधार के बारे में सूचित करेगा। इसका मतलब यह है कि गिरफ्तारी ईडी के पास मौजूद सामग्री के आधार पर की जानी चाहिए। हालांकि, केजरीवाल की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने तर्क दिया है कि केजरीवाल की गिरफ्तारी का बचाव करने के लिए ईडी द्वारा अब जिस सामग्री का हवाला दिया जा रहा है, वह उनकी गिरफ्तारी के दौरान मौजूद नहीं थी और बाद में पेश की गई थी।

 

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